पांच हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर ज़मीन पर बैठा हुआ, 25 साल का एक नौजवान अपने सामने रखी बोतल को घूर रहा था. बोतल में कुछ आख़िरी घूंट बची थीं. आगे रास्ता लम्बा था इसलिए पानी पीने का ख़्याल छोड़कर उसने एक बार फिर अपने होंटों को जीभ से गीला कर लिया. कुछ 12 घंटे बाद वो अपनी मंज़िल के पास पहुंचा. पानी बचा था लेकिन अब प्यास दूसरी थी. NDA की परीक्षा में इंटरव्यू के दौरान एक बार उससे पूछा गया था, "फ़ौज में क्यों आना चाहते हो". तब उसने जवाब दिया था, परम वीर चक्र जीतने के लिए, और सब हंस पढ़े थे. आज मुस्कुराने की बारी उसकी थी. 80 डिग्री की चढ़ाई चढ़ते हुए बड़ी-बड़ी पलकों और भूरी आंखो वाले उस लड़के ने एक के बाद एक गोले दागे और दुश्मन के चार बंकर तबाह कर डाले. जब गोले ख़त्म हो गए, उसने अपनी कमर से वो हथियार निकाला जो उसकी रेजिमेंट की पहचान था. कुछ साल पहले तक एक बकरी का खून देख, उसने 12 बार अपने हाथ धोए थे. और आज वो खुखरी यूं चला रहा था, मानो सामने काग़ज़ के टुकड़े रखे हुए हों. ये कारगिल की ज़मीन थी. और जो शख़्स इस समय दुश्मन से लोहा ले रहा था, उसका नाम था, लेफ़्टिनेंट मनोज कुमार पांडे. या कहें परम वीर चक्र विजेता लेफ़्टिनेंट मनोज कुमार पांडे.
तारीख: कारगिल विजय दिवस पर सुनिए कारगिल में गोरखा सैनिकों के शौर्य की कहानी
80 डिग्री की चढ़ाई चढ़ते हुए बड़ी-बड़ी पलकों और भूरी आंखो वाले उस लड़के ने एक के बाद एक गोले दागे और दुश्मन के चार बंकर तबाह कर डाले.
Advertisement
Advertisement
Advertisement