The Lallantop
Logo

एक कविता रोज़ में सुनिए वीरेन डंगवाल की कविता - प्रेम तुझे छोड़ेगा नहीं!

नीचे आम के धूल सने पोढ़े पेड़ पर/ उतरा है गमकता हुआ वसन्तो किंचित शर्माता

Advertisement

आज़ादी से 10 दिन पहले आ गए दुनिया में. 5 अगस्त 1947. जगह-गढ़वाल, उत्तराखंड. नाम-वीरेन डंगवाल. पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त और वास्को पोपा की लिखी कालजयी रचनाओं का अनुवाद किया. ख़ुद इनकी रचनाओं का अनुवाद भी बांग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, मलयालम और उड़िया में छपा. ख़ूब लिखा और बड़े अख़बार के संपादक भी रहे. ज़िंदगी को जिस बारीक नज़र से इन्होंने देखा वो इनकी रचनाओं में झलकता है. समोसे पर यूं लिखा कि मुंह में आलू का तीख़ापन आ जाए. जिस शहर से गुज़रे उसे निगाह और ज़ेहन दोनों में बसाए रखा. इनके शब्दों की रेल कानपुर, इलाहाबाद, फैज़ाबाद, अयोध्या, नैनीताल, नागपुर होते हुए न जाने कहां-कहां रुकती है. कभी प्रेम का स्टेशन आता है तो कभी 1857 की क्रांति हुंकार भरती है. एक कविता रोज़ में आज सुनिए वीरेन डंगवाल की कविता - प्रेम तुझे छोड़ेगा नहीं!

Advertisement

Advertisement

Advertisement