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इत्ती गर्मी में भी वकील काला कोट काहे पहने रहते हैं?

इसके खिलाफ एक PIL हाई कोर्ट पहुंची है, जिस पर जवाब मांगा गया है.

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सीज़न कोई भी हो, भारत में वकील आमतौर पर काला कोट ही पहने नजर आते हैं. काले कोट से तंग आकर एक वकील ने कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर दी है. आखिर इस काले कोट को पहनने के पीछे का कारण क्या है?
उत्तर भारत में मई-जून का महीना. मतलब धरती से लेकर आकाश तक आग बरसती है. तापमान 40 के पार और लू के थपेड़े लोगों को बेहाल कर देते हैं. ऐसे में किसी कचहरी का रुख करके देखिए. वहां आपको काले कोट (Black Coat) और टाई में वकील (Lawyers) काम करते नजर आएंगे. इतनी गर्मी में किसी भी वकील को सनी देओल की तरह गुस्सा आ जाए और वो 'तारीख पे तारीख' वाला डायलॉग मारने लगे, इस परेशानी को समझते हुए जुलाई के महीने में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका पहुंची है. इसमें वकीलों के पहनावे को बदलने की मांग उठाई गई है. रहम की गुहार लगाई गई है. कहा गया है कि इतनी गर्मी में वकीलों को कोट पहनने पर मजबूर किया जाता है. ये अमानवीय है. आखिर जब इतनी ही परेशानी है तो भारत की चिलचिलाती गर्मी में भी वकील साहब काहे काला कोट पहन के कोर्ट पहुंचते हैं? क्या इसका कोई नियम-कायदा भी है? अगर हां तो किसने और कब बनाया? आज सब बताएंगे इत्मीनान से. पहले हाई कोर्ट का मामला सुन लीजिए वकीलों के ड्रेस कोड पर हम आज चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसे लेकर मामला कोर्ट में पहुंचा है. 18 जुलाई को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में एक जनहित याचिका डाली गई है. इसमें भारतीय वकीलों के ड्रेस कोड को अमानवीय बताया गया है. याचिकाकर्ता अशोक पांडे खुद वकील हैं. उनका कहना है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया और हाई कोर्ट प्रशासन ने काला चोंगा या कोट पहनने का जो नियम बनाया है, वह पूरी तरह से अतार्किक, अन्यायपूर्ण और अनुचित है. ये वकीलों को आम नागरिकों की तरह संविधान के तहत मिले अनुच्छेद 14 और 21 के अधिकारों का भी उल्लंघन है. बता दें कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 सभी को कानून के समक्ष बराबरी और अनुच्छेद 21 जीने की आज़ादी का मूलभूत अधिकार प्रदान करता है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मामले पर जवाब देने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया और देश भर के हाई कोर्ट प्रशासन को नोटिस जारी कर दिया है. तो फिर ये काला कोट आया कहां से? आसान भाषा में समझें तो यह वहीं से आया है, जहां से हमारे ज्यादातर नियम-कायदे आए हैं. आजादी के बाद भारत ने देश चलाने के लिए संविधान बनाने का बीड़ा उठाया. संविधान सभा में लंबी चर्चाओं का लब्बोलुआब यही निकला कि देश जिस सिस्टम से 200 साल से चल रहा है, उसे पूरी तरह से न बदला जाए. बड़े सुधार कर लिए जाएं और बाकी को जरूरत पड़ने पर बदला जाए. कोर्ट के नियम-कायदों के साथ भी ऐसा ही हुआ. भारत की अदालतों में कामकाज और ड्रेस का तरीका ब्रिटिशराज के जमाने की निशानियां हैं. कुछ बदलाव जरूर हुए हैं लेकिन कमोबेश सिस्टम वैसा ही बना हुआ है. ऐसा सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया की लगभग हर ब्रिटिश कॉलोनी के साथ हुआ. ब्रिटेन से आजाद हुए देशों में वकीलों के पहनावे अभी उपनिवेश काल के ही हैं. भारत में वकीलों का ड्रेस कोड किसने बनाया? भारत में वकीलों के ड्रेस कोड का वर्णन 'बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स ऑफ एडवोकेट एक्ट 1961' के चैप्टर 5 के सेक्शन 49 में मिलता है. सेक्शन 49 में सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, अधीनस्थ कोर्ट, ट्रिब्यूनल या अथॉरिटी में पेश होते वक्त वकीलों के लिए ड्रेस बताई गई है. आपको याद दिला दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में जो जनहित याचिका डाली गई है, वह इस सेक्शन के विरोध में ही है. ड्रेस कोड के नियम कुछ इस तरह से हैं-
वकीलों को निम्न प्रकार की ड्रेस को सलीके से पहनना चाहिए-
कोट # एक बटन वाला काला कोट, चपकन, अचकन, काली शेरवानी और सफेद बैंड. साथ में एडवोकेट का गाउन या # एक काला ओपन ब्रेस्ट कोट, कड़क या मुलायम सफेद कॉलर और एडवोकेट गाउन के साथ सफेद बैंड. #इन दोनों ही केस में लंबी सोबर पैंट जिसका रंग सफेद, काला, धारीदार या ग्रे हो सकता है. वकील धोती पहन सकता है लेकिन जींस कतई नहीं.
काली टाई सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, सेशन कोर्ट, सिटी या सिविल कोर्ट के अलावा दूसरे कोर्ट्स में बैंड के बजाय काली टाई भी पहनी जा सकती है.
Lawyer Dress Code
भारत में वकीलों के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से ड्रेस कोड तय है. इसमें अपने हिसाब से फेरबदल नहीं कर सकते.

महिला वकीलों के लिए
# फुल स्लीव्स की फुल जैकेट या ब्लाउज़, सफेद कड़क या मुलायम कॉलर के साथ सफेद बैंड और एडवोकेट गाउन. या # सफेद ब्लाउज़, काला ओपन ब्रेस्ट कोट, कॉलर के बिना सफेद बैंड के साथ पहना जा सकता है. या # सफेद या काली साड़ी या लंबी स्कर्ट, लेकिन वह भड़काऊ न हो और उस पर कोई पैटर्न या डिजाइन न बना हो. या # सलवार कुर्ता और कुर्ते-दुपट्टे के साथ या उसके बिना पहना जा सकता है. इसके अलावा काले कोट के साथ बैंड लगा कर पारंपरिक ड्रेस पहनी जा सकती है.
# एडवोकेट गाउन को पहनना सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में ही जरूरी है.
# नियम के अनुसार, एक एडवोकेट को कोर्ट के अलावा किसी पब्लिक प्लेस पर बैंड और गाउन नहीं पहनना चाहिए. हालांकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया या किसी कोर्ट के समारोह के मौके पर इन्हें पहना जा सकता है.
अगर कोई ड्रेस कोड का पालन नहीं करता तो कोर्ट अवमानना की कार्रवाई कर सकता है. कोई बार ऐसे मौके रिपोर्ट हुए हैं जब वकील अपनी सही वेशभूषा में कोर्ट नहीं पहुंचे और कोर्ट ने केस की सुनवाई से ही इंकार कर दिया. 'काले कोट' का इतिहास भी जान लें वकीलों के काले कोट का इतिहास काफी पुराना है. काले कोट की शुरुआत ब्रिटिश शासक एडवर्ड थर्ड ने की थी. ये वही राजा थे जिनके वक्त से वकालत पेशे की शुरुआत ने औपचारिक रूप लेना शुरू किया. कानूनी विषयों पर कई लेख लिखने वाले सीनियर एडवोकेट दिनेश सिंह चौहान दावा करते हैं कि इस काल में वकालत को लेकर काफी नियम-कायदे बनाए गए. इसके बाद कई बार रोब या चोगे के रंग बदले लेकिन कमोबेश काला रंग बना रहा.
काले चोगे या रोब को लेकर तीन कहानियां बताई जाती हैं. पहली बार रोब को 1685 में किंग चार्ल्स द्वितीय के निधन में शोक के वक्त पहना गया था. इसे दुख प्रकट करने वाले रोब की तरह पहना गया. इसके बाद 1694 में इस तरह के रोब में ही क्वीन मेरी द्वितीय की शोक सभा में वकील और जज उपस्थित हुए. चूंकि शोक के वक्त के खत्म होने को लेकर कोई आदेश जारी नहीं हुआ, तो काला रोब पहनने का चलन जारी रहा. इसके बाद इटली में क्वीन एनी के निधन पर 1714 में इस तरह से काले रोब पहनकर शोक प्रकट किया गया.
ये वो वक्त था जब ब्रिटिश शासन में सूरज कभी डूबता नहीं था. ब्रिटेन से शुरू हुई ये परंपराएं दुनिया भर की ब्रिटिश कॉलोनी में पहुंचीं और अब तक जारी हैं. कोरोना में बदले नियम वैसे तो वकीलों को लिए हर मौसम में काला कोट पहनने की मजबूरी है लेकिन कोरोना काल में इसमें बदलाव आया. कोर्ट वर्चुअल हो गए. सब कुछ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए होने लगा. कई हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन कोर्ट के चलते नियमों में बदलाव किए. सुप्रीम कोर्ट के नए डायरेक्शन के अनुसार-
"वकील सुनवाई के दौरान सफेद शर्ट/सलवार कमीज़/साड़ी सफेद नेक बैंड के साथ पहन सकते हैं."
इस आदेश के बाद हाई कोर्ट्स ने भी इस तर्ज पर नए नियम नोटिफाई कर दिए. यह भी कहा गया कि ये सिस्टम तब तक जारी रहेगा, जब तक कोरोना संकट जारी रहता है या अगला आदेश नहीं आ जाता.
वकीलों की ड्रेस पर ब्रिटिश काल की छाप न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में दिखाई देती है. तकरीबन हर यूरोपीय देश और अमेरिका में भी वकील काले रोब पहनते हैं. हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट गगनदीप नारंग हैरानी जताते हुए कहते हैं कि ज्यादातर देश वो हैं, जहां सालभर मौसम कोट या रोब पहनने के हिसाब से अच्छा होता है. लेकिन भारत जैसे देश में जहां 9 महीने गर्मी पड़ती है, वहां काला कोट या भारी-भरकम रोब पहनना ब्रिटिश परंपरा को ढोने से अधिक कुछ नहीं है. हमें यकीनन मौसम के हिसाब से इसमें बदलाव करना चाहिए. अगर कोरोना काल में नियम बदल सकते हैं तो बाकी दिन भी बदले जा सकते हैं.