
चीन का स्वायत्त प्रांत है हॉन्ग कॉन्ग. अर्थव्यवस्था काफी अच्छी है इसकी. काफी बड़ा शॉपिंग हब है दुनिया का (फोटो: गूगल मैप्स)
हॉन्ग कॉन्ग और चीन का रिलेशनशिप स्टेटस शुरुआत इससे कि इट्स कॉम्प्लिकेटेड. पहले ये अंग्रेजों का उपनिवेश हुआ करता था. ब्रिटेन के पास लीज़ था इसका. 1997 में ये लीज़ खत्म हो गया. इसी साल ब्रिटेन और चीन के बीच 'सिनो-ब्रिटिश डेक्लरेशन' हुआ. इसके तहत, हॉन्ग कॉन्ग चीन के अधिकारक्षेत्र में आ गया. उसे चीन के स्पेशल अडमिनिस्ट्रेटिव रिजन का दर्ज़ा मिला. इस स्पेशल स्टेटस के तहत हॉन्ग कॉन्ग है तो चीन का ही हिस्सा, मगर उसका सिस्टम अलग है. उसे ये आज़ादी मिलती है एक संवैधानिक सिस्टम से, जिसका नाम है- बेसिक लॉ. यही चीज हॉन्ग कॉन्ग और चीन के बीच की चीजें तय करती है.
बीते दिनों में चीन के अंदर क्या बदला है? दो शब्दों में इसका जवाब है- शी चिनफिंग. चीन के राष्ट्रपति. चीन पहले से ही आक्रामक था. मगर 2012 में चिनफिंग के प्रेजिडेंट बनने के बाद चीन और आक्रामक हो गया. बाहर ही नहीं, अपने यहां भी. चिनफिंग आलोचनाओं के लिए रत्तीभर भी सहनशीलता नहीं रखते. ऐसे में हॉन्ग कॉन्ग की आज़ादी, उसकी लोकतांत्रिक भावनाएं चीन की सत्ता के लिए बर्दाश्त से बाहर की चीजें हैं. हॉन्ग कॉन्ग काफी समय से निष्पक्ष लोकतांत्रिक सिस्टम की मांग कर रहा है. चीन चाहकर भी जोर-जबरदस्ती से इसे दबा नहीं सकता. क्योंकि बेसिक लॉ का सिस्टम उसे ऐसा करने का अधिकार नहीं देता.
ऐसा ही हाल तिब्बत का है. तिब्बत अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण बेहद अहम है. ये नेपाल और भारत, दोनों के करीब पड़ता है. इसके अलावा ये कई सारी नदियों की पैदाइश की भी जगह है. ऐसे में हॉन्ग कॉन्ग की स्वायत्तता, उसका सिस्टम बेशक चीन को खलता होगा.
अम्ब्रैला नाम की कहानी क्या है? अम्ब्रैला मतलब छाता. मूवमेंट मतलब आंदोलन. इस प्रोटेस्ट में शामिल होने वाले छतरी लेकर आते. इस छतरी के सिंबल की कहानी ये थी कि इससे पहले लोग जब निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव की मांग करने जमा होते, तो पुलिस उन्हें भगाने के लिए उनके ऊपर पेपर स्प्रे और आंसू गैस इस्तेमाल करती. इससे बचने के लिए लोगों ने मास्क लगाए. धूप वाला चश्मा ट्राय किया. फिर लोगों ने महसूस किया कि बचने के वास्ते छाता सबसे मुफीद है. और इस तरह इस मूवमेंट की पहचान ही बन गया छाता. ये छाता न केवल उन्हें पुलिस से बचाता, बल्कि घंटों धूप से भी राहत देता. मूवमेंट का समर्थन करने वाले छाता बांटते लोगों में. छाता बांटने के लिए जगह-जगह खास सेंटर खोल दिए लोगों ने. सबसे ज्यादा चलता था पीले रंग का छाता, जिसपर काले रंग के स्प्रे से स्लोगन लिखते लोग. ऐसा ही एक अम्ब्रैला मूवमेंट 2007 में लातीविया की राजधानी रिगा में भी हुआ था. और इसकी वजह से इगारस केलविटिस की सरकार गिर गई.

अम्ब्रैला मूवमेंट के कई लीडर्स पर मुकदमा चला (फोटो: रॉयटर्स)
क्या नतीजा निकला मूवमेंट का? करीब ढाई महीने तक लोग डटे रहे. कई लोग पकड़े गए. कइयों पर केस चला. कइयों को सज़ा भी मिली. चीन ने लोगों की मांगें नहीं मानी. 1200 के करीब सदस्यों की चुनाव समिति, जिसमें चीन के समर्थक ज्यादा थे, ने मिलकर 2017 में कैरी लैम को चीफ एक्जिक्यूटिव चुन लिया. लोकतंत्र और नागरिक अधिकार चाहने वाली जनता के बीच चीन के हित सुनिश्चित करने का काम करती हैं कैरी लैम.

ये हॉन्ग कॉन्ग की चीफ एक्जिक्यूटिव कैरी लेम हैं. लेम एक्सट्राडिशन बिल पास करवाने पर तुली हैं (फोटो: रॉयटर्स)
इसमें क्या-क्या शामिल है? इस प्रस्तावित बिल में 37 तरह के अपराधों पर एक्स्ट्राडिशन की शर्त शामिल हैं. इनमें क्रिमिनल ऐक्टिविटी के अलावा राजनैतिक आरोप भी शामिल हैं. इसमें जो वांछित अपराधी होगा, उसे प्रत्यर्पित करके भेजने की मंजूरी देगा चीफ एक्जिक्यूटिव. इसके बाद उस वॉन्टेड शख्स के खिलाफ वारंट जारी होगा. प्रत्यर्पित करके चीन या ताईवान भेजे जाने से पहले हॉन्ग कॉन्ग की एक अदालत वो केस देखेगी. ताकि तय किया जा सके कि मामला बनता है कि नहीं.
विरोध करने वाले क्या कह रहे हैं? बेशक इसमें हॉन्ग कॉन्ग के पास भी कुछ अधिकार हैं. मगर लोगों का मानना है कि बिल पास हो जाने की स्थिति में अगर चीन की तरफ से प्रत्यर्पण की मांग आई, तो हॉन्ग कॉन्ग के लिए इनकार करना बड़ा मुश्किल हो जाएगा. ह़ फिक्रमंदों का कहना है कि ये कानून बन गया, तो हॉन्ग कॉन्ग से जिसे चाहे उसे उठाकर चीन ले जाया जा सकेगा. न केवल अपराधी, बल्कि विरोध में बोलने वालों, आलोचना करने वालों, तमाम तरह के ऐक्टिविस्ट्स सबको पकड़कर उनपर फर्ज़ी मुकदमे चलाना और सज़ा देना आसान हो जाएगा. चीन के लीगल सिस्टम पर किसी को भरोसा नहीं. वो न निष्पक्ष है, न पारदर्शी. अदालतें सिर्फ कम्यूनिस्ट पार्टी का हुक्म बजाती हैं. इसीलिए लोग किसी कीमत पर इसे पास नहीं होने देना चाहते हैं.
हॉन्ग कॉन्ग की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है. वो लोकतांत्रिक तौर-तरीकों, निष्पक्ष और पारदर्शी सिस्टम में अपनी तरक्की देखता है. दूसरी तरफ चीन हर हाल में उसकी स्वायत्तता खत्म करना चाहता है. दोनों के हित बिल्कुल अलग हैं. विरोधाभासी हैं. न चीन और न हॉन्ग कॉन्ग के लोग, दोनों अपने स्टैंड से पीछे होने को राज़ी नहीं. ऐसे में उनका संघर्ष कम होता दिख नहीं रहा.
Hong Kongअर्थात: मोदी सरकार के पास चीन-अमेरिका ट्रे़ड वॉर से फायदा उठाने का अच्छा मौका