पर कल्याण सिंह क्यों बच गए हैं? क्या मोदी सरकार उनको बचा रही है?
कल्याण सिंह कालांतर में राजस्थान के राज्यपाल हो गए. और इसी पद की वजह से बचे हुए हैं. इसकी जड़ संविधान के आर्टिकल 361 में है.
इस आर्टिकल के सेक्शन 2 के मुताबिक:
1. प्रेसिडेंट या गवर्नर के खिलाफ कोई क्रिमिनल प्रोसीडिंग नहीं चलाई जा सकती. जब तक कि वो लोग अपने कार्यकाल में हैं.तो कल्याण सिंह बाहर से ही इस मामले को देखेंगे. उनकी किस्मत भी अच्छी रही है. जब तक वो बाहर थे, तब तक ये मामला ठंडा था. 2014 में वो राज्यपाल बन गए. पर 2019 में तो वो इस पद से हट जाएंगे. और फिर अगर केस उस वक्त खुल गया तो फिर उनको कोर्ट जाना पड़ेगा.
2. उनके कार्यकाल के दौरान उनको गिरफ्तार करने या फिर जेल भेजने के लिए कोई प्रोसेस नहीं शुरू किया जा सकता.

बाबरी मस्जिद
ऐसा ही शीला दीक्षित के साथ हुआ था. उन पर करप्शन का चार्ज लगाया गया था. पर उस वक्त वो केरल की राज्यपाल थीं. तो कहा जा रहा था कि अब तो कुछ नहीं हो सकता. हालांकि वो राज्यपाल पद से हटीं पर मामले का पता नहीं कि क्या हुआ. अरविंद केजरीवाल के खिलाफ विरोधी इस बात को खूब उछालते हैं कि चुनाव लड़ने से पहले हर भाषण में कहते थे कि शीला दीक्षित को जेल भेजूंगा पर जीतने के बाद भूल गए कि कुछ हुआ भी था.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भाजपा के नेता कुछ इस तरह बयान दे रहे हैं:
कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि हम मुद्दे पर बात करेंगे. मैं नहीं सोचता कि हमें अपने नेताओं के खिलाफ एक्शन नहीं लेना चाहिए.पर क्या आडवाणी को बचाया जा सकता है?
विनय कटियार ने कहा कि ये सारे आरोप मिथ्या हैं. दोनों नेताओं ने न्यूज 18 को ये बयान दिए थे.
आडवाणी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए चर्चा में था. पर इस संवैधानिक पद की मर्यादा का ख्याल रखते हुए अब तो उनके नाम पर प्रस्ताव नहीं ही लाया जाएगा जब तक कि इस मामले से उनको राहत ना मिल जाए. आडवाणी बहुत पहले हवाला केस में ऐलान कर चुके थे कि जब तक इस मामले से निजात नहीं मिलेगी संसद में नहीं जाऊंगा. 1996 में उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. शायद अब भी वो इसी तरह की बात करें.
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