उन्होंने बताया कि नॉर्थ ईस्ट के आदिवासी समाज में अभी भी बहुपत्नी प्रथा है. हालांकि यह लगभग नहीं के बराबर है. उसी तरह से हिमाचल के कुछ समाज में एक ही पत्नी के कई पति होते थे. हर समाज में अलग-अलग परंपरा रही है. लेकिन भारत के मुख्य आदिवासी समाज में एक पत्नी प्रथा ही है.
आदिवासी समाज में शादी के कई तरीके होते हैं. कुछ आदिवासी समुदायों में शादी का मतलब ये है कि दो बालिग लोग सहमित से एक साथ रहने लगें तो वो शादीशुदा हैं, इसके लिए रीति-रिवाज से शादी करना ज़रूरी नहीं है. वहीं, कई समुदायों में समाज या परिवार की पहल से शादियां होती हैं

आदिवासियों के लिए कानून क्या कहता है? भारतीय संविधान 25 भागों में बंटा है, जिसमें 12 अनुसूचियां और 448 अनुच्छेद हैं. इन्हीं के सहारे देश चलता है. इस संविधान में पांचवी और छठी अनुसूची आदिवासियों से जुड़ी है.
पांचवी अनुसूची में अनुसूचित जनजाति की सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और आर्थिक अस्तित्व की सुरक्षा का प्रावधान है. इसमें आदिवासियों की जीवन शैली की गहराइयों और उनकी मूल भावना पर बात की गई है. इसमें उनकी परंपराओं और रिवाजों, और उनकी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने पर जोर दिया गया है. इसलिए आदिवासियों की परंपरा और संस्कृित के मामले में कोई और कानून लागू नहीं होता. हिन्दू धर्म में क्या है? हिंदू कैसे शादी करेंगे, शादी से जुड़े कौन से कानून उन पर लागू होंगे. इस सबका हिसाब-किताब हिंदू मैरिज ऐक्ट, 1955 में है. इसके मुताबिक, दूसरी शादी करने के लिए जरूरी है कि आप पहली शादी के पार्टनर (पति या पत्नी) से तलाक लें. अगर आपने तलाक लिए बिना ऐसा किया, तो दूसरी शादी गैरकानूनी मानी जाएगी. मतलब उसकी कोई वैधता नहीं होगी. यानी कानून की नजर में एक वक्त में आपकी बस एक शादी जायज हो सकती है. इस कानून का उल्लंघन करने के दोषी पाए गए, तो इसकी सजा IPC के सेक्शन 494 और 495 में तय की गई है. दोषी पाए जाने पर सात साल तक की जेल और जुर्माना भरने की सजा देने का कानून है.

अदालत कैसे मानेगी कि दूसरी शादी हुई है? इसके लिए जरूरी है कि दूसरी शादी भी रीति-रिवाजों के साथ हुई हो. दूसरी शादी का सबूत देना होगा. चूंकि ये हिंदू मैरिज ऐक्ट है, तो शादी भी हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक हुई हो. जैसे- मांग भरी गई हो. मंगलसूत्र पहनाया गया हो.
लेकिन अगर कोई व्यक्ति दो महिलाओं के साथ एक एक ही समय में में शादी करता है तो ऐसे में कानून की क्या भूमिका रहती है. इस बारे में एकवोकेट मनमोहन सिंह का कहना है,
टेक्निकली देखेंगे तो हिन्दू मैरिज में ऐसा नहीं हो सकता कि कोई दोनों को एक साथ मंगलसूत्र पहना दे. यानी इसमें भी पहली और दूसरी पत्नी की बात आती है. जिसे पहले मंगलसूत्र पहनाया गया, टेक्निकली वह पहली पत्नी होगी. कानून पहली पत्नी से शादी को ही वैलिड मानेगा. लेकिन कानून की बात तब आती है जब शादी करने वाले या उनके परिवारों को ऐतराज हो. इस तरह के मामलों में कोई तीसरा पक्ष केस नहीं कर सकता. इस तरह की शादियों में शिकायत पति-पत्नी या उनके परिवार वाले ही कर सकते हैं तभी कानून एक्शन लेगा.मुस्लिमों में क्या सिस्टम है? मुस्लिम धर्म में ऐसा नहीं है कि एक ही टाइम पर कोई चार बीवियों से निकाह कर ले. इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाज़त दी गई है, लेकिन इसे आवश्यक नहीं बनाया गया है और न ही इसे बढ़ावा देने की बात कही गई है. बल्कि इसके लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं. एक से अधिक शादी करने की खुली छूट न क़ुरान में है न हदीस में है.
अगर पहली पत्नी से कोई बच्चा नहीं हो रहा है तो व्यक्ति दूसरी शादी कर सकता है. अगर पत्नी को ऐसी बीमारी है जिससे फिजिकल रिलेशन नहीं बनाए जा सकते तो दूसरी शादी कर सकते हैं. अगर कोई महिला यतीन हो गई है (जिसका आगे-पीछे कोई ना हो) तो शादी कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए पहली पत्नी से इजाजत लेनी होती है. उनकी इजाजत के बाद ही दूसरी शादी हो सकती है. अनुमति मिलने के बाद भी दूसरी शादी तभी हो सकती है जब आप सबके साथ इंसाफ कर पाएं. कुरान में कहा गया है कि चारों बीवियों को एक तरह रखना इंसान के बस की बात नहीं है. इसलिए अगर ऐसा नहीं कर पा रहा है तो वो एक से ज्यादा शादी न करे.

अगस्त 2019 में इस्लाम में एक से अधिक शादी करने के मामले में विधि आयोग की रिपोर्ट की उलेमा ने आलोचना की थी. विधि आयोग ने विधि मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दूसरी शादी करना 'इस्लाम के सच्चे क़ानून की आत्मा के ख़िलाफ़ है. सुप्रीम कोर्ट में याचिका सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर द्विविवाह को सभी धर्मों के लिए असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. इससे पहले भी इस तरह की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होती रही हैं. जनवरी 2020 में मुस्लिम समुदाय में बहुपत्नी प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिये ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आवेदन दायर किया था. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने आवेदन में कहा था कि शीर्ष अदालत पहले ही 1997 में अपने फैसले में बहुविवाह के मुद्दे पर गौर कर चुकी है.
नफीसा खान ने मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ की वजह से भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (पति या पत्नी के जीवनकाल में ही दूसरी शादी करना) मुस्लिमों पर लागू नहीं हो रहा है. याचिका में उन्होंने कहा था कि किसी भी मुस्लिम महिला के पास बहुविवाह के अपराध के लिये अपने पति के खिलाफ शिकायत दायर करने का उपाय नहीं है. नफीसा खान ने मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून, 1939 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी.
सिख, ईसाई और पारसी समुदाय में एक पत्नी के रहते दूसरी शादी की इजाज़त नहीं है.