
सयाजी ऊ बा खिन फिर हुए सयाजी ऊ बा खिन. ये नाम है. बर्मा के थे. 6 मार्च, 1899 को बर्मा की राजधानी रंगून में पैदा हुए. पहले पहल क्लर्क हुआ करते थे. एकाउंटेंट जनरल के ऑफिस में. जब बर्मा, भारत से अलग हुआ, उस वक्त रंगून नदी के किनारे एक गांव के किसान से उन्होंने ‘आनापान’ का कोर्स किया. इसमें दिमाग और चित्त को एकाग्र करना सिखाया जाता है. सीख-सिखाकर 1950 में इन्होंने अपने ऑफिस में विपश्यना केंद्र बनाया, तब तक ये स्पेशल ऑफिस सुपरिटेंडेंट बन गए थे. 1952 में सयाजी ने ही रंगून में अंतरराष्ट्रीय विपश्यना ध्यान केंद्र की स्थापना की.
31 साल का एक आदमी एक बार उनके पास आया. सयाजी ने उसे विपश्यना सिखाया. उस आदमी का नाम सत्यनारायण गोयनका था. वो मारवाड़ी समूह के व्यापारी थे. मांडले में पैदा हुए थे. 14 साल तक उन्होंने सयाजी से ट्रेनिंग ली. 1969 में सत्यनारायण गोयनका विपश्यना को एक बार फिर भारत लेकर आए. 1969 में शिविर लगाने शुरू किए. 120 असिस्टेंट्स को इस काम के लिए ट्रेंड किया. और विपश्यना एक बार फिर भारत में ज़िंदा हो गई. बाद में 2012 में उनको इस काम के लिए पद्मभूषण भी मिला.

विपश्यना के 3 स्टेज पहला स्टेज - जो साधक होता है, वो उन सब चीजों से दूर रहता है, जिससे उसको नुकसान हो. इसके लिए पंचशील का पालन करना पड़ता है. मतलब जीव-हिंसा से दूर रहना, चोरी से बचना, झूठ न बोलना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और नशे से दूर रहना.
दूसरा स्टेज - इसमें साढ़े 3 दिन लगते हैं. अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करना और मन एकाग्र करना होता है. इसको ‘आनापान’ कहते हैं. ‘आनापान’ आन और अपान से बना है. आन माने आने वाली सांस, अपान माने जाने वाली सांस. इससे मेमोरी बढ़ती है.
तीसरा स्टेज - इसमें बॉडी के अंदर हर पल घट रही संवेदनाओं को एक दर्शक जैसे देखना सिखाया जाता है. ऐसे में अपने अंदर जो कुछ भी वेदना-संवेदना चल रही हो, उसका पैटर्न समझ आने लगता है. ऐसे में ये समझ आता है कि अच्छा हो या बुरा, सब बदलता ही रहता है. हम चाहें तब भी उसका बदलना रोक नहीं सकते. विपश्यना का रुटीन विपश्यना के बारे में तमाम ज़रूरी बातें जानने