दो महीने का समय हमने लिया है, अगर हमें हल मिल गया तो हम कुछ नहीं करेंगे और अगर हल नहीं मिला तो वो करेंगे, जो आज तक भारत के इतिहास में कभी हुआ ही नहीं है. ~ शांतिदूत देवकी नंदन ठाकुर, 4 सितंबर 2018, ग्वालियर मध्यप्रदेश
ये हैं देवकी नंदन ठाकुर, मूलतः कथावाचक हैं. साथ ही मैसेंजर ऑफ पीस हैं, इस बात में ‘पन’ न तलाशें, उन्हीं के फेसबुक पेज पर शांतिदूत बताया गया है. लेकिन आज कल उससे आगे भी उनकी पहचान है, एससी-एसटी एक्ट पर मुखर हैं. सवर्णों के पाले में खड़े हैं. सरकार को चेतावनियां दे रहे हैं. छः बजे वाली टीवी डिबेटों का नया सेंसेशन हैं. टीवी से दूर सोशल मीडिया में भी उनका जलवा है. हर जगह नीला निशान और कुल 37 लाख फॉलोअर. पर कई लोग पूछ भी रहे हैं. कौन हैं ये नए बाबा जी. हमने सोचा, हम बताए देते हैं. पर उसके लिए भी आपको एक वीडियो क्लिप देखनी होगी. जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई. एक छोटी बच्ची से हुई बहस. कथाओं में भी वैसे ही अंग्रेजी का समावेश भी होता है. ‘कंट्रोल योर लेंग्वेज़Zzz, आई एम नॉट यार, दिस इज़ नॉट खोलेज ’ सरीखी.
जी, ये वही देवकीनंदन ठाकुर हैं. परंपरागत ढंग से भागवत कथा नहीं सुनाते. किस्से, कहानियां, चुटकुले. ऐसी पैकेजिंग कि सबको लुभाए. और इसी के चलते उनके टीवी प्रवचन हिट हुए. जिसने उनके आभामंडल को और बढ़ाया. पर इन सबकी शुरुआत कब और कैसे हुई.
क्या है उनकी शुरूआत की कहानी
देवकीनंदन की वेबसाइट के मुताबिक उनका हैप्पी बड्डे है 12 सितंबर 1978. बर्थ प्लेस- मथुरा का ओहावा गांव. घर में धार्मिक माहौल. 6 साल की उम्र में वृन्दावन जाकर रासलीला संस्थान में शामिल हो गए. कृष्ण लीला में कृष्ण बनते, रामलीला में राम. तब के दिनों में उन्हें दर्शक ठाकुर जी कहते. फिर ठाकुर जी ने शास्त्र पढ़ने शुरू कर दिए. वेबसाइट पर दावा है कि 13 साल की उम्र में उन्हें भागवत याद हो गई थी. फिर 18 की उम्र में उन्होंने इसका पाठ यानी कथावाचन शुरू कर दिया. शुरुआत हुई शाहदरा के श्रीराम मंदिर से. कथा चल निकली तो ट्रस्ट और दूसरे काम भी शुरू हुए. विदेश यात्रा भी शुरू हुईं. मगर असली जलवा कायम हुआ टीवी पर आने के बाद. कथा तो कथा, उसमें आने वाले गानों के ज्यूकबॉक्स भी वायरल होने लगे. इसमें सब कुछ होता है. चुटकुले, कहानी, कभी हिंदी, कभी ब्रज. और कभी कभी पब्लिक को टिंक्चर भी. उसी का एक नमूना आपने आचार्य-कन्या संवाद में देखा. बाबा राजनीतिक भी होते हैं कभी कभी. महंगाई से लेकर पेट्रोल के दामों पर भी टिप्पणी कर देते हैं. लेकिन अब तो बाबा कभी कभी से अकसर वाले मोड में आ गए हैं.
कैसे हुई सवर्णों के पोस्टर बॉय बनने की शुरुआत
6 सितंबर को सवर्णों का भारत बंद हुआ. उसके पीछे देवकीनंदन ठाकुर का सहयोग और बड़ा हाथ रहा. वजह-- 4 सितंबर को देवकीनंदन ठाकुर ग्वालियर में लक्ष्मीबाई समाधि स्थल के सामने स्वाभिमान सम्मेलन में बोल रहे थे. वहीं उन्होंने ‘दो महीने में बदल देंगे’ वाली बात उछाली थी. सोशल मीडिया पर ये बात खूब वायरल हुई. साथ ही वृन्दावन में विप्र सम्मलेन कर, एक लाख लोगों को जुटाने की बात भी कही गई. 6 सितंबर के भारत बंद में बवाल हुए. कई लोग गिरफ्तार हुए. उसके विरोध में आगरा के ठाकुरों के 22 गांव, 9 सितंबर को खंदौली के सेमरा में महापंचायत करने वाले थे. वहां भी देवकी नंदन ठाकुर पहुंचने वाले थे. पुलिस ने वो महापंचायत नहीं होने दी. अब तय ये हुआ है कि 11 सितंबर को देवकी नंदन ठाकुर वहां पहुंचेंगे. यानी जहां-जहां एससी/एसटी एक्ट के विरोध से जुड़ा कुछ भी हो रहा है, देवकी नंदन ठाकुर का नाम शामिल है.
बीते दिनों बाबा ने 'दल' भी बना लिया
वृन्दावन में 9 सितंबर 2018 को ‘अखंड इंडिया मिशन’ नाम का एक ‘दल’ बनाया गया, दल का मकसद है, SC-ST एक्ट के खिलाफ मुहिम चलाना. देवकी नंदन ठाकुर उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए हैं. पत्रकार सवाल पूछते हैं कि चुनाव कहां से लड़ेंगे तो देवकी नंदन ठाकुर का इंकार आता है.
अपनी तरफ से सफाई देते हुए देवकी नंदन कहते हैं कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे, सरकार बस समाज को बांटे नहीं. लेकिन ये कहने सुनने में अच्छी लगने वाली बातें हैं. ग्वालियर में करणी सेना वालों के कंधे से कंधा मिलाकर वो नज़र आ रहे थे. सवर्णों के आंदोलन में हर जगह अगुआ बने दिखते हैं. आगे क्या होता है, वो 2019 के चुनावों के समय दिख ही जाएगा.