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EC ने सुप्रीम कोर्ट की ये बात मान ली तो फ्री चुनावी वादों पर रोक इसी इलेक्शन में लग सकती है

सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर मुद्दा करार देते हुए चुनाव आयोग और केंद्र को नोटिस जारी किया है.

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सुप्रीम कोर्ट. (तस्वीर- पीटीआई)

"चुनाव जीतने के बाद हमारी सरकार बिजली, पानी, लैपटॉप, साइकिल, फोन, स्कूटी... और भी बहुत कुछ, फ्री देगी!"

बीते कुछ सालों से राजनीतिक दलों में चुनावों के दौरान इस तरह के वादे करने का चलन बढ़ा है. इसे लेकर अब सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग (ECI) और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. उससे ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने ये नोटिस जारी करते हुए चुनावी घोषणापत्र में मुफ्त उपहार देने के वादों यानी फ्रीबीज को 'गंभीर मुद्दा' बताया है. इंडिया टुडे से जुड़ीं अनीषा माथुर की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने कहा है कि उसने पहले भी निर्वाचन आयोग से इस संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा था, लेकिन ECI ने इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की राय जानने के लिए उनके साथ केवल एक मीटिंग की.

मामला क्या है?

दरअसल फ्री चुनावी वादों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. इसमें मांग की गई है कि पार्टियों को चुनाव से पहले सरकारी खजाने से ऐसे मुफ्त उपहार देने का वादा करने से रोका जाना चाहिए, जिनका कोई मतलब नहीं है. याचिका में कहा गया था कि ऐसी पार्टियों के चुनाव चिह्न सीज कर दिए जाने चाहिए या उनका रजिस्ट्रेशन ही रद्द कर दिया जाना चाहिए. याचिका में मांग की गई कि इस तरह के चुनावी वादों पर पूरी तरह प्रतिबंध होना चाहिए, जिनका मकसद वोटरों से अनुचित तरीके से चुनावी फायदा लेना होता है. याचिका के मुताबिक ऐसे वादे संविधान का उल्लंघन करते हैं और चुनाव आयोग को इस बारे में ठोस कदम उठाने चाहिए. मंगलवार 25 जनवरी को इस याचिका पर फिर सुनवाई हुई. इस दौरान देश के चीफ जस्टिस (CJI) एनवी रमना की बेंच ने कहा,
"मैं जानना चाहता हूं कि इसे कानूनी तरीके से कैसे रोका जाए. क्या ऐसा मौजूदा चुनावों के दौरान किया जा सकता है? अगले चुनाव में भी ऐसा होना चाहिए. ये एक गंभीर मुद्दा है. फ्रीबीज बजट रेग्युलर बजट से ज्यादा हो जाता है."
सुप्रीम कोर्ट में ये मांग करने वाले याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय का ये भी कहना है कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर कानून बनाना चाहिए. इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर ये याचिका कहती है,
"वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियों में मुफ्त चीजें देने का ये हालिया ट्रेंड ना सिर्फ लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा है, बल्कि संविधान की भावना को भी नुकसान पहुंचाता है. ये अनैतिक तरीका सत्ता पाने के लिए राजकोष की कीमत पर किसी निर्वाचन क्षेत्र (के लोगों) को घूस देने जैसा है. लोकतांत्रिक सिद्धांतों और कार्यप्रणालियों को बचाए रखने के लिए इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए."
याचिका में ECI को ये निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वो इलेक्शन सिम्बल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 1968 में एक अतिरिक्त कंडीशन जोड़े. इसके तहत आदेश में ये बात जोड़ी जाए कि किसी राजनीतिक पार्टी को चुनाव से पहले जनता से तर्कहीन मुफ्त चुनावी वादे नहीं करने चाहिए या मुफ्त उपहार नहीं बांटने चाहिए. याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वो ये घोषणा करे कि चुनाव से पहले पब्लिक फंड से लोगों को निजी वस्तुएं या सेवाएं मुफ्त देना या इसका वादा करना संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन है. बताते चलें कि याचिका में उन चुनावी वादों का भी हवाला दिया गया है, जो मौजूदा विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कुछ राजनीतिक दलों द्वारा जनता से किए गए हैं. देखना होगा 28 जनवरी को होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या नया कदम उठाता है.