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कहानी उस आतंकी की जिसके बारे में कहा जाता था कभी पकड़ा नहीं जाएगा लेकिन मारा गया

इंजीनियरिंग का लड़का कैसे बन गया कश्मीर घाटी का सबसे दुर्दांत आतंकवादी?

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मूसा का मारा जाना इंडियन सिक्यॉरिटी फोर्सेज़ की बहुत बड़ी जीत है.
ज़ाकिर राशिद बट. उर्फ़ ज़ाकिर मूसा. कश्मीर घाटी का सबसे दुर्दांत आतंकवादी. जिसके बारे में घाटी के अंदर किस्से चलते थे. लोग कहते थे, सब पकड़े जाएं मगर मूसा नहीं पकड़ा जाएगा कभी. मूसा मारा गया. ये खबर आई 23 मई को. जब पूरा देश लोकसभा चुनावों की गिनती जानने में मशरूफ़ था. मूसा का मारा जाना इंडियन सिक्यॉरिटी फोर्सेज़ की बहुत बड़ी जीत है. वजह कि मूसा कभी हाथ ही नहीं आता था. वो घने जंगलों में छुपकर रहता. लोग कहते, उसके दिमाग में जंगलों के रास्ते गुदे हैं. वो उन्हें जितनी अच्छी तरह जानता है, वैसे शायद ही कोई जानता हो. मूसा के बारे में किस्से कहे जाते थे. लोग कहते, वो जब तक न चाहे कोई उस तक नहीं पहुंच सकता. मूसा महीनों गायब रहता. महीनों तक उसकी ख़बर नहीं आती.
मूसा के मूसा बनने का बैकग्राउंड ज़ाकिर राशिद बट के ज़ाकिर मूसा बनने की कहानी है. 2008 की गर्मियां बहुत गर्म रहीं घाटी के अंदर. आज जो पत्थरबाजी इतना रूटीन हो गई है, ये तब शायद पहली बार हेडलाइन्स में आई. चीजें और बेकाबू हुईं 2010 में. तारीख, 30 अप्रैल. उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में माछिल है. वहां सेना ने तीन लोगों को मारा. आर्मी का कहना था वो पाकिस्तानी घुसपैठिये थे. मगर घाटी के लोगों का इल्ज़ाम था, ये फेक एनकाउंटर है. मालूम चला कि जो तीनों मारे गए हैं, वो लोकल लड़के थे. इसके बाद कश्मीर तो बस सुलग गया. लोग सड़कों पर उतर आए. 11 जून को ऐसी ही एक भीड़ को काबू में करने के लिए सुरक्षाबलों ने आंसू गैस छोड़ा. इसमें एक स्कूल के लड़के तुफैल मट्टू मारा गया. फिर तो हालात बदतर हो गए. पूरी घाटी जैसे सड़कों पर आ गई. सबसे ज्यादा भागीदारी रही स्कूली लड़कों की. जो बालिग भी नहीं हुए थे. इनका हथियार था पत्थर. कई लड़कों पर FIR हुई. कश्मीरी कहते हैं, कई ऐसे लड़कों का भी नाम जोड़ दिया गया जिनका पत्थरबाजी से कोई लेना-देना नहीं था.
इंजिनियरिंग कर रहा ज़ाकिर राशिद बट ज़ाकिर मूसा बन गया इन्हीं में से एक था अवंतिपोरा में रहने वाला 16 बरस का ज़ाकिर राशिद बट. पैदाइश का साल 1994. पापा अब्दुल राशिद बट सरकारी नौकरी में थे. उसने 12वीं पास करके चंडीगढ़ के एक कॉलेज में दाखिला लिया था. सिविल इंजिनियरिंग से बीटेक रहा था. जब कश्मीर उबला, उस समय वो गर्मी की छुट्टियों में घर आया हुआ था. ठीक-ठाक था पढ़ने में, मगर कैरम ज्यादा अच्छा खेलता था. उसके घरवाले कहते हैं, उसने पत्थरबाजी नहीं की. कि उसे बेमतलब टॉर्चर किया गया. सेना-प्रशासन कहते हैं, वो था पत्थरबाजों में. खैर. 2013 में एक दिन वो घर छोड़कर निकल गया. कश्मीर में किसी के मिलिटेंट बनने की बात मालूम चल जाती है बाकी लड़कों को. कुछ ही दोनों में सबको मालूम चल गया, ज़ाकिर राशिद बट अब ज़ाकिर मूसा बन गया है. हिजबुल मुजाहिदिन का हो गया है. उस समय वो 19 का हुआ ही था.
ये बुरहान वानी के जनाजे की तस्वीर है (फोटो: रॉयटर्स)
ये बुरहान वानी के जनाजे की तस्वीर है (फोटो: रॉयटर्स)

फिर उसने हुर्रियत के नेताओं का सिर काटने की धमकी दी मूसा बहुत जल्दी आगे बढ़ा. वो बुरहान वानी वाले ग्रुप में था. बुरहान के साथ कुछ तस्वीरें भी आईं उसकी. इनका स्टाइल अलग था. ये लोग AK-47 हाथ में लेकर सोशल मीडिया पर तस्वीरें डालते. 8 जुलाई, 2016 को बुरहान मारा गया. वो दक्षिणी कश्मीर में हिजबुल का कमांडर था. उसके बाद ये जगह मूसा ने संभाली. मगर फिर वो रेडार से गायब हो गया. इसके कुछ महीनों बाद एक ऑडियो मेसेज आया उसका. इसमें धमकी थी. हुर्रियत नेताओं की सिर काट फेंकने की. मूसा ने उन्हें धमकाते हुए कहा था कि अगर वो कश्मीर के अंदर इस्लामिक शासन लागू करने के उसके मकसद के बीच में आए, तो वो उनका सिर कलम कर देगा. हिजबुल ने इस धमकी के लिए मूसा को खरी-खोटी सुनाई. इसके बाद ही हिजबुल और उसके रास्ते अलग हो गए.
फिर उसका एक ऑडियो आया. उसने कहा, अब वो दुनियाभर में ख़िलाफ़त (ख़लीफ़ा की सत्ता) कायम करने की लड़ाई लड़ रहा है. 'शरीयत या शहादत' ये नारा था उसका. मूसा ने 'अंसार ग़ज़वात-उल-हिंद' बनाया. इसकी वफ़ादारी सीधे अल-क़ायदा से थी. ओसामा बिन लादेन हीरो था उसका.
मूसा ने कहा, कश्मीर की दिक्कत मज़हब से जुड़ी है, राजनीति से नहीं. उसने न केवल हुर्रियत को, बल्कि हिज़बुल और लश्कर-ए-तैयबा, तीनों को निशाने पर रखना शुरू किया. इनकी तरह वो न तो आज़ाद कश्मीर चाहता था, न पाकिस्तान से मिलना चाहता था. वो कश्मीर को एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक साम्राज्य का हिस्सा बनाना चाहता था, जहां बस शरीयत की जगह होगी. उसने सोशल मीडिया पर तीन पन्नों का एक बयान निकाला. इसमें लिखा था-
हमारा जिहाद न कश्मीर को अलग मुल्क बनाने के लिए है, न संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को पास करवाने के लिए. जनमत संग्रह करवाना भी हमारा मकसद नहीं. हम बस अल्लाह की सत्ता कायम करने को जिहाद कर रहे हैं.
फिर मूसा का एक वीडियो मेसेज भी आया सोशल मीडिया पर. इसमें वो कह रहा था-
राष्ट्रवाद और लोकतंत्र, इनकी इजाजत नहीं है इस्लाम में. जब हम पत्थर उठाएं या बंदूक चलाएं, तो हमारा लक्ष्य ये न हो कि हम कश्मीर के लिए लड़ रहे हैं. हमारा इकलौता लक्ष्य है इस्लाम की सर्वोच्चता कायम करना और शरिया लागू करना.
कश्मीर के मोस्ट-वॉन्टेड आतंकियों में था ज़ाकिर मूसा. ये NIA की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट है. शायद अभी ये पेज अपडेट नहीं हुआ.
कश्मीर के मोस्ट-वॉन्टेड आतंकियों में था ज़ाकिर मूसा. ये NIA की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट है. शायद अभी ये पेज अपडेट नहीं हुआ.

मूसा के मामले में भारत और पाकिस्तान एक सा सोचते थे मूसा ज्यादा ख़तरनाक था. न केवल वो आतंकवादी था. बल्कि वो कश्मीरी युवाओं को रेडिकलाइज़ भी कर रहा था. वो अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट को कश्मीर के अंदर पैर जमाने में मदद दे रहा था. बुरहान कश्मीर की आज़ादी की बात करता था. बाकी धर्मवाले निशाने पर नहीं थे उसके. मगर मूसा के लिए सेकुलरिजम की कोई जगह नहीं थी. उसके तौर-तरीके भी बदल गए. पहले का स्टाइलिश, फैशनेबल कपड़ों का शौकीन मूसा दाढ़ी बढ़ाए अलग तरह के कपड़ों में नज़र आने लगा. ये मूसा का ही असर था कि घाटी में कई जगह मारे गए आतंकियों को पाकिस्तानी झंडे में लपेटने की जगह IS के झंडे में लपेटने का ट्रेंड शुरू हुआ. घाटी में जगह-जगह दीवारों पर उसका नाम लिखने लगे लड़के. मूसा ही वो पॉइंट था जहां आकर भारत, पाकिस्तान, हिजबुल और लश्कर, चारों एक सा सोचते थे. इन सबको ही मूसा से खतरा था. मूसा के मरने में सबका ही फायदा था.
कश्मीर में किंवदंती टाइप बन गया मूसा कश्मीर घाटी में मूसा की कहानियां ऐसे सुनाई जाने लगीं, जैसे जिन्न की सुनाई जाती हैं. वो लोकप्रिय हो रहा था, मगर उसका ग्लोबल इस्लामिक रेडिकलिजम ऐंटी-कश्मीर भी माना जा रहा था. हिजबुल और लश्कर उसके खिलाफ थे ही. भारत ने भी 2016 में ऑपरेशन आल-आउट शुरू कर दिया. खूब सारे मिलिटेंट्स मारे गए. मूसा के संगठन के भी कई लोग मारे गए. 2018 में पुलिस ने कहा कि उसके ग्रुप में बस चार लोग ज़िंदा बचे हैं. पुलिस कहती, वो बस किवंदंतियों में ही मजबूत है. ज़मीन पर उसके संगठन का नेटवर्क नहीं है. इसका एक मतलब ये भी है कि मूसा लोगों की फैंटेसी में, उनके दिमाग में बैठ गया था. किंवदंतियां ऐसे ही तो नहीं बनती. किस्से हैं कि सुरक्षाबलों को खबर मिलती कि मूसा फलां इलाके में है. वो इलाके को घेरते, लेकिन लोकल लोगों की मदद से मूसा बच निकलता.
ज़ाकिर मूसा शुरुआत के दिनों में इस तरह की तस्वीरें पोस्ट करता था. बाद के दिनों में उसकी वेशभूषा बदल गई (फोटो: सोशल मीडिया)
ज़ाकिर मूसा शुरुआत के दिनों में इस तरह की तस्वीरें पोस्ट करता था. बाद के दिनों में उसकी वेशभूषा बदल गई (फोटो: सोशल मीडिया)

उसका ज़िंदा होना ख़तरनाक था. मरना भी ख़तरनाक है इसी तरह बचते-बचाते मूसा हाल के दिनों में घाटी के अंदर सबसे लंबा जीने वाला आतंकी बन गया. मिलिटेंट्स की ज़िंदगी ज्यादा नहीं होती. हद से हद डेढ़ से दो साल. सात साल बाद उसके नाम पर फुल स्टॉप लग गया है. 21 मई को एक तीनमंजिला घर में फंस गया वो. अंदर वो, बाहर सुरक्षाबल. इस बार मूसा भाग नहीं पाया. अब जो वो मार डाला जा चुका है, तो कश्मीरी सहमे हुए हैं. वहां कर्फ्यू लग गया है. डर है कि एक बार फिर कश्मीर सुलग उठेगा. फिर से बुरहान वानी के टाइम वाली हिंसा होगी. ये डर सेना और सरकार को भी होगा. ज़िंदा मूसा से अलग खतरे थे. मारे गए मूसा से अलग खतरे हैं. ये डर भी है कि कहीं मूसा के मारे जाने से कश्मीर में मिलिटेंसी जॉइन करने वालों की तादाद न बढ़ जाए. ऐसा कोई पहली बार नहीं होगा.


वेस्ट बंगाल में ऐसे नतीजे आएंगे बीजेपी ने सोचा भी नहीं होगा!