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अमेरिका और रूस भारत पर इतना प्यार क्यों लुटा रहे हैं? 4 वजहें पूरा खेल समझा देंगी

अमेरिकी राष्ट्रपति ने पीएम मोदी की खूब खातिर की, अब व्लादिमीर पुतिन ने खुलेआम उन्हें दोस्त बताकर तारीफ की है, आखिर माजरा क्या है?

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कोई किसी को बिना मतलब दोस्त नहीं बनाता, भारत को लेकर अमेरिका और रूस का भी यही हाल है | फाइल फोटो: इंडिया टुडे

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कुछ समय पहले पीएम नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा. हालांकि, पत्र तो एक बहाना था, दरअसल इसके जरिए मोदी को अपने घर बुलाना था. पत्र में लिखा था, 'हम आपको अपने यहां स्टेट विजिट पर आमंत्रित करते हैं'. स्टेट विजिट अमेरिका का सबसे बेहतरीन दौरा है. सबसे बढ़िया खातिर होती है. इस न्योते की सबसे खास बात ये है कि इसे अमेरिकी राष्ट्रपति की कलम से ही लिखा जाता है. यात्रा और रहने-खाने का पूरा बिल अमेरिका चुकाता है. एक आलिशान बंगला बना है अमेरिकी राष्ट्रपति के घर के बगल में, स्टेट विजिट वाले अतिथि को इसी में ठहराया जाता है. दो-तीन दिन अतिथि के स्वागत में वाइट हाउस में जमकर प्रोग्राम्स होते हैं. उसे हाथों-हाथ लिया जाता है. पीएम मोदी ने बाइडन का न्योता स्वीकारा और स्टेट विजिट पर अमेरिका हो आए. बीते हफ्ते ही वापस लौटे.

एक दूसरा देश है, जो अमेरिका को फूटी आंख नहीं सुहाता- 'रूस'. रूस ने भी अमेरिका से लौटे पीएम नरेंद्र मोदी के लिए खूब बढ़िया बोला है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने खुद नरेंद्र मोदी को दोस्त बताते हुए उनकी जमकर तारीफ की है.

पुतिन ने मॉस्को के एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा,

"भारत में हमारे मित्र और रूस के दोस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले 'मेक इन इंडिया' का कॉन्सेप्ट लॉन्च किया था. इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत स्पष्ट प्रभाव पड़ा है... हमारे अच्छे दोस्तों द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट अपनाए जाने चाहिए."

अमेरिका और रूस द्वारा भारत को इतना मान सम्मान देना अच्छी बात है. लेकिन, इससे एक सवाल भी खड़ा होता है कि आखिर ये दोनों देश इस कदर भारत की तारीफ में कसीदे क्यों पढ़ रहे हैं? इसी का जवाब आज हम आपको बताएंगे.

हथियार बेचने की होड़

इस साल मार्च में दुनियाभर में हथियारों के आयात-निर्यात पर नजर रखने वाली स्वीडिश संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी सिप्री की एक रिपोर्ट आई थी. रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार भारत है. हथियारों की खरीद में भारत की हिस्सेदारी 11 फीसदी से ज्यादा है. भारत को सबसे ज्यादा हथियार बेचने वाला देश रूस है. हालांकि, इसमें रूस की हिस्सेदारी कम हुई है. 2013 से 2017 के बीच भारत के हथियार आयात में रूस की हिस्सेदारी 64% थी, जो 2018 से 2022 के बीच कम होकर 45% हो गई है. हालांकि, इसके बावजूद भारत के लिए रूस सबसे बड़ी दुकान है. इतना ही नहीं, पहले भारत के लिए हथियारों की दूसरी सबसे बड़ी दुकान अमेरिका था, लेकिन अब उसकी जगह फ्रांस ने ले ली है. यानी फ्रांस दूसरे नंबर पर है और अमेरिका तीसरे.

विदेश मामलों के जानकारों की मानें तो भारत हथियारों का इतना बड़ा खरीददार है कि हर देश उसे अपना दोस्त बनाए रखने की इच्छा रखता है. रूस और अमेरिका दोनों चाहते हैं कि भारत उनसे ज्यादा हथियार ख़रीदे, इसलिए दोनों का प्यार भारत पर खूब बरस रहा है.

अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी और चीन ये वे पांच देश हैं, जिनका दुनिया के हथियारों के 75 फीसदी बाजार पर कब्जा है. | फाइल फोटो: आजतक

हाल में पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण सैन्य समझौते हुए. सबसे महत्वपूर्ण समझौता ये हुआ कि अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक और भारत की सरकारी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड देश के स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमानों के लिए अत्याधुनिक लड़ाकू जेट इंजन भारत में ही बनाएंगी. एक अन्य समझौते में अमेरिका युद्ध में इस्तेमाल होने वाले ड्रोन के उत्पादन के लिए भारत में एक निर्माण केंद्र बनाने पर भी सहमत हुआ.

भारत तेल ना खरीदे तो रूस की आफत आ जाए

यूक्रेन पर हमले के बाद रूस से तेल की खरीद पर अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा दिया था. जो अभी जारी है. ये देश रूस से तेल नहीं खरीदते. रूस के लिए तेल का सबसे बड़ा मार्केट यूरोप था, ऐसे में प्रतिबंध लगना रूस के लिए बड़े झटके जैसा था. तमाम और प्रतिबंध भी रूस पर लगाए गए. कहा गया था कि जब रूस का तेल नहीं बिकेगा तो उसकी अर्थव्यवस्था भरभराकर गिर जाएगी. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. क्योंकि तेल के दो बड़े खरीददार देश - भारत और चीन - ने उससे तेल की खरीद बंद नहीं की. बल्कि भारत ने तो रूसी तेल की खरीद और बढ़ा दी.

फाइनेंशियल एनालिसिस प्लेटफॉर्म - Refinitiv Eikon - के लेटेस्ट डेटा के अनुसार अप्रैल 2023 में रूस से सबसे ज्यादा तेल भारत और चीन पहुंचा है. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस ने अप्रैल 2023 में जितना भी समुद्री रास्तों से तेल निर्यात किया है, उसका 70 प्रतिशत से अधिक भारत ने और लगभग 20 प्रतिशत चीन में निर्यात हुआ है. सिर्फ 10 प्रतिशत तेल ही अन्य देशों में निर्यात किया गया है. मार्च 2023 में भी भारत ने रिकॉर्ड मात्रा में रूसी तेल आयात किया था. पिछले छह महीने से रूस, भारत के लिए सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश भी बना हुआ है.

दुनियाभर के दबाव के बाद भी भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया, क्योंकि रूस उसे कम रेट पर तेल देता है | फाइल फोटो: आजतक 

इस समय भारत जिन देशों से सबसे ज्यादा तेल खरीदता है, उनमें अमेरिका पांचवें नंबर पर है. यानी तेल की बिक्री के मामले में भारत रूस के साथ-साथ अमेरिका के लिए भी अहम है. जाहिर है कि दोनों ही नहीं चाहेंगे कि भारत से संबंधों में कोई तल्खी आए.

अमेरिका को अब पाकिस्तान की फिक्र नहीं

विदेश मामलों के कुछ जानकारों की मानें तो बीते करीब दो दशक से अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में तैनात थी. वो वहां तालिबान से जंग लड़ रही थी. तब अमेरिका को पाकिस्तान की मदद की जरूरत थी. क्योंकि अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्से पर तालिबान का कब्जा था. और इस कारण अमेरिका को अफगानिस्तान के करीब एक सुरक्षित इलाके की जरूरत रहती थी. अफगानिस्तान से लगे दो ही देश ऐसे हैं, जहां अमेरिका के लिए पहुंचना आसान पड़ता है. इनमें एक पाकिस्तान है और दूसरा ईरान. ईरान से अमेरिका की बनती नहीं. ऐसे में उसके लिए केवल पाकिस्तान की जमीन ही बचती थी. अमेरिका के पास अफगानिस्तान पहुंचने के लिए जो एक मात्र सुरक्षित जमीनी रास्ता था, वो रास्ता पाकिस्तान से होकर जाता था.

जब तक अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में मौजूद थी, अमेरिका को पाकिस्तान से संबंधों की चिंता थी | फाइल फोटो: इंडिया टुडे 

ऐसे में दो दशक तक अमेरिका के लिए पाकिस्तान का साथ बेहद जरूरी बना रहा. और इस वजह से वो भारत के ज्यादा करीब आने से हिचकता रहा. जानकारों के मुताबकि साल 2021 में अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से बाहर आ गई. और इसके बाद अमेरिका को पाकिस्तान की उतनी जरूरत नहीं रही जितनी पहले थी. कुल मिलाकर अब अमेरिका को पाकिस्तान की नाराजगी की चिंता नहीं है और इसलिए वो खुलकर भारत से नजदीकी बढ़ा रहा है.

चीन कनेक्शन भी

अमेरिका के भारत के करीब आने की एक वजह चीन भी है. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के कार्यकारी निदेशक ध्रुव जयशंकर का कहना है कि चीन के उदय और उसकी आक्रामकता को लेकर भारत और अमेरिका की समान चिंताएं हैं. चीन को काबू में रखने और उसपर प्रेशर बनाए रखने के लिए दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है. ध्रुव जयशंकर के मुताबिक इसलिए भी भारत-अमेरिका के बीच रिश्ते बेहतर हो रहे हैं और आपसी सहयोग बढ़ रहा है.

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