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दिल्ली MCD चुनाव में ऐसा नतीजा कि जो जीता, वो भी खुश, जो हारा, वो भी खुश और जो हाशिये पर रह गया, वो भी खुश

देश की सबसे प्रतिष्ठित नगर पालिका के चुनाव में ऐसा नतीजा क्यों आया और कैसे आया, बताएंगे आज

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सांकेतिक फोटो (साभार: आजतक)

MCD चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ सारे स्टेश्नरी मालिक भी खुश हैं. क्योंकि अगले पांच साल तक कैलकुलेटर की बिक्री का पक्का इंतज़ाम हो गया है. दिल्ली की जनता ने MCD चुनाव में नतीजा ही ऐसा दिया है कि जो जीता, वो भी खुश, जो हारा, वो भी खुश और जो हाशिये पर रह गया, वो भी खुश. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 134 वॉर्ड्स में जीत तो गई, लेकिन मेयर कौन बनाएगा, इसे लेकर दावे और आपत्तियां खत्म नहीं हो पाईं. 

देश की सबसे प्रतिष्ठित नगर पालिका के चुनाव में ऐसा नतीजा क्यों आया और कैसे आया, बताएंगे आज. ये भी बताएंगे कि जो गलती शीला दीक्षित से हो गई, क्या अमित शाह भी वही कर बैठे या उनकी मैडनेस में एक मेथड था. और ये भी कि अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी से जो आशीर्वाद मांगा, उसका इस्तेमाल वो कहां करने वाले हैं. लेकिन उससे पहले आपके लिए एक बहुत-बहुत ज़रूरी सूचना है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में सरकार किसकी बन रही है, ये आपको हर जगह मालूम चल जाएगा. लेकिन अगर आप ये जानने में दिलचस्पी रखते हैं कि जो जीत रहा है, उसका सीक्रेट सॉस क्या है और जो हार रहा है, वो कहां चूक गया, और कहां चूक गए तमाम एग्ज़िट पोल - तो आपको 8 दिसंबर की सुबह 7 बजे से हमारी खास पेशकश ''जय जनादेश'' देखनी चाहिए. इस लाइव प्रस्तुति में हमारी फील्ड रिपोर्टिंग टीम्स अपना अनुभव आपसे बांटेंगी. पल पल का अपडेट भी होगा और विशेषज्ञों का अनालिसिस भी. ये सब आपको मिलेगा हमारे एप, वेबसाइट और तमाम सोशल मीडिया हैंडल्स और चैनल्स पर. अब दिल्ली चलते हैं.

सबसे पहले दिल्ली के स्कोर बोर्ड पर गौर कीजिए- दक्षिणी दिल्ली, उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली की नगर पालिकाओं को मिलाकर अब जो महानगर पालिका बना दी गई है, उसमें वॉर्ड हैं 250 माने बहुमत का आंकड़ा है 126. वोटिंग हुई 4 दिसंबर को. और आज घोषित अंतिम नतीजों के मुताबिक -
> आम आदमी पार्टी  - 134 वॉर्ड
> भारतीय जनता पार्टी - 104 वॉर्ड
> कांग्रेस - 9 वॉर्ड
> अन्य - 3 वॉर्ड

आप जानते ही हैं कि एग्ज़िट पोल नतीजे एक अनुमान होते हैं, जो सही निकल भी सकता है और नहीं भी. लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा था कि mcd चुनाव के नतीजे एग्ज़िट पोल से इतने अलग आ जाएंगे. तमाम एग्ज़िट पोल्स ने आम आदमी पार्टी की एक तरफा जीत की बात कही थी. भाजपा को 90 के करीब सिमटते दिखाया था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. क्यों, इसी सवाल का जवाब हम खोजेंगे. लेकिन पहले हम आपको ये बता देते हैं कि आप अपने जीवन के बहुमूल्य 20 मिनिट एक नगर पालिका के चुनाव पर खपाएं क्यों. सबसे पहला कारण तो है रौला. जी. देश की सड़कों पर DL पासिंग गाड़ी का रौला आपने देखा होगा. क्योंकि दिल्ली है भारत की राजधानी. यही बात राजनीति पर भी लागू होती है. राष्ट्रीय पार्टी, क्षेत्रीय पार्टी, और पार्टी बनाने के आकांक्षी नेता - सब यही चाहते हैं कि वो किसी भी तरह दिल्ली में कहीं बैठ जाएं. चाहे वो कोई बोर्ड हो, नगर पालिका हो या फिर सूबे की सरकार हो, जिसे लेकर बहस चलती रहती है कि वो वाकई एक ''राज्य'' की सरकार है या नहीं.

