छत्तीसगढ़ के जंगलों में इस मौसम के दौरान अक्सर आग की घटनाएं रिपोर्ट की जाती हैं. इसलिए इसे 'फायर सीजन' भी कहा जाता है. आग की इन घटनाओं के कारण कभी प्राकृतिक होते हैं, तो कई बार मानवीय भूल भी इसकी वजह होती है. आग लगने की वजह छत्तीसगढ़ स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड मेंबर मीतू गुप्ता कहती हैं कि गर्मी के सीजन में यहां जंगलों में आग लगनी शुरू हो जाती है. इसके पीछे वो मुख्य रूप से दो वजहें मानती हैं. उन्होंने दी लल्लनटॉप को बताया,
"आदिवासी लोग महुआ इकट्ठा करने के लिए पेड़ के नीचे आग लगाते हैं. ये इसलिए किया जाता है क्योंकि इससे पेड़ के नीचे की जगह साफ हो जाती है और महुआ चुनने में आसानी होती है. इसके कारण कभी-कभी आग पूरे जंगल में फैल जाती है. दूसरा कारण प्राकृतिक है. जब जंगल सूखा रहता है तो सूखे पेड़ों के आपस में घर्षण के कारण चिंगारी पैदा होती है. इससे भी आग जंगल में फैलती है."वन विभाग के एक अधिकारी ओपी यादव ने हमें बताया कि आज की तारीख में अलग-अलग जिलों में 250 जगहों पर आग लगी हुई है. उन्होंने कहा कि जो फॉरेस्ट सर्किल सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, उनमें जगदलपुर, सरगुजा प्रमुख हैं. छत्तीसगढ़ वन विभाग के मुताबिक, सिर्फ डेढ़ महीने में 8,000 से ज्यादा आग की घटनाएं रिपोर्ट हो चुकी हैं. इसके कारण 16.87 वर्ग किलोमीटर जंगल क्षेत्र प्रभावित हुआ है.
हालांकि आग लगने पर उसे पहले जल्दी बुझा लिया जाता था. लेकिन चूंकि इस बार 21 मार्च से ही वनकर्मी हड़ताल पर हैं, इसलिए आग पर काबू पाने में देरी हो रही है. आग का फैलाव दूर-दूर तक पहुंच जा रहा है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) के रियल टाइम डेटा के मुताबिक, पिछले 6-8 दिनों से छत्तीसगढ़ के जंगलों में आग लगने की बड़ी घटनाएं होना जारी हैं. इनकी संख्या 112 तक बताई गई है. ये रिपोर्ट लिखे जाने तक मंगलवार, 29 मार्च को ही 30 बड़ी घटनाएं दर्ज की गई थीं.
आग लगने के दृष्टिकोण से संवेदनशील जंगल क्षेत्र (फोटो- फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया)
क्यों हड़ताल पर हैं वन कर्मचारी? छत्तीसगढ़ के वन कर्मचारी वेतन में बढ़ोतरी, दैनिक वेतन पाने वालों को रेगुलर करने, पुरानी पेंशन योजना का लाभ समेत कुल 12 सूत्री मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. इस आंदोलन का नेतृत्व छत्तीसगढ़ वन कर्मचारी संघ कर रहा है. मीतू गुप्ता ने बताया कि डिप्टी रेंजर से लेकर नीचे के सभी फॉरेस्ट स्टाफ हड़ताल पर हैं और कोई भी जंगल में आग बुझाने के लिए नहीं हैं. उन्होंने कहा कि आग नहीं रुकने के पीछे ये एक बड़ा कारण है. जंगली जानवर प्रभावित कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी सामने आया है कि बड़े इलाके में आग फैलने की वजह से जंगली जानवर आबादी वाले इलाके में आ रहे हैं. वन विभाग के अधिकारी ओपी यादव ने कहा,
"ऐसा नहीं कह सकते हैं कि आग के कारण ही जानवर गांवों में आ रहे हैं. वे हर साल गर्मी के सीजन में पानी पीने या दूसरे कारणों से भी निकलते रहते हैं. अभी तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई कि आग से आबादी को कोई नुकसान हुआ हो, आग जंगल के भीतर ही बुझा ली जाती है."हालांकि मीतू गुप्ता इस पर कहती हैं,
"आग लगने से जानवरों का प्रभावित होना स्वाभाविक है. जब भी आग लगने के बाद आप जंगल जाते हैं तो वहां चिड़ियों के घोंसले, जानवर जले हुए मिलते हैं. छत्तीसगढ़ के जंगलों में हर तरह के जानवर और पक्षी हैं. वे आबादी तक पहुंचेंगे तो आबादी भी परेशान होगी. हालांकि वन विभाग कभी इस तरह का डेटा इकट्ठा नहीं करता है."आग लगने की घटनाएं बढ़ीं फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की स्टडी बताती है कि जंगलों में आग लगने की घटनाएं पिछले सालों में लगातार बढ़ी हैं. छत्तीसगढ़ के कुल जंगल का 2,140 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र या 4 फीसदी क्षेत्र आग लगने के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील है. वहीं 3,327 वर्ग किलोमीटर या 6 फीसदी जंगल क्षेत्र उच्च संवेदनशील है. 2004-2017 के बीच छत्तीसगढ़ में 25,995 फॉरेस्ट फायर पॉइंट डिटेक्ट किए गए थे जो मिजोरम और ओडिशा के बाद सबसे ज्यादा थे.
छत्तीसगढ़ सरकार 15 फरवरी से 15 जून तक के समय को फायर सीजन मानती है. पिछले साल फायर सीजन के दौरान 21,275 आग की घटनाएं दर्ज की गई थीं. इसके कारण 142 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित हुआ था. वहीं 2020 में छत्तीसगढ़ के जंगलों में सिर्फ 4,713 आग की घटनाएं रिपोर्ट की गई थीं.
जंगलों में आग को रोकने की जिम्मेदारी प्राथमिक रूप से राज्य सरकारों के ऊपर है. हालांकि केंद्र सरकार भी जंगलों में लगी आग को रोकने के लिए राज्यों की वित्तीय रूप से मदद करती है. राज्य सरकारें जंगलों की आग को रोकने के लिए सालाना एक योजना भी तैयार करती हैं. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में बताया था कि 2018-21 के दौरान छत्तीसगढ़ सहित राज्यों को करीब 125 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई थी.