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दावा- किसानों के प्रोटेस्ट से हर दिन 3500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है

इंडस्ट्री वाले हलाकान हो गए हैं.

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प्रदर्शन को लेकर लगातार सरकार की किसानों से बातचीत जारी है लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया है. (तस्वीर: PTI)
एसोसिएटेड चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) ने सरकार और किसानों के समूहों  से गुजारिश की है कि नए कृषि कानूनों पर चल रही बहस और उसमें आ गई रुकावटों को खत्म करें. इंडिया टुडे की पत्रकार ऐश्वर्या पालीवाल की रिपोर्ट के मुताबिक़ ASSOCHAM ने एक स्टेटमेंट में कहा,
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर रोज़ लगभग 3,500 करोड़ का नुकसान झेल रहे हैं.  ये प्रोटेस्ट्स इन सभी राज्यों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाल रहे हैं.
ASSOCHAM के प्रेसिडेंट निरंजन हीरानंदानी ने कहा,
‘पंजाब , हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर 18 लाख करोड़ की है. किसानों के  विरोध, सड़कों, टोल प्लाज़ा, रेल इत्यादि के ब्लॉक होने की वजह से आर्थिक काम-काज ठप पड़ गया है.
कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स के मुताबिक़, पिछले 20 दिन में दिल्ली और उसके आस पास के राज्यों में पांच हजार करोड़ रुपये का व्यापार और दूसरी गतिविधियां प्रभावित हुई हैं.
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री ने कहा कि किसानों के विरोध ने सप्लाई चेन को प्रभावित कर दिया है. इससे अर्थव्यवस्था पर आने वाले दिनों में असर पड़ेगा और COVID-19 की वजह से हुए आर्थिक नुकसान से उबरना मुश्किल होगा.
Farmers Agitation At Singhu Border प्रोटेस्ट के दौरान खाने की तैयारी करते किसान. (तस्वीर: PTI)


नए कानूनों की तारीफ?
CII के CEO ने कृषि कानूनों की तारीफ़ की. कहा कि इससे मार्केट का मिजाज़ बेहतर होगा. उन्होंने ये भी कहा कि हाल के ये सुधार मार्केट में एक्सेस बेहतर करेंगे. किसानों के लिए आमदनी के मौके बढ़ाएंगे, प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में तेजी लाएंगे, और सप्लाई चेन्स को आधुनिक बनाएंगे. यही नहीं इससे देश भर में कृषि की हालत सुधरेगी. CII के प्रेसिडेंट उदय कोटक ने कहा,
‘समय की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए, ये सुधार एक राष्ट्र एक मार्केट की तरफ महत्वपूर्ण कदम है. ये किसानों की आमदनी को बेहतर करेगा’.
लेकिन किसान प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?
किसानों का मानना है कि ये कानून उनके हित में नहीं हैं और कॉर्पोरेट घरानों को मनमानी के लिए रास्ता देते हैं. किसान कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र न होने की वजह से भी नाराज़ हैं. इन कानूनों की वापसी को लेकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और यूपी के किसान ‘दिल्ली चलो’ मार्च कर रहे हैं. उन्हें दिल्ली बॉर्डर पर रोका गया है. 20 दिन से वो बॉर्डर पर ही हैं. दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में 30 से ज्यादा संगठन शामिल बताए जा रहे हैं.

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