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जानिए संविधान और कानून के ये 8 एक्सपर्ट्स आर्टिकल 370 पर क्या कहते हैं

आइए अलग-अलग सोर्सेज़ से सभी का पक्ष समझने की कोशिश करते हैं.

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अनुच्छेद 370 को हटाना सही था या गलत, अब ये बहस पुरानी पड़ती जा रही है. लेकिन इसके बाद कश्मीर में आम लोगों की ज़िंदगी में जो भूचाल आया है, वो पुराना नहीं पड़ा है.
5 अगस्त, 2019. केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया. आर्टिकल 370 में बदलाव करके राज्य को मिला विशेष दर्ज़ा खत्म कर दिया. इस बारे में कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. कुछ राय तो हम भी बता चुके हैं आपको. अब हमने क्या किया है कि देश-विदेश के अखबारों में छपी ऐसी कुछ विशेषज्ञ टिप्पणियां छांटी हैं और वही आपको पढ़ा रहे हैं. 1. ए जी नूरानी (संवैधानिक जानकार, कश्मीर पर कई किताबें लिखी हैं) ने हफिंग्टनपोस्ट को बताया-
ये बिल्कुल असंवैधानिक फैसला है. 1956 में संविधान सभा के भंग होने के बाद आर्टिकल 370 को रद्द करने की पावर भी खत्म हो गई.
2. ब्रिटेन की पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी में कानून के प्रफेसर शुभंकर दाम ने न्यू यॉर्क टाइम्स को बताया-
मेरा मानना है कि राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन से लिया गया केंद्र सरकार का ये फैसला अवैध है. ये अधिकारक्षेत्र का मसला है. क्या भारत सरकार के पास ऐसा करने की ताकत है?
3. सुभाष कश्यप संवैधानिक विशेषज्ञ हैं. उन्होंने न्यूज़ एजेंसी ANI से कहा-
संवैधानिक तौर पर इस फैसले में कोई कमी नहीं. इसमें कोई कानूनी या संवैधानिक ग़लती नहीं खोजी जा सकती है.
4. राजीव धवन कॉन्स्टिट्यूशनल एक्सपर्ट हैं. उन्होंने न्यूज़ 18 को बताया-
अनुच्छेद 370 खत्म नहीं किया जा सकता. अगर सरकार ऐसा करती है, तो जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय का आधार ही खतरे में आ जाएगा. हालांकि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय स्थायी था.
5. बी ए खान जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रहे हैं. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया-
अगर अनुच्छेद 370 को खत्म किया जाता है, तो तकनीकी और कानूनी तौर पर जम्मू-कश्मीर के भारत में हुए विलय की नींव भी खत्म हो जाएगी.
6. शांति भूषण मशहूर वकील हैं. कानून मंत्री रह चुके हैं. उन्होंने न्यूज़ 18 को बताया-
संविधान के अनुच्छेद 368 से संसद को संविधान में संशोधन करने की ताकत मिलती है. मगर केशवानंद भारती केस में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, संविधान के मूल स्वरूप में संशोधन नहीं कर सकती है संसद. आर्टिकल 370 रद्द करने से पहले सुप्रीम कोर्ट की राय लेना ज़रूरी है. आर्टिकल 370 संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का हिस्सा है कि नहीं, इसे लेकर कई शंकाएं हैं.
7. जयदीप गुप्ता वरिष्ठ वकील और संवैधानिक विशेषज्ञ हैं. उन्होंने HT को बताया-
शुरुआती तौर पर जो कानूनी सवाल उठता है वो ये है कि क्या कोई कॉन्स्टिट्यूशनल प्रोविज़न, आर्टिकल 367, राष्ट्रपति के आधेश से संशोधित हो सकता है? आर्टिकल 370 के मुताबिक, संविधान सभा के प्रस्ताव के बाद राष्ट्रपति आदेश जारी कर सकते हैं. चूंकि जम्मू-कश्मीर के लिए संविधान सभा 1957 में ही खत्म हो गई थी, तो अब इस कंडिशन को पूरा कर पाना मुमकिन नहीं है. एक तरीका ये हो सकता है कि ये फंक्शन राज्य विधानसभा के रास्ते पूरा किया जाए. मगर ये सवाल तो हमेशा उठाया जा सकता है कि राज्य विधानसभा की गैरमौजूदगी में क्या राज्यपाल आम जनता की इच्छा को अभिव्यक्त करने जैसा असाधारण काम कर सकते हैं? विधानसभा के सामान्य काम तो कर सकते हैं राज्यपाल, मगर आर्टिकल 370 जैसे गंभीर मुद्दे? सवाल तो उठाए जा सकते हैं.
8. वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने NDTV से कहा-
जहां तक आर्टिकल 370 और राष्ट्रपति का जो आदेश है, उसका सवाल है तो आर्टिकल 370 के अंदर ही ऐसी व्यवस्था थी. आर्टिकल 370 की हेडिंग ही थी- टेम्पररी प्रोविज़न. अभी ये हुआ है कि 1954 के राष्ट्रपति के आदेश को हटा दिया गया है.

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