वकीलों को निम्न प्रकार की ड्रेस को सलीके से पहनना चाहिए-
कोट # एक बटन वाला काला कोट, चपकन, अचकन, काली शेरवानी और सफेद बैंड. साथ में एडवोकेट का गाउन या # एक काला ओपन ब्रेस्ट कोट, कड़क या मुलायम सफेद कॉलर और एडवोकेट गाउन के साथ सफेद बैंड. #इन दोनों ही केस में लंबी सोबर पैंट जिसका रंग सफेद, काला, धारीदार या ग्रे हो सकता है. वकील धोती पहन सकता है लेकिन जींस कतई नहीं.
काली टाई सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, सेशन कोर्ट, सिटी या सिविल कोर्ट के अलावा दूसरे कोर्ट्स में बैंड के बजाय काली टाई भी पहनी जा सकती है.

भारत में वकीलों के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से ड्रेस कोड तय है. इसमें अपने हिसाब से फेरबदल नहीं कर सकते.
महिला वकीलों के लिए
# फुल स्लीव्स की फुल जैकेट या ब्लाउज़, सफेद कड़क या मुलायम कॉलर के साथ सफेद बैंड और एडवोकेट गाउन. या # सफेद ब्लाउज़, काला ओपन ब्रेस्ट कोट, कॉलर के बिना सफेद बैंड के साथ पहना जा सकता है. या # सफेद या काली साड़ी या लंबी स्कर्ट, लेकिन वह भड़काऊ न हो और उस पर कोई पैटर्न या डिजाइन न बना हो. या # सलवार कुर्ता और कुर्ते-दुपट्टे के साथ या उसके बिना पहना जा सकता है. इसके अलावा काले कोट के साथ बैंड लगा कर पारंपरिक ड्रेस पहनी जा सकती है.
# एडवोकेट गाउन को पहनना सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में ही जरूरी है.
# नियम के अनुसार, एक एडवोकेट को कोर्ट के अलावा किसी पब्लिक प्लेस पर बैंड और गाउन नहीं पहनना चाहिए. हालांकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया या किसी कोर्ट के समारोह के मौके पर इन्हें पहना जा सकता है.
अगर कोई ड्रेस कोड का पालन नहीं करता तो कोर्ट अवमानना की कार्रवाई कर सकता है. कोई बार ऐसे मौके रिपोर्ट हुए हैं जब वकील अपनी सही वेशभूषा में कोर्ट नहीं पहुंचे और कोर्ट ने केस की सुनवाई से ही इंकार कर दिया. 'काले कोट' का इतिहास भी जान लें वकीलों के काले कोट का इतिहास काफी पुराना है. काले कोट की शुरुआत ब्रिटिश शासक एडवर्ड थर्ड ने की थी. ये वही राजा थे जिनके वक्त से वकालत पेशे की शुरुआत ने औपचारिक रूप लेना शुरू किया. कानूनी विषयों पर कई लेख लिखने वाले सीनियर एडवोकेट दिनेश सिंह चौहान दावा करते हैं कि इस काल में वकालत को लेकर काफी नियम-कायदे बनाए गए. इसके बाद कई बार रोब या चोगे के रंग बदले लेकिन कमोबेश काला रंग बना रहा.
काले चोगे या रोब को लेकर तीन कहानियां बताई जाती हैं. पहली बार रोब को 1685 में किंग चार्ल्स द्वितीय के निधन में शोक के वक्त पहना गया था. इसे दुख प्रकट करने वाले रोब की तरह पहना गया. इसके बाद 1694 में इस तरह के रोब में ही क्वीन मेरी द्वितीय की शोक सभा में वकील और जज उपस्थित हुए. चूंकि शोक के वक्त के खत्म होने को लेकर कोई आदेश जारी नहीं हुआ, तो काला रोब पहनने का चलन जारी रहा. इसके बाद इटली में क्वीन एनी के निधन पर 1714 में इस तरह से काले रोब पहनकर शोक प्रकट किया गया.
ये वो वक्त था जब ब्रिटिश शासन में सूरज कभी डूबता नहीं था. ब्रिटेन से शुरू हुई ये परंपराएं दुनिया भर की ब्रिटिश कॉलोनी में पहुंचीं और अब तक जारी हैं. कोरोना में बदले नियम वैसे तो वकीलों को लिए हर मौसम में काला कोट पहनने की मजबूरी है लेकिन कोरोना काल में इसमें बदलाव आया. कोर्ट वर्चुअल हो गए. सब कुछ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए होने लगा. कई हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन कोर्ट के चलते नियमों में बदलाव किए. सुप्रीम कोर्ट के नए डायरेक्शन के अनुसार-
"वकील सुनवाई के दौरान सफेद शर्ट/सलवार कमीज़/साड़ी सफेद नेक बैंड के साथ पहन सकते हैं."इस आदेश के बाद हाई कोर्ट्स ने भी इस तर्ज पर नए नियम नोटिफाई कर दिए. यह भी कहा गया कि ये सिस्टम तब तक जारी रहेगा, जब तक कोरोना संकट जारी रहता है या अगला आदेश नहीं आ जाता.
वकीलों की ड्रेस पर ब्रिटिश काल की छाप न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में दिखाई देती है. तकरीबन हर यूरोपीय देश और अमेरिका में भी वकील काले रोब पहनते हैं. हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट गगनदीप नारंग हैरानी जताते हुए कहते हैं कि ज्यादातर देश वो हैं, जहां सालभर मौसम कोट या रोब पहनने के हिसाब से अच्छा होता है. लेकिन भारत जैसे देश में जहां 9 महीने गर्मी पड़ती है, वहां काला कोट या भारी-भरकम रोब पहनना ब्रिटिश परंपरा को ढोने से अधिक कुछ नहीं है. हमें यकीनन मौसम के हिसाब से इसमें बदलाव करना चाहिए. अगर कोरोना काल में नियम बदल सकते हैं तो बाकी दिन भी बदले जा सकते हैं.