शाह बानो के पास कमाई का कोई जरिया नहीं था इसलिए उन्हें धारा 125 के तहत गुजारा मांगने का हक़ बनता था. लेकिन चूंकि शादी या डायवोर्स का केस सिविल केस होता है. इसलिए इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ भी लागू होता था. जिसके बारे में हमने पहले ही आपको बताया कि उसमें सिर्फ इद्दत यानी 3 महीने तक भत्ते का प्रावधान है. जब सुप्रीम कोर्ट में धारा 125 की बात उठी तो जवाब में मुहम्मद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने CrPC की एक और धारा का हवाला दिया. धारा 127. क्या कहती है ये धारा? देखिए वीडियो.
तारीख: क्या था शाह बानो केस जिसने भारतीय राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया?
इसको लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने CrPC की कौन सी धारा का हवाला दिया.
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