फिर दिल्ली MCD एक विशाल शहरी विस्तार है. यहां की घनी आबादी सिर्फ पार्षद ही नहीं चुनती. 7 सांसद और 70 विधायक भी चुनती है. कम मेहनत और संसाधन में यहां ज़्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है. इसीलिए दिल्ली के मामले में ''कोई भी चुनाव छोटा नहीं होता'' वाली बात का महत्व बहुत ज़्यादा है.

तीसरा कारण है रोकड़ा. जी हां. पैसा. 2022 में परिसीमन के बाद नई तरह से गढ़ी गई दिल्ली नगर निगम का बजट है 15 हज़ार 276 करोड़ रुपए. पंचवर्षीय नहीं, सिर्फ साल 2022-23 के लिए. इतना पैसा अगर आप ISRO को दे दें तो वो 1 नहीं, 2 नहीं, पूरे 16 बार चंद्रयान -2 मिशन पूरा कर लेंगे. तब भी पार्टी के लिए पैसा बच ही जाएगा.
तुलना के लिए आपको कुछ और बड़ी नगर पालिकाओं का बजट बताते हैं

1. बृहन्नमुंबई महानगर पालिका BMC - 45 हज़ार करोड़
2. बृहत बेंगलुरु महानगर पालिके BBMP - 10 हज़ार 478 करोड़
3. ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन GHMC - 6 हज़ार 150 करोड़
4. कोलकाता म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन KMC - 4 हज़ार 410 करोड़
5. ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन GCC - 3 हज़ार 481 करोड़

आपको ये सुनकर कुछ अचरज हो सकता है कि मुंबई का बजट दिल्ली से तीन गुना ज़्यादा कैसे है और कोलकाता तथा चेन्नई का बजट बेंगलुरु और हैदराबाद से कम कैसे है. इसका जवाब है परिसीमन. जी हां. एक शहर मतलब हमेशा एक नगर पालिका नहीं होता है. जैसे पुणे शहर में दो नगर पालिकाएं हैं - पुणे महानगर पालिका PMC. और पिंपरी चिंचवड़ महानगर पालिका - PCMC. पूरे शहरी विस्तार को इकट्ठा रखकर एक नगर पालिका बना दी जाए, तो मुंबई के BMC जैसा निकाय तैयार होता है. वहीं शहरी विस्तार को तोड़कर छोटे छोटे निकाय बनाए जाएं तो कोलकाता और चेन्नई जैसे उदाहरण सामने आते हैं. और सामान्य सी बात है - जितना बड़ा निकाय, उतना बड़ा बजट. अब ये परिसीमन जो है, वो सिर्फ प्रशासन को ध्यान में रखकर नहीं होता. दूसरे कई कारक होते हैं. और इसीलिए बाकी जगहों की तरह दिल्ली में भी mcd परिसीमन एक बहुत बड़ा मुद्दा था. इसपर हम शो में आगे बात करेंगे. लेकिन पहले आपको सुनाएंगे 2 दशक से भी ज़्यादा समय से MCD कवर कर रहे पत्रकार रामेश्वर दयाल की बात. जो बता रहे हैं कि दिल्ली MCD के बजट में कैसा घालमेल चल रहा था

बजट से इतर, MCD चुनाव का महत्व इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि दिल्ली के शहरी विस्तार की ज़िम्मेदारी सरकार के भीतर और बाहर कई स्तर पर बंटी हुई है. कैसे, समझिये - सभी जगहों की तरह दिल्ली में भी केंद्र और राज्य के बीच शक्तियों का बंटवारा है. लेकिन दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है. तो गृह मंत्रालय के तहत आने वाली शक्तियां सीधे केंद्र के पास हैं. दिल्ली के वरिष्ठ नौकरशाह, जिन्हें हम सीनियर ब्यूरोक्रेसी कहेंगे, उनपर नियंत्रण के लिए अदालती लड़ाई चल रही है. लेकिन फिलहाल वो केंद्र के नियंत्रण में हैं.

