The Lallantop

दफ्तर में आखिरी रोज़ इस लड़के को एश्ले वेस्टवुड मिल गए

सूरज को अपनी पिछली नौकरी के अंतिम दिन जो मिला उसका किस्सा हमसे साझा किया है. पढ़िए.

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
12651338_976072202464857_7003448492705430783_nसूरज पांडेय दोस्त है. नाम लिखता है,  सूरज धीरेंद्र नाथ पांडेय. मैं मीडिया वाला नहीं था वो था. मुझे खिलाड़ियों के नाम याद नहीं रहते, वो सुबह डेढ़ दहाई फुटबॉलर्स के नाम लेता है फिर आंख मींचता है. चेहरा ऐसे तपता है जैसे टहटी मानों अभी 400 बाय 400 के मैदान का चार चक्कर मार आ जाएगा. सूरज स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट न होता तो घोड़ा होता, उस पर लगाया पैसा कभी न डूबता.  ये उन दोस्तों में से है जो अनजाने ही बन जाते हैं. पता ही नहीं लगता कब खास हो पड़े. जिनका दूर जाना सालता है.ये उन दोस्तों में से है जिन्हें रात के दो बजे जरूरी काम से मैसेज करो और वो वीडियोगेम का स्कोरबोर्ड भेजने लग जाते हैं. सूरज को अपनी पिछली नौकरी के अंतिम दिन जो मिला उसका किस्सा हमसे साझा किया है. पढ़िए. इस लड़के को भविष्य के लिए दुआएं भी दीजिएगा.
यूं तो फुटबॉल को तब से चाहते हैं, जब से क्रिकेट से हमारा मोहभंग हुआ. शरीर से जैसे भी हों, पर मन से हम तगड़े फैन हैं फुटबॉल के. खेल पत्रकार हैं तो काम के सिलसिले में कुछ फुटबॉलर और ऑफिशियल्स से मिलना जुलना हो जाता है. लेकिन 9 जून को जो हुआ, वो ताउम्र साथ रहेगा. मैं एक बड़े मीडिया हाउस से दूसरे बड़े मीडिया हाउस जाने वाला था. इस्तीफा दे चुका था और दफ्तर में मेरा आखिरी दिन था. यूं तो हमारे ऑफिस में तकरीबन सभी खेलों के दिग्गज आते-जाते रहते हैं. सचिन तेंदुलकर, दादा सौरव गांगुली जैसी हस्तियां भी. लेकिन उस दिन जब ऑफिस में मेरा आखिरी दिन था, उसे देख जो हमने फील किया, उसे बताना वैसा ही है जैसा मुकेश, रफी और किशोर दा की आवाज की खूबियों के बारे में लिखना. यूरो कप पर दो स्पेशल आर्टिकल लिखकर हम फारिग हुए. ऑफिस में टहल रहे थे तो देखा कि इंडिया टुडे टीवी की स्पोर्ट्स एंकर शिवानी जी एक यूरोपियन आदमी को विक्रांत सर से मिलवा रही थीं. उस चेहरे को हम अच्छे से जानते थे, लेकिन उस वक्त नाम नहीं याद आया. क्योंकि वैसे भी हम ऑफिस में आने वाले सेलिब्रिटीज को ना तो भाव देते हैं और ना ही लुक्स. फिर एक दोस्त से मिलने चले गए. लौटे तो पाया कि यूरोपियन बंदा विक्रांत सर की डेस्क पर है और दो-तीन लोग वहां खड़े होकर कुछ बातचीत कर रहे हैं. हम भी थोड़ी दूरी बनाकर वहीं खड़े होए गए. हमें देख वो विदेशी बंदा हौले से मुस्कुराया, जैसे कोई पुरानी पहचान हो. हम भी शिष्टता दिखाते हुए हल्के से मुस्कुराए और सर झुकाकर फोन में लग गए. नजर उठाई तो वो सज्जन शायद हमारी झिझक को समझकर मुस्कुरा उठे और बड़ी सज्जनता से बोला, 'हाय'. या शायद हैलो बोले थे. पता नहीं ये सब भूल गया हूं. उनका 'हैलो' बोलना था कि हम आगे बढ़े और हमारे आगे बढ़ते ही उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया. हमने हाथ मिला लिया और चुपचाप खड़े हो गए.
