NPPA हर साल थोक महंगाई में सालाना बदलाव देखकर यह तय करता है कि फार्मा कंपनियां दवा की कीमतें कितना ज्यादा बढ़ा सकती हैं. NPPA ने 25 मार्च को एक नोटिस जारी कर बताया,
"वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार की तरफ से उपलब्ध कराए गए थोक महंगाई दर डेटा के आधार पर, साल 2020 की तुलना में 2021 के लिए WPI में 10.76 फीसदी का बदलाव किया गया. ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO), 2013 के प्रावधानों के आधार पर आगे की कार्रवाई के लिए सभी को यह नोटिस जारी किया जाता है."
NPPA का नोटिस (फोटो- NPPA)
DPCO के प्रावधानों के अनुसार ही एनपीपीए शेड्यूल दवाओं की कीमत तय करता है. डीपीसीओ 2013 के प्रावधानों के तहत, किसी भी फार्मा कंपनी के लिए अपनी दवाओं को एमआरपी के बराबर या उससे कम कीमत पर बेचना अनिवार्य होता है. NPPA गैर-शेड्यूल दवाओं की कीमतों को भी रेग्यूलेट करता है. ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी एमआरपी में पिछले 12 महीनों के दौरान 10 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी ना हुई हो.
सरकार अलग-अलग स्वास्थ्य योजनाओं के लिए शेड्यूल दवाओं को खरीदती है और सरकारी अस्पतालों में इन्हें मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता है. शेड्यूल दवाओं में जरूरी ड्रग्स शामिल होते हैं और इनकी कीमतों में बढ़ोतरी सरकारी मंजूरी के बाद ही होती है. फार्मा इंडस्ट्री ने की थी मांग इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, फार्मा इंडस्टी के एक्सपर्ट्स ने बताया है कि पिछले दो सालों में दवाओं में इस्तेमाल होने वाली जरूरी सामग्रियों (API) की कीमतें 15 से 130 फीसदी तक बढ़ी हैं. वहीं पैरासिटामोल की कीमतों में भी 130 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा सिरप और ओरल ड्रॉप के साथ कई अन्य दवाओं और मेडिकली इस्तेमाल होने वाले ग्लिसरीन की कीमत 263 फीसदी तक बढ़ी है. इन चीजों के दाम बढ़ने के बाद पिछले साल फार्मा इंडस्ट्री ने केंद्र सरकार से दवाओं के दाम बढ़ाने की अनुमति मांगी थी.