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दलित परिवार का 2 साल का बच्चा मंदिर में घुस गया तो 25 हजार का जुर्माना ठोक दिया गया!

परिवार से कहा गया कि इस पैसे से मंदिर का शुद्धीकरण किया जाएगा.

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ये प्रतीकात्मक तस्वीर है. (साभार- पीटीआई)
20 मार्च 1927. उस दिन महाराष्ट्र के महाड़ में बने चवदार तालाब में उतर पानी पीने का 'दुस्साहस' कर डॉ. भीमराव आंबेडकर ने तहलका मचा दिया था. तहलका क्यों मच गया? क्योंकि कथित उच्च जाति के लोगों ने इस तालाब पर दलितों के आने और यहां से पानी लेने पर रोक लगा रखी थी. लेकिन उस दिन आंबेडकर ने इस बकवास प्रथा को खत्म कर दिया. लेकिन इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी. अगड़ी जाति के लोगों को बाद में इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने बीआर आंबेडकर के साथ तालाब का पानी पीने वाले दलितों पर हमला कर दिया. उन्हें बुरी तरह पीटा. और फिर तालाब का शुद्धीकरण करवाया गया. अब जो खबर आपको बताने जा रहे हैं, वो इसी जानकारी से जुड़ी है. ये बताती है कि चवदार तालाब की घटना को 94 साल गुजर गए, लेकिन ऊंची जाति के वर्चस्व वाले इलाकों में आज भी दलितों पर पाबंदियां हैं. दरअसल, बीते दिनों कर्नाटक के कोप्पल जिले में एक वाकया हुआ. यहां के मियापुर गांव के एक मंदिर में एक दलित परिवार का 2 साल का बच्चा मंदिर में चला गया था. इस पर मंदिर का पुजारी और आसपास के अगड़ी जाति के लोग ऐसा बिफरे कि कथित रूप से दलित परिवार पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया गया. किसलिए? मंदिर के शुद्धीकरण के लिए. इंडिया टुडे से जुड़े नागार्जुन की रिपोर्ट के मुताबिक, गांव के लोगों ने बताया कि बीती 4 सितंबर को दलित परिवार प्रार्थना के लिए मंदिर आया था. अंदर नहीं, बाहर से ही. वे लोग जब प्रार्थना कर रहे थे तो बच्चा मंदिर के भीतर की तरफ भाग गया. नागार्जुन की रिपोर्ट के मुताबिक, गांव वालों का कहना है कि बच्चे के मंदिर में आने पर वहां के पुजारी और अन्य लोगों ने आपत्ति जताई थी. उन्हें इससे इतनी दिक्कत हो गई कि 11 सितंबर को परिवार पर जुर्माना ठोक दिया गया. पूरे 25 हजार रुपये का. कहा कि इस पैसे से मंदिर का शुद्धीकरण करेंगे. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस घटना को लेकर बच्चे के पिता चंद्रू का कहना है,
"उस दिन मेरे बेटे का जन्मदिन था. हम हमारे घर के सामने के ही अंजनीय मंदिर में प्रार्थना करना चाहते थे. वहां पहुंचने पर बारिश शुरू हो गई तो मेरा बेटा मंदिर में घुस गया. बस यही हुआ."
हालांकि जुर्माना लगाने वाली बात जब स्थानीय प्रशासन तक पहुंची तो उसने हस्तक्षेप किया. अधिकारियों ने मामले को सुलझाया और जुर्माना लगाने वालों को चेतावनी भी दी. वहीं, चंद्रू के समाज के लोगों ने भी विरोध प्रदर्शन किया और पुलिस से शिकायत की. हालांकि परिवार ने किसी तरह की एफआईआर दर्ज कराने से इन्कार कर दिया. बताया गया है कि वे नहीं चाहते थे कि गांव की शांति में इससे खलल पड़े.