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जीएन साईबाबा का निधन, 10 साल जेल में रहे, फिर 'सबूत नहीं' कहकर बरी किया गया था

G N Saibaba की मौत पित्ताशय की पथरी की सर्जरी के बाद ऑपरेशन से जुड़ी जटिलताओं के चलते हुई. उनका हैदराबाद के निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में इलाज चल रहा था.

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पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा (फाइल फोटो- आजतक)

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा का 12 अक्टूबर की रात को निधन हो गया (G N Saibaba passed away). माओवादियों से कनेक्शन के आरोप में वो दस सालों तक जेल में रहे थे. इसी साल कोर्ट ने उन्हें बरी किया था. कहा था कि उनके खिलाफ केस साबित नहीं हो पाया. उनके सहयोगियों ने बताया कि रात करीब आठ बजे जीएन साईबाबा को दिल का दौरा पड़ा और साढ़े आठ बजे डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे जीएन साईबाबा की मौत पित्ताशय की पथरी की सर्जरी के बाद ऑपरेशन से जुड़ी जटिलताओं के चलते हुई. उनका हैदराबाद के निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में इलाज चल रहा था. खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्हें 10 दिन पहले भर्ती कराया गया था.

फैमिल फ्रेंड दीपक कुमार ने अखबार से कहा,

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उन्हें पित्ताशय में बहुत दर्द हो रहा था. हम उन्हें वसंत कुंज के एक अस्पताल और एम्स भी ले गए. फिर उन्हें हैदराबाद में भर्ती किया गया क्योंकि हमारा परिवार वहां था और हमने सोचा कि इलाज लंबे समय तक चलेगा.

DU की पूर्व प्रोफेसर और करीबी पारिवारिक मित्र नंदिता नारायण ने कहा,

सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि वो बरी होने के बाद घर वापस आए थे और चीजें ठीक हो रही थीं. वो एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे और उन्हें खोना बहुत दुखद है.

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करीबी सहयोगियों ने बताया कि जीएन साईबाबा दिल्ली यीनिवर्सिटी में अपनी नौकरी वापस पाने के लिए भी कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. उस मामले की आखिरी सुनवाई इसी साल सितंबर में हुई थी. 

क्या था पूरा मामला जिसमें गए थे जेल?

महाराष्ट्र की गढ़चिरौली पुलिस ने जीएन साईबाबा को 9 मई 2014 को गिरफ्तार किया था. आरोप लगे कि वो प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और उसके प्रमुख समूह रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के सदस्य हैं. उन पर ये भी आरोप थे कि उन्होंने जेएनयू छात्र हेम मिश्रा और उत्तराखंड के पत्रकार प्रशांत राही की प्रतिबंधित संगठनों के सदस्यों के साथ मीटिंग करवाई थी. महाराष्ट्र की एक निचली अदालत ने उन्हें साल 2017 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

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जेल में सजा काटने के दौरान उनके घरवालों ने उनकी रिहाई के लिए जोर देते हुए कहा कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. इसके बाद हाई कोर्ट ने उनकी आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया और उन्हें बरी कर दिया. पीठ ने कहा कि जीएन साईबाबा समेत सभी आरोपियों को बरी किया जा रहा है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ शक के अलावा मामला साबित करने में विफल रहा. इसके बाद 7 मार्च को उन्हें नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया था.

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