यह लेख डेली ओ से लिया गया है, जिसे तेजिंदर सिंह बेदी ने लिखा है. दी लल्लनटॉप के लिए हिंदी में यहां प्रस्तुत कर रही हैं शिप्रा किरण.
जब आपके बैंक अकाउंट से कोई धोखे से पैसे निकाल ले, तो उस फ्रॉड की ज़िम्मेदारी किसकी होती है?
क्या इसके लिए बैंक के खिलाफ शिकायत की जा सकती है? क्या आपके पैसे वापस मिलते हैं?


अनाधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग (ई-बैंकिंग) लेनदेन के मामले में ग्राहकों की देयता को सीमित करने और ग्राहकों को हो रहे नुकसान के लिए बैंकों को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं. लेकिन इसमें अब भी बहुत कुछ करना बाकी है. निर्देशों से अधिक ये सुनिश्चित करना ज़्यादा जरूरी है कि निर्देशों के पालन किए जाएं. RBI के सर्कुलर में इस बारे में बताया गया है कि किसी भी तरह के ऑनलाइन फ्रॉड के मामले में RRB और सभी बैंकों को धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराने के 10 दिन के भीतर ही ग्राहक को पैसे रिफंड करने होंगे. बशर्ते शिकायतकर्ता ने धोखाधड़ी होने के तीन दिन के भीतर ही शिकायत दर्ज़ कराई हो.
मेरी पत्नी का अकाउंट दिल्ली-एनसीआर के एक प्राईवेट बैंक में है. हाल ही में वो ऑनलाइन धोखेबाजी और फ्रॉड का शिकार हुई. वो इंटरनेट बैकिंग का इस्तेमाल नहीं करती थीं. जब उन्हें बैंक से जुड़ा कोई काम करवाना रहता वो बैंक की किसी शाखा तक चली जातीं. वैसे तो वे अपने इस खाते का इस्तेमाल कम ही करती थीं लेकिन अपनी कुछ सीमित बचत के लिए इस अकाउंट का इस्तेमाल करती थीं. मैं खुद एक प्राइवेट कंपनी से रिटायर हुआ था. मेरी न कोई निश्चित और नियमित आय थी और न ही मुझे कोई पेंशन ही मिलता था. हम अपने जीवन भर के बचत पर निर्भर थे.
15 अप्रैल 2015 को दोपहर 12 बजे के आसपास मेरी पत्नी के पास बैंक से एक फोन आया. उससे कहा गया कि उन्हें अपना KYC ( अपडेट कराना होगा नहीं तो उनका बैंक अकाउंट बंद कर दिया जाएगा. उसे 7091765502 से फोन आया था. इसी नंबर से मेरे पत्नी के खाते की पूरी जानकारी ली गई थी. बाद में हमारे पास बैंक के ऑफिशियल नंबर से फोन आया उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का शक था कि हमारे साथ फ्रॉड हो चुका है इसलिए वे पत्नी का एटीएम कार्ड ब्लॉक कर रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि बैंक ने लेन-देन की पूरी प्रक्रिया पर नजर रखी है और उनके अकाउंट से पैसे नहीं निकल पाएंगे. उस फ़र्ज़ी कॉल को बैंक ने चुटकियों में पकड़ लिया था.
शाम तक मेरी पत्नी के रजिस्टर्ड मोबाईल पे एक मेसेज आया कि उनके खाते से 40,005.62 रूपए किसी अनजान खाते में जा चुके हैं. हमने तुरंत बैंक की वेबसाइट पर शिकायत दर्ज कराई. अगले दिन हम दोनों बैंक की ब्रांच गए. वहां के शाखा प्रबंधक सचिन सैनी से पूरी बात बताई. उन्होंने बताया कि इस तरह के मामले साइबर क्राइम सेल के हाथ में होते हैं. साइबर क्राइम सेल हैदराबाद में है. और वही इस पूरे मामले की छानबीन करेगा. और लगातार बैंक तक सारी सूचनाएं पहुंचता रहेगा. लोगों की सलाह मानते हुए मैंने बैंक के झंडेवाला के रिस्क मैनेजमेंट डिवीजन से भी सम्पर्क किया. वहां मुझे बताया गया कि बैंक हमारी बहुत अधिक मदद करने की स्थिति में नहीं हैं. बैंक के निर्देश के अनुसार मैं लगातार बैंक और उसके कर्मचारियों के संपर्क में था लेकिन मुझे किसी तरह की कोई मदद नही मिली. उसके बाद मुझसे कहा गया कि 18 मई 2015 तक इसके बारे में कोई न कोई जानकारी मिल जाएगी. लेकिन 27 मई 2015 तक कोई जानकारी नहीं मिली. मेरे पास फ्रॉड से जुड़ी जितनी भी जानकारी थी मैंने सारी जानकारियां बैंक के साथ शेयर कर दी थीं. मैंने बैंक से भी रिक्वेस्ट किया कि मुझे उस खाते की पूरी डिटेल उपलब्ध कराई जाए जिसमें पैसे क्रेडिट हुए थे. इस घटना के तीन साल बीत चुके हैं लेकिन अब तक बैंक की तरफ से मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है.
इस पूरे घटना क्रम के दौरान मेरी पत्नी का अकाउंट बंद कर दिया गया और उनके डेबिट कार्ड को लॉक कर दिया गया. RBI के नए नोटिस और सर्कुलर ने बाद में बताया है कि इस तरह के मामले में पुलिस कम्प्लेन और इंश्योरेंस की कार्यवाही बैंक की तरफ से की जाएगी, उपभोक्ता की तरफ से नहीं. बैंक उपभोक्ता की आर्थिक सुरक्षा के लिए मुझे लगता है कि सभी बैंकों को RBI के मैंडेट नहीं मुहैया कराए गए हैं. बैंकों के पास तो मैंडेट होने ही चाहिए, ग्राहकों के पास भी होने चाहिए.
90 के दशक के मध्य में जब शुरू-शुरू में बैंकों ने क्रेडिट-डेबिड कार्ड की सुविधा शुरू की. उन्होंने धड़ल्ले से गैर-पंजीकृत और ऐसे उपभोक्ताओं को भी कार्ड बांट दिए जिनकी कार्ड लेने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. बैंकों ने कार्ड तो सबको दे दिए लेकिन उन्हें बैंक का कायदे-क़ानून और नियमों के बारे में सही जानकारी नहीं दी. ख़ास कर गृहणियां, छात्र और ऐसे उपभोक्ता जिनका तकनीक से कोई लेना-देना नहीं था, उनको ऑनलाइन धोखाधड़ी का शिकार होने की ज्यादा आशंका थी. उपयुक्त जानकारी के अभाव और उचित प्रशिक्षण की कमी के कारण ऐसी घटनाएं होती हैं और पूरे तंत्र पर सवालिया निशान खड़ा करती हैं.
ई-बैंकिंग को सही तरीके से चलाने के लिए ये जरूरी है कि नियम ऐसे बनें जिससे उपभोक्ता आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस कर सके. पैसों की ऑनलाइन निकासी को सुरक्षित बनाने के लिए सही सुरक्षा प्रणाली अपनाने की जरूरत है.मेरी पत्नी की तरह ही कई अन्य और ग्राहक भी हैं. उनके जरूरी बचत जिसे उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र और बीमारियों के लिए जमा कर रखे थे, साइबर क्राइम का शिकार हो गए. उनके हित को देखते हुए मैं कुछ सवाल उठाने चाहता हूं- NPC और बैंक, अजनबियों को या ऐसे अकाउंट्स जो सत्यापित नहीं हैं या जो पंजीकृत नहीं हैं को, IMPS के माध्यम से लेन-देन की इजाजत क्यों देता है?
क्यों IMPS की मदद से किसी भी खाताधारी के खाते में पैसे इतनी आसानी से भेजे जा सकते हैं. बिना उस अकाउंट नंबर की जानकारी या बिना IFSC कोड को जाने. जब बेनिफिशियरी (जिसके खाते में पैसे जा रहे हैं) रजिस्टर नहीं है या ऑथराइज नहीं है. फिर बैंक कैसे उसे स्वीकार कर लेता है? जब बैंक के साइबर सेल इस तरह के धोखाधड़ी वाले फोन कॉल को रोक सकते हैं तो ऐसा क्यों है कि ये उसी समय इस धोखाधड़ी वाले लेन-देन, या ट्रांसफर को नहीं रोक पाते? जबकि सामान्यतया किसी भी सुरक्षित बैंकिंग सेवा में इतनी तो सावधानी बरती ही जाती है. कम से कम इतना तो हो सकता है कि जिन बैंकों के साथ ग्राहक अपने बचत खाते चला रहे हैं वो उनके भुगतान किए गए राशि का अग्रिम क्रेडिट वापस कर दें. मुझे पूरी उम्मीद है कि बड़े-बड़े साम्राज्यों को चलाने वाले हमारे आईटी प्रोफेशनल हम जैसे उपभोक्ताओं की मदद जरूर करेंगे.
सबसे जरूरी बात ये है कि अगर बैंक ग्राहकों के साथ हो रही ऐसी धोखाधड़ी को गंभीरता से नहीं ले रहा या उनकी मदद के लिए कोई कदम नहीं उठा रहा है तो इस बात से कहीं न कहीं ये भी शंका होती है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बैंक के अधिकारी या कर्मचारी भी इन मामलों में संलिप्त हों? और सब कुछ जानते-बूझते हुए भी बैंक इन बातों को नज़रअंदाज़ कर रहा हो.
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