शरीर में चुभे धातु के पचास तीखे टुकड़े, टूटी हुई पसलियां, सुनने में परेशानी, कुहनी और घुटनों की चोटें, ज़ख्मी लिवर और यूरिनरी ब्लैडर सरीखी परेशानियों से घिरे होने के बावजूद मेजर सिंह चुटकी लेते हुए कहते हैं, "मेरे शरीर में हर चीज टूटी हुई है, सिवाय मेरी मुस्कान के!" आज बात मेजर डी. पी. सिंह की, जो कारगिल युद्ध में अपना एक पांव गंवा चुके हैं. जिनके अस्पताल में भर्ती होते ही डॉक्टर ने साथी फौजियों से कहा था, आप इन्हें मोर्चरी में ले जाइये. लेकिन वो जिए और चैम्पियन मैराथन रनर बने. आज हम प्रभात प्रकाशन से आई रचना बिष्ट रावत की किताब, “ताकत वतन की हमसे है” से सुनाएंगे, मेजर डीपी सिंह की कहानी. देखें वीडियो.
किताबी बातें: कारगिल युद्ध में पैर खोया, डॉक्टर ने मरा माना, फिर ब्लेड लगाकर मैराथन जीती
जिनके अस्पताल में भर्ती होते ही डॉक्टर ने साथी फौजियों से कहा था, आप इन्हें मोर्चरी में ले जाइये.
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