अगर ये स्थिति किसी ग्रामीण इलाके की होती, तो राज्य सरकार कुछ हद तक मैदानी काम करती नज़र आ सकती थी. लेकिन दिल्ली एक शहर है. इसका मतलब भारत के कानून के तहत यहां नगरीय निकाय होता है. जो कि रोज़मर्रा के काम करता है. मसलन - सफाई, बिल्डिंग परमीशन आदि. ऐसे में दिल्ली सरकार में बैठी पार्टी खुद को दिल्ली सरकार कह तो सकती है, लेकिन उसके हाथ ऊपर और नीचे दोनों तरफ बंधे रहते हैं. इसीलिए दिल्ली में राजनीति करने वाली कोई भी पार्टी जितना महत्व दिल्ली विधानसभा चुनाव को देती है, उतना ही महत्व MCD चुनाव को देती है.

दर्शक ध्यान दें कि ये सारी बातें दिल्ली के उन इलाकों पर लागू नहीं होतीं, जो नई दिल्ली नगर निगम NDMC और दिल्ली कैंट बोर्ड के तहत आते हैं. नई दिल्ली नगर निगम के क्षेत्राधिकार में ही लुटियंस ज़ोन आता है, जहां राष्ट्रपति भवन, संसद आदि हैं. माने भारत सरकार. इसीलिए NDMC का प्रशासन भी केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी के पास होता है. राजनैतिक दखल होता है, लेकिन काफी कम. रही बात दिल्ली कैंट की, तो तमाम दूसरे कैंट्स की तरह ये इलाका भी सीधे रक्षा मंत्रालय के तहत आता है.

तो यहां तक आते-आते आप समझ गए कि MCD चुनाव का महत्व इतना ज़्यादा क्यों है. अब आते हैं इस सवाल पर कि आज का स्कोर बोर्ड, एग्ज़िट पोल नतीजों से कुछ अलग क्यों नज़र आ रहा है. तो इसकी कहानी शुरू होती है, साल 2012 से. इस साल तक पूरी दिल्ली के लिए एक ही नगर पालिका थी. लेकिन तभी परिसीमन करवाकर इसे तीन हिस्सों में तोड़ दिया गया -
>उत्तरी दिल्ली नगर निगम - 104 वॉर्ड
>दक्षिणी दिल्ली नगर निगम - 104 वॉर्ड
>पूर्वी दिल्ली नगर निगम - 64 वॉर्ड
इन तीन नगर पालिकाओं के लिए चुनाव हुए और नतीजे ये रहे -
उत्तरी दिल्ली नगर निगम
>भाजपा - 59
>कांग्रेस - 29
>बसपा - 7
>अन्य - 9
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम
>भाजपा - 44
>कांग्रेस - 30
>बसपा - 5
>अन्य - 25
पूर्वी दिल्ली नगर निगम
>भाजपा - 35
>कांग्रेस - 19
>बसपा - 3
>अन्य - 7

अप्रैल के महीने में हुए इन चुनावों में तीनों नगर निगम पर भाजपा की हुई. और नवंबर के महीने में अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन कर दिया. अगले साल, माने 2013 में अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री भी बन गए. और इसीलिए 2017 में जब तीनों MCD के चुनाव हुए, मुकाबला त्रिकोणीय रहा. नतीजों पर गौर कीजिए -उत्तरी दिल्ली नगर निगम
>भाजपा - 64
>कांग्रेस - 16
>आप - 21
>अन्य - 3
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम
>भाजपा - 70
>कांग्रेस - 12
>आप - 16
>अन्य - 06
pause
पूर्वी दिल्ली नगर निगम
>भाजपा - 47
>कांग्रेस - 3
>आप - 12
>अन्य - 2

ये आंकड़े दो चीज़ें बता रहे थे. पहली तो ये कि भारतीय जनता पार्टी न सिर्फ दूसरी बार जीत गई थी, बल्कि उसने अपना प्रदर्शन बेहतर कर लिया था. दूसरी बात ये, कि कांग्रेस का सूपड़ा भले साफ नहीं हुआ, लेकिन आम आदमी पार्टी ने उससे प्रमुख विपक्षी दल की जगह छीन ली थी. अब अगला मुकाबला होना था भाजपा बनाम आम आदमी पार्टी. दो मज़बूत पार्टियां, जिनके पास दो मज़बूत नेता थे - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल, जो अब दूसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थे.

कट टू 2022. पांच साल में यमुना में बहुत सीवेज बह चुका था. अरविंद केजरीवाल एक और बार मुख्यमंत्री बन चुके थे. और नरेंद्र मोदी एक और बार प्रधानमंत्री. इस साल पांच राज्यों में चुनाव होना था - उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब. किसान आंदोलन और फिर कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की छांव में हुए पंजाब विधानसभा पार्टी में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहेगा, ये किसी से नहीं छिपा था. और नतीजे भी ऐसे ही आए. इसीलिए आम आदमी पार्टी दिल्ली की तीनों MCD के चुनावों के लिए आत्म विश्वास से भरी हुई थी. लेकिन चुनावों का ऐलान पहले टला और फिर खबर आई कि परिसीमन होगा. दिल्ली की तीनों नगर निगमों को एक कर दिया जाएगा और बनेगी एक नई और बड़ी MCD.आम आदमी पार्टी तिलमिलाई लेकिन उसके हाथ में कुछ था नहीं. प्रचार शुरू हुआ. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव लड़ रही भाजपा ने दिल्ली MCD के लिए अपने टॉप ब्रास को उतार दिया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, पार्टी अध्यक्ष नड्डा तक ने प्रचार किया. बांग्ला इलाकों में प्रचार के लिए गईं लॉकेट चैटर्जी. तो दूसरे इलाकों तेजस्वी सूर्या को भेजा गया. भाजपा ने साफ कर दिया, कि वो इसे नगर पालिका का चुनाव नहीं मानती और वो पूरी तरह गंभीर है.

इसी बीच कूड़े के पहाड़ों की यात्रा शुरू हुई. अरविंद केजरीवाल कूड़े पहाड़ों पर जा जाकर भाजपा को कोसने लगे. उनके साथ आप के दीगर नेता. नेता के साथ समर्थक. और जब एक पार्टी के समर्थक पहुंचते, तो दूसरी पार्टी वाले पीछे कैसे रह जाते. तब होती धक्का-मुक्की. दिल्ली MCD चुनाव में बातें फ्रीबीज़, शिक्षा और राशन की भी हुई, लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा अगर कोई था, तो वो कूड़ा ही था. इसी माहौल में मतदान हुआ. और अब आए हैं नतीजे. आम आदमी पार्टी 134 वॉर्ड्स में जीत गई है. इन्हें कैसे देखा जाए.

जैसा कि हमने पहले कहा था, परिसीमन को लेकर दिल्ली में बहुत बहस हुई थी. लेकिन क्या ये पहली बार हुआ था. और जब पिछली बार हुआ था, तब नतीजे क्या रहे थे? और लाख का सवाल ये, कि ये परिसीमन अचानक करवाया किसने. डॉ दयाल ने सत्ता पक्ष की तरफ इशारा किया है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस इस बात को सीधे भाजपा का नाम लेकर कहते हैं. क्या इस बात में दम है? क्या महज़ नक्शा बदलने से चुनाव का नतीजा बदल जाता है. सुनिए कुमार कुणाल क्या बता रहे हैं - दिल्ली MCD में आम आदमी पार्टी जीत तो गई है, लेकिन उसे एक बड़ा विपक्ष मिल गया है. फिर दिल्ली mCD में दलबदल कानून लागू नहीं होता है. इसीलिए भाजपा और आदम आदमी पार्टी, दोनों नर्वस हैं. क्योंकि इसका मतलब ये हुआ कि पार्षद जी, जब जो चाहें, कर सकते हैं और उनका कुछ बिगड़ेगा भी नहीं. फिर दिल्ली MCD में व्हिप या सचेतक नहीं होता, जिसका कहा न मानने पर पार्टी कार्रवाई कर पाए. ऐसा क्यों है, इसका स्पष्ट जवाब तो नहीं है. लेकिन ये साफ है कि इस चूक को सुधारने की कोशिश की नहीं गई. साफ है कि अगर मेयर का चुनाव धवनिमत से होता है, तभी कोई पार्टी अपने संख्याबल पर चुनाव जीत पाएगी. अगर ये सीक्रेट बैलेट से हुआ, तब ''फ्लोर मैनेजमेंट'' देखने को मिलेगा. और ये ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है. चाहे कोई कितना ज़ोर लगा ले. फिर दिल्ली में MCD का कार्यकाल तो 5 साल का होता है, लेकिन मेयर पांच बार चुना जाता है. जी हां. हर साल मेयर का चुनाव  होता है. और हर साल दिल्ली की पार्टियां माननीय पार्षदों का रूठना मानना झेलती हैं. फिर दिल्ली की अलग अलग ज़ोन्स के चुनाव भी होते हैं, जिनमें पार्षद वोट डालते हैं. तभी तो दिल्ली में कोई वेतन न पाने वाले पार्षद चुनाव जीतने के लिए बेतहाशा पैसा खर्च कर देते हैं. क्योंकि जनता की सेवा का ''फल'' उन्हें मिलता रहता है. फिर बिल्डिंग परमीशन जैसे छोटे-मोटे काम तो होते ही हैं.
इसीलिए जिस तरह के आंकड़े नज़र आ रहे हैं, उनसे न आम आदमी पार्टी बहुत खुश है, और न ही भाजपा बहुत हतोत्साहित. इसीलिए हमने भी कहा था कि स्टेशनरी वालों का धंधा चलता रहेगा. क्योंकि कैलकुलेटर की ज़रूरत हर कुछ महीने में पड़ती रहेगी. लेकिन फिलहाल केजरीवाल जीत का ही इज़हार कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी की ओर से आदेश गुप्ता ने अपनी बात रखी. वैसे जयराम रमेश कह चुके हैं कि लक्ष्य चुनाव नहीं है. लेकिन MCD तो चुनाव ही था. और पार्टी लड़ी भी.

दिल्ली MCD के नतीजे ये स्थापित करते हैं कि आम आदमी पार्टी ने अपनी तमाम विफलताओं से सीखते हुए इलेक्शन मैनेजमेंट मज़बूत कर लिया है. एक वक्त कहा जाता था कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के मेयर वाली मानसिकता से निकलने की आवश्यकता है. अब केजरीवाल दिल्ली का मेयर चुनने की स्थिति में हैं. और उन्होंने ये भी दिखाया है कि वो दिल्ली के अंदर और बाहर दोनों तरह के चुनाव जीत सकते हैं. इसका मतलब ये भी है कि वो अब ये बहाना नहीं बना सकते, कि उनके हाथ में चीज़ें नहीं हैं. जिन कूड़े के पहाड़ों को हटाने का वो दावा कर रहे हैं, वो कितने कम होंगे, ये पूरी दिल्ली को नज़र आएगा. और हमारे माध्यम से, पूरे देश को भी. रही बात भाजपा की, तो उसे वैसा नुकसान तो नहीं हुआ, जिसकी बात कही जा रही थी. लेकिन उसकी अजेय छवि पर असर ज़रूर पड़ा है.

दी लल्लनटॉप शो: दिल्ली MCD चुनाव अरविंद केजरीवाल जीते, लेकिन अमित शाह का ये दांव काम कर गया