आज 22 फरवरी है और आज की तारीख़ का संबंध है साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई उस जंग से जिसमें भारत को बांग्लादेश की आजादी के नायक का दर्जा मिला, जबकि पाकिस्तान को हार मिली. और मजबूर होकर बांग्लादेश को मान्यता देनी पड़ी.
बीते साल 6 दिसंबर 2021 को बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ अब्दुल एके मोमेन एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. जगह बांग्लादेश का नेशनल प्रेस क्लब. और कार्यक्रम का बैकग्राउंड भारत और बांग्लादेश के राजनयिक संबंधों की गोल्डन जुबली.
मोमेन ने साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश की आजादी पर पाकिस्तानी वर्जन बताते हुए कहा,
मोमेन ने बांग्लादेश को मान्यता देने के लिए भारत और भूटान का धन्यवाद दिया. बोले कि भारत के मान्यता देने के बाद रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अगले ही दिन युद्धविराम के लिए वोट किया था.'पाकिस्तान, बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई को भारत-पाकिस्तान के बीच की जंग दिखाने की कोशिश करता है. लेकिन यह बांग्लादेश का मुक्ति युद्ध था, जिसमें भारत ने मदद की थी. और छह दिसंबर 1971 को भारत ने बांग्लादेश को एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर मान्यता भी दी थी.'
भारत से बांग्लादेश के फ्यूचर रिलेशंस पर मोमेन ने कहा,
ये तो है भारत और बांग्लादेशों के संबंधों की बानगी, लेकिन पाकिस्तान हार के बाद भी बांग्लादेश को मान्यता नहीं देना चाहता था. और जब मुस्लिम देशों का दबाव बढ़ा तब दो साल बाद मजबूरी में उसे बांग्लादेश को एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर मान्यता देनी पड़ी. सिलसिलेवार समझने के लिए जंग के उस दौर में चलते हैं. जंग का साल- 1971 का साल था. दिसंबर के महीने के शुरुआती दिन. पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हालात बहुत खराब थे. रोज हजारों शरणार्थी पाकिस्तानी आर्मी से बचकर भारत आ रहे थे. और भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ चुका था. 03 दिसंबर की शाम पाकिस्तानी एयरफ़ोर्स ने भारत के कुछ एयरबेसेज़ पर हमला कर दिया. इंदिरा गांधी तब दिल्ली से बाहर थीं. जैसे ही उन्हें सूचना मिली इंदिरा दिल्ली लौट गईं. उन्होंने सेना के अफसरों और कैबिनेट के नेताओं के साथ रात के ग्यारह बजे एक मीटिंग की और उसके बाद आधी रात को ऑल इंडिया रेडियो से अनाउंस किया-''एक दिन ऐसा भी आएगा जब भारत और बांग्लादेश के लोगों को आने-जाने के लिए वीज़ा की ज़रूरत नहीं होगी. आपसी भरोसा बढ़ने के चलते दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों का यह सुनहरा समय है. दोनों देशों के नागरिकों के बीच भी संबंध बहुत गहरे हैं और दोनों सरकारें इन्हें और मज़बूत करना चाहती हैं.'
“कुछ ही घंटों पहले पाकिस्तानी हवाई जहाज़ों ने हमारे अमृतसर, पठानकोट, श्रीनगर, अवंतीपुर, उत्तरलाई, जोधपुर, अम्बाला और आगरे के हवाईअड्डों पर बमबारी की. मुझे ज़रा भी संदेह नहीं है कि विजय भारत की जनता की, भारत की बहादुर सेना की होगी.”इसके बाद भारतीय फौजों ने दो मोर्चों पर हमला करके जवाब देना शुरू किया. एक तरफ़ भारतीय नेवी ने कराची में पाकिस्तान का नेवी मुख्यालय तबाह कर दिया और दूसरी तरफ़ भारतीय सेना बांग्लादेश की सीमा में दाखिल हो गई. दोनों सेनाओं के बीच संघर्ष हुआ और लगभग 15 हजार किलोमीटर का इलाका भारतीय सेना के कब्जे में आ गया. पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद पाकिस्तानी सेना हर मोर्चे पर हार रही थी. युद्ध ठीक 13 दिन चला. ईस्टर्न फ्रंट पर पाकिस्तानी सेना को कमांड कर रहे लेफ़्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ान नियाज़ी ने भारतीय आर्मी के लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ सरेंडर के डॉक्यूमेंट पर दस्तखत किए, सरेंडर के बतौर अपनी पिस्टल दे दी. इसी के साथ जंग में पकिस्तान की आधिकारिक हार हो गई थी. दोनों तरफ़ के करीब 4000 सैनिक मारे गए थे. और दुनिया के नक़्शे पर एक नए मुल्क बांग्लादेश का नाम उभर आया था.

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 (फोटो सोर्स- Getty)
नया मुल्क बांग्लादेश- जंग तो 16 दिसंबर को खत्म हुई, लेकिन बांग्लादेश को बतौर स्वतंत्र राष्ट्र भारत की तरफ़ से मान्यता 6 दिसम्बर 1971 को ही दे दी गई थी.
भारत के लिए ये युद्ध एक ऐसी स्थिति का सामना था, जो पड़ोसी देश ने तैयार की थीं. भारत को जंग में कूदने और पाकिस्तान के दो हिस्से करने का मौक़ा खुद पाकिस्तान ने दिया था. लेकिन सवाल था कि 1971 की जंग को भारत और पाकिस्तान के बीच का युद्ध कहा जाए या बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई?

नया मुल्क बांग्लादेश (फोटो सोर्स- Aajtak)
पाकिस्तान का रुख- पाकिस्तान इसे भारत के साथ जंग कहता है. बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई नहीं मानता. भारत की किताबों में भी इसे इंडो-पाक वॉर के तौर पर ही देखा जाता है. और भारत को इस बात पर कोई आपत्ति भी नहीं है कि इसे बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम कहा जाए और भारत को सिर्फ एक मददगार बताया जाए.
लेकिन बांग्लादेश चाहता है कि 1971 की लड़ाई को भारत-पाकिस्तान की लड़ाई न कहा जाए.
इतिहासकार भी कहते हैं कि जंग का उद्देश्य बांग्लादेश का निर्माण ही था. जंग की वजह भारत-पाकिस्तान के बीच के तत्कालीन तनाव नहीं बल्कि पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का सालों से चला आ रहा दमन था. और इस दमन के खिलाफ़ भारत भी बांग्लादेश के समर्थन में था और उसने जंग लड़ी.
पाकिस्तान इस्लामिक रेवोलुशन इन द मेकिंग के लेखक सुशांत सरीन कहते हैं,
भारत के राजदूत रहे राकेश सूद के मुताबिक़ जंग बेशक भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी लेकिन इसका मक़सद बांग्लादेश का निर्माण था. लड़ाई पाकिस्तान ने वेस्टर्न फ्रंट से शुरू की थी. जिसके बाद इंदिरा ने युद्ध की घोषणा कर दी. लेकिन वेस्टर्न फ़्रंट पर भारत का उद्देश्य सिर्फ इतना था कि पाकिस्तान को आगे बढ़ने से रोका जा सके. यहां लड़ाई डिफेंसिव मोड में लड़ी जा रही थी. लेकिन ईस्टर्न फ़्रंट पर जो जंग लड़ी गई उसका एक राजनीतिक उद्देश्य था. और वो उद्देश्य था बांग्लादेश का निर्माण. ईस्टर्न फ्रंट पर लड़ी गई जंग कामयाब रही. हिन्दुस्तान सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी की जीत हुई. और बांग्लादेश बनाने का राजनीतिक मकसद पूरा हुआ.‘पाकिस्तान 1971 की जंग को भारत बनाम पाकिस्तान दिखाकर ये जताना चाहता है कि उसने पूर्वी पाकिस्तान में कोई जुल्म नहीं ढाया, बल्कि ये हिंदुस्तानियों की साज़िश थी. पाकिस्तान बांग्लादेश में अपने किए जुल्मों को ढकना चाहता है. अभी बलूचिस्तान में जो कुछ भी चल रहा है, उसके लिए भी पाकिस्तान की सरकार ज़िम्मेदार है, लेकिन वहां के हालातों के पीछे भी पाकिस्तान भारत की साज़िश बता देता है. पाकिस्तान ये कभी नहीं मानेगा कि बांग्लादेश का बनना उसके असल में उसके जुल्मों की दास्तां है.’
राकेश सूद कहते हैं,
लेकिन बांग्लादेश को मान्यता देने के सवाल पर पाकिस्तान की उहा-पोह के पीछे भारत से हार की टीस भी थी, और उस जुल्म को छिपाना था जो उसने सालों पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के साथ भाषा, संस्कृति और कौम के नाम पर किया. सैकड़ों लोगों को पाकिस्तानी आर्मी कतार में खड़ा करके गोली मार देती थी, लाखों बांग्लादेशी कौम के नाम पर मार दिए गए थे. और ये जुल्म तबतक चला जबतक बांग्लादेश को आजादी नहीं मिल गई. बांग्लादेश को पाकिस्तानी मान्यता- बांग्लादेश का संस्थापक शेख मुजीब-उर रहमान को कहा जाता है. मुजीब-उर रहमान पाकिस्तान को लेकर बहुत सख़्त थे. जंग में पाकिस्तान की हार के बाद उनका कहना था कि जब तक पाकिस्तान बांग्लादेश को मान्यता नहीं देता, तबतक कोई बात नहीं होगी. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो जो बाद में प्रधानमंत्री भी बने. उनसे बात करने से मुजीब-उर रहमान ने मना कर दिया. पाकिस्तान की तरफ़ से भी लगातार बांग्लादेश की आज़ादी को ख़ारिज किया जाता रहा.'पाकिस्तान बांग्लादेश की आजादी को भारत-पाकिस्तान की जंग क्यों कहता है, इसका जवाब बांग्लादेश को ख़ुद ही देना चाहिए. दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध हैं. दोनों देश इस्लामिक मुल्कों के संगठन ओआईसी के सदस्य हैं और आज दोनों में कोई मतभेद भी नहीं हैं.’

शेख मुजीब उर रहमान (फोटो सोर्स- Wikimedia)
लेकिन पाकिस्तान पर मुस्लिम देशों का दबाव था. मिस्र, इंडोनेशिया और सउदी अरब जैसे देश चाहते थे कि पाकिस्तान बांग्लादेश को स्वीकार करे और उसे मान्यता दे. मुस्लिम देशों का मानना था कि इस्लामिक एकता जरूरी है, और इस एकता के लिए जरूरी है कि पाकिस्तान बांग्लादेश को स्वीकार करे.
इस दबाव के बाद पाकिस्तान के तेवर बदले. फ़रवरी 1974 में लाहौर में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ़्रेंस का समिट हुआ. इस वक़्त ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन चुके थे. इस्लामिक कांफ्रेंस में मुजीब-उर रहमान को भी इनविटेशन भेजा गया. पहले तो मुजीब ने समिट में शामिल होने से इनकार कर दिया लेकिन बाद में मान गए. इसी समिट में 22 फरवरी 1974 यानी आज ही के दिन भुट्टो ने बांग्लादेश को मान्यता देने की घोषणा कर दी.
ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो ने घोषणा में कहा,
पाकिस्तानी रिकग्निशन मिलने के एक दिन बाद बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीब-उर रहमान लाहौर पहुंचे, एयरपोर्ट पर भुट्टो ने मुजीब-उर रहमान का स्वागत किया. ये दोनों की दूसरी मुलाक़ात थी. इससे पहले शेख मुजीब और भुट्टो जनवरी, 1972 में मिल चुके थे. तब भुट्टो राष्ट्रपति थे, मुजीब 10 महीने से जेल में बंद थे. भुट्टो ने मुजीब को आजाद किया था और बांग्लादेश जाने की अनुमति दी थी.'अल्लाह के लिए और इस देश के नागिरकों की ओर से हम बांग्लादेश को मान्यता देने की घोषणा करते हैं. कल एक प्रतिनिधिमंडल आएगा और हम सात करोड़ मुसलमानों की तरफ़ से उन्हें गले लगाएंगे.'

बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीब उर रहमान और जुल्फिकार अली भुट्टो (फोटो सोर्स- Reddit)
बांग्लादेश को मान्यता दिए जाने के पीछे भुट्टो की मजबूरी उनके एक बयान से साफ़ झलकती है, भुट्टो ने कहा था,
इस समिट के बाद तीनों देशों भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच एक त्रिकोणीय समझौता हुआ. 1971 की जंग के बाद बाकी मामलों को सुलझाने के लिए नौ अप्रैल, 1974 को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. पाकिस्तान 28 अगस्त, 1973 के भारत के साथ हुए समझौते में बताई गईं ग़ैर-बंगालियों की सभी चार केटेगरीज़ को स्वीकार करने पर राजी हुआ. पाकिस्तानी विदेश और रक्षा मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी किया गया. जिसमें पैसिवली स्वीकारा गया कि पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में जुल्म किया है.'मैं ये नहीं कहता कि मुझे यह फ़ैसला पसंद है. मैं ये भी नहीं कह सकता कि मेरा मन ख़ुश है. ये कोई अच्छा दिन नहीं है लेकिन हम हक़ीक़त को बदल नहीं सकते. बड़े देशों ने बांग्लादेश को मान्यता देने की सलाह दी है, लेकिन हम सुपरपावर और भारत के सामने नहीं झुके. ये अहम वक़्त है, जब मुस्लिम देश बैठक कर रहे हैं. हम ये नहीं कह सकते कि हम दबाव में हैं. ये हमारे विरोधी नहीं हैं, जो बांग्लादेश को मान्यता देने के लिए कह रहे हैं. ये हमारे दोस्त हैं, भाई हैं.'
हम पैसिवली इसलिए कह रहे क्योंकि बयान में कहा गया था कि
यदि पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में कोई अपराध किया है तो ये खेद की बात है.
इसके बाद जून 1974 में भुट्टो ढाका के दौरे पर गए. बांग्लादेश की तरफ़ से संपत्तियों के बंटवारे का मुद्दा उठाया गया, जिस पर सहमति भी बनी. इसी के साथ दोनों के रिश्ते भी सुधरना शुरू हो गए.
लेकिन खुद जंग की शुरुआत करने वाले और जंग हारने वाले पाकिस्तान ने ये कभी नहीं माना कि ये जंग बांग्लादेश के उन लोगों का स्वाधीनता संग्राम था जिन पर उसने भाषा, कौम और कल्चर के नाम पर 23 साल जुल्म किए.














.webp)




.webp)