वो तीनों आपस में बात कर रहे थे. इनकी बातों से हमें लगा कि ये तो उसी टीम की बात कर रहे हैं जिसकी जर्सी इस वक्त हमने पहन रखी है. यानी कि 'बेंगलुरु फुटबॉल क्लब BFC'. इत्ते में हमने उन्हें ध्यान से देखा और भइया दिमाग की बत्ती लप्प से जली, अबे ये तो एश्ले वेस्टवुड है. इसके बाद क्या हुआ पूछो मत. हम सन्न. समझ आना बंद हो गया कि ये क्या हो रहा है.
सर वेस्टवुड ने हमसे पूछा कि आज AFC एशियन कप का ड्रॉ निकलना था, क्या हुआ. हमने बोलने की तो बहुत कोशिश की लेकिन पहली बाधा तो बनी हमारी ग्रामर फाड़ अंग्रेजी और दूसरी नर्वसनेस. जैसे तैसे हमने 23 मार्च की तारीख फेंकी लेकिन सर वेस्टवु़ड ने कहा No, i think It's September 27. हम चुप्प. बस उन्हें घूरे जा रहे हैं और इधर दिमागवा तो ससुरा फ्यूज हुआ पड़ा है. मेसी की ड्रिबलिंग और डेविड डि गिया के रिफ्लेक्सेज की कसम खाकर कह रहे हैं, दिमाग से बिल्कुलै लुल्ल हो गए थे. इत्ते में शिवानी मैडम बोलीं, 'हमारे ऑफिस में बेंगलुरु के काफी फैन्स हैं, मैंने बहुत लोगों को बेंगलुरु की जर्सी में देखा है'. इत्ते में हम पट्ट से बोल पड़े, 'No Madam, Its Only Me who wear BFC Jersey In Our Office.' इत्ता बोले अउर अपनी अंग्रेजी पर फूलकर साध्वी प्राची और अकबरुद्दीन ओवैसी हो गए. फिर हमने अपनी सकुचाहट को एक झापड़ मारा और विक्रांत सर के कान में कह दिया, (ध्यान दीजिएगा हम एक महीने पहले रिजाइन कर चुके हैं और ये हमारा लास्ट वर्किंग डे था) 'सर इनके साथ फोटो खिंचवा लूं, मेरी नौकरी तो नहीं जाएगी.' (सनद रहे, मीडिया संस्थानों का कायदा होता है, ऑफिस आई सेलीब्रिटीज को फोटो खिंचा-खिंचा खिझाएंगे, तो नौकरी भी जा सकती है!) विक्रांत सर हंसकर बोले, खिंचवा लो. हमने निकाला फोन और इत्ते में सर बोले, लाओ मैं खींच देता हूं. हमने कहा नहीं सर, ये अच्छा नहीं लगेगा कि आप फोटो खींचें. तभी शिवानी मैम ने फोन लिया और दो फोटोज ले लीं. भाई साब जब हम सर वेस्टवुड से सट कर खड़े हुए ना, लगा कैंप नोऊ पहुंच गए कसम से. मरने से पहले एक बार स्पैनिश क्लब बार्सिलोना के होम ग्राउंड कैंप नोऊ में बैठकर मैच देखना चाहते हैं हम. इसके थोड़ी देर बाद शिवानी मैम, वेस्टवुड को लेकर चली गईं और हम भी विक्रांत सर से मिलकर पलटे. अब हमको रियलाइज हुआ कि हम 'द एश्ले वेस्टवुड' से मिलकर आ रहे हैं. लगा कि जैसे उड़ रहे हों, मन किया कि किसी को पकड़कर इतना कस के गले लगा लें कि हमारी सारी भावनाएं थम जाएं. लेकिन कोई मिला नहीं. इसके बाद हम एटीएम गए, पैदल ही मेट्रो स्टेशन तक आ गए. रास्ते में फोन कर दोस्त से कहा, अबे कौन सी बियर पिएगा बे, आज तेरा भाई पिलाएगा. हालांकि माहौल कुछ ऐसा बना कि बाद में पी नहीं पाए. रात के दो बज रहे हैं और हम अभी तक सोए नहीं हैं. वो क्या है ना कि हैंगओवर अब तक उतरा नहीं है. इसे उतरने में काफी वक्त लगेगा. सच में. कभी किसी से मिलकर इतनी खुशी नहीं हुई, जितनी सर वेस्टवुड से मिलकर हुई. अभी भी हम वही फोटू देखे जा रहे हैं बार-बार, लगातार.

We Are The Blues

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement