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मर्दों के भी रेप होते हैं, और उसे 'सोडोमी' मत कहिए

बीते दिनों दिल्ली में जो हुआ, वो ऐसी कोई इकलौती घटना नहीं थी.

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दिल्ली में 4 लड़कों ने 26 साल के एक लड़के का रेप किया. रेप का अर्थ, उसे जबरन सोडोमाइज किया. उसके बाद उसे पत्थरों से पीटा. ये घटना 29 जनवरी को गोविंदपुरी इलाके में हुई.
पीड़ित लड़के के मुताबिक उसे चार लड़के जबरन पकड़कर एक जंगल जैसे इलाके में ले गए. और वहां रेप किया. रेप के बाद लड़के ने किसी तरह पुलिस को सबकुछ बताया. एम्स में अब लड़के का इलाज चल रहा है. और पुलिस ने सेक्शन 377 के तहत केस दर्ज किया है.
ये पहली बार नहीं हुआ है कि किसी पुरुष का रेप हुआ है. ऐसा भी नहीं कि ऐसा पहला केस रिपोर्ट हुआ हो. जो बात आश्चर्यचकित करने वाली है वो ये कि ये लोगों को हास्यास्पद लगता है.
रेप एक पावर का क्राइम है. पावर का अर्थ यहां सत्ता से है. जब किसी को ये मालूम होता है कि उसके पास अगले व्यक्ति से ज्यादा ताकत है, वो उसके साथ हिंसा करने से पहले नहीं सोचता है. बल्कि वो अपनी सत्ता का प्रदर्शन करने के लिए किसी अकेले या कमजोर व्यक्ति के शरीर पर मात्र 'उत्पीड़न' ही नहीं, 'यौन उत्पीड़न' करता है. क्योंकि यौन उत्पीड़न तमाम तरह के टॉर्चर के परे एक फुल स्टॉप सा है. कि ये हुआ तो अगला व्यक्ति आत्मा तक घायल होगा.
जब बात पावर यानी सत्ता की होती है, तो हमारी सोच से लेकर भाषा तक हम पुरुष और पौरुष के बारे में सोचते हैं. ये हमारी कोई खामी नहीं, हमारी ट्रेनिंग है. हमें लगता है कि शोषण करने वाला पुरुष ही होगा. क्योंकि औरतें कमजोर होती हैं. और रेप की बात सुनते ही हमारे दिमाग में जो तस्वीर बनती है, वो एक पुरुष की एक स्त्री पर खुद को जबरन थोपते हुए कि बनती है. चूंकि हमारे समाज में 'इज्जत' औरतों में बसती है, पुरुषों में नहीं, पुरुष के पास कुछ लुटने का होता ही नहीं है.
इसलिए अगर कभी सत्ता औरत के हाथ में आती है, हमें लगता है कुछ अलग हो गया है. जब ये सत्ता औरत के हाथों पुरुष पर हुई हिंसा के रूप में दिखती है, हमें ये हास्यास्पद लगता है. और ये न भूलें कि औरत का पुरुष पर हमला करना कोई क्रांतिकारी या नारीवादी बात है. ये हिंसक है. अमानवीय है. और जो पुरुषवादी सोच औरतों को पीटने को जस्टिफाई करती है, वही पुरुष के पिटने पर कहती है, 'औरत से पिट गए?'
हालांकि दिल्ली में लड़के का गैंगरेप औरतों नहीं, पुरुषों ने किया था. इसी सत्ता के प्रदर्शन में. कि हम चार लड़के मिलकर एक कमज़ोर लड़के का रेप कर सकते हैं.
जरूरी बात ये है कि हमारा कानून जिस तरह रेप को परिभाषित करता है, उसमें शोषित व्यक्ति को कहीं पुरुष माना ही नहीं गया है. इंडियन पीनल कोड का सेक्शन 375, जो रेप की परिभाषा देता है, ये कहता है:
एक 'पुरुष' ने रेप किया है, ये हम तब कहते हैं जब वो एक 'औरत' से सेक्शुअल संबंध इन हालातों में बनाता है...'
इसके बाद कानून हमें बताता है कि किन किन हालातों में हुए सेक्स को रेप कहा जा सकता है, जिसमें लड़की की 'हां', उससे जबरन निकलवाई गई 'हां', उसके 16 से कम उम्र का होना या उसका नशे में होना दिया गया है. कहीं पर भी इस बात का जिक्र नहीं है कि शोषित अगर औरत नहीं, पुरुष, समलैंगिक या ट्रांसजेंडर हो. और इस तरह औरतों के अलावा किसी और से रेप होने पर कानून में कोई सजा नहीं है.
अगर पुरुष खुद से हुए रेप की शिकायत करता है, तो वो सेक्शन 377 में आता है. सेक्शन 377 कहता है कि किसी भी 'अननेचुरल' तरीकों से किया गया सेक्स गुनाह है. मगर ध्यान रहे, यहां शब्द 'सेक्स' है, रेप नहीं. इसलिए सेक्शन 377 समलैंगिक संबंधों को भी गैरकानूनी साबित कर देता है. सेक्शन 377 कहीं 'कंसेंट' यानी सेक्स करने वाले सेक्स करना चाहते हैं या नहीं, की कोई बात नहीं है.
अधिकतर अखबारों में पुरुष के रेप के लिए 'सोडोमी' शब्द का इस्तेमाल होता है. 'सोडोमी' का शाब्दिक अर्थ एनल सेक्स, ओरल सेक्स या जानवरों के साथ सेक्स है. सोडोमी शब्द 'सोडोम' से आता है, जिसका जिक्र बाइबल और क़ुरान दोनों में है. सोडोम एक शहर था जिसे पापों के लिए जाना गया. यानी सोडोमी एक 'पाप' है. और इसी मान्यता की झलक हमें अपने कानून में मिलती है. जब हम रेप को 'सोडोमी' कहते हैं, हम भूल जाते हैं कि एनल सेक्स में भी पुरुष की स्वीकृति मिलनी चाहिए. अगर स्वीकृति नहीं है, तो वो सोडोमी या एनल सेक्स नहीं, रेप है.
जब किसी के हाथ किसी को अनचाहे तरीके से छूते हैं, बुरा महसूस होता है. फिर चाहे सताया जाने वाला औरत हो या पुरुष. दिल्ली में जो हुआ वो देश-दुनिया में हर जगह, हर शहर में हो रहा है. पुरुष अगर बच्चा है तो फिर भी उसे POCSO के तहत कानूनी मदद मिलती है. लेकिन अगर वयस्क है तो लोग हंसते है. लोग उसके पीड़ित होने पर हंसते हैं, उसके एक ताकतवर पुरुष न होने पर हंसते हैं. इस डिजिटल दौर में जब हम किसी भी मुद्दे से अछूते नहीं रहे हैं, जरूरी है कि हम इस बात को मानें कि पुरुषों के भी रेप होते हैं.