क्या हुआ था?
साल 2016. टाटा संस बोर्ड और रतन टाटा कैम्प ने मिलकर साइरस मिस्त्री को कंपनी से बाहर का रास्ता दिखाया. बोर्ड ने 24 अक्टूबर को साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया था. इसके बाद साइरस मिस्त्री से कहा गया कि वे ग्रुप की अन्य कंपनियों से भी बाहर निकल जाएं. मिस्त्री ने इस्तीफा दे दिया. लेकिन इसके बाद वे गए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT). यानी कंपनियों की निचली अदालत.
रतन टाटा
शापूरजी पलोनजी ग्रुप की दो कंपनी साइरस इन्वेस्टमेंट और स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन ने टाटा ट्रस्ट और टाटा सन्स के निदेशकों के खिलाफ याचिका दाखिल की. इनमें टाटा सन्स पर अनियमितता बरतने का आरोप लगाया गया. कहा गया कि प्रबंधन एवं नैतिक मूल्यों का उल्लंघन किया गया. आरोप ये भी थे कि रतन टाटा और कंपनी के ट्रस्टी एन सूनावाला सुपर डायरेक्टर की तरह काम कर रहे थे. कहा कि दोनों वरिष्ठ काम में दखलअंदाज़ी कर रहे थे.
आरोप लगाया गया कि मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने का काम ग्रुप के कुछ प्रमोटर्स ने किया. ग्रुप और रतन टाटा के अव्यवस्थित प्रबंधन की वजह से ग्रुप को आय का काफी ज्यादा नुकसान हुआ. 2018 में NCLT ने मिस्त्री की दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया. कहा कि आरोपों में कोई आधार नहीं दिखता.
इसके बाद साइरस मिस्त्री ने अपील की NCLAT में. जिस पर 18 दिसंबर को निर्णय आया. फैसले में कहा गया कि टाटा संस के निदेशक मिस्त्री को पोस्ट से हटाने लायक नहीं हैं. मिस्त्री की कंपनी में 18.4 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. ये हिस्सेदारी टाटा संस के बाद सबसे बड़ी है. मिस्त्री का कहना था कि उन्हें भी बोर्ड में उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से जगह मिले.
क्या कहना रहा है टाटा ग्रुप का?
टाटा समूह ने मिस्त्री के आरोपों को खारिज किया. कहा कि साइरस मिस्त्री को इसलिए निकाला गया क्योंकि बोर्ड उनके प्रति विश्वास खो चुका था. मिस्त्री पर ये भी आरोप लगे कि उन्होंने जानबूझकर कंपनी को नुकसान पहुंचाने की नीयत से कंपनी की संवेदनशील जानकारी लीक की. इस कारण ग्रुप की वैल्यू को नुकसान पहुंचा.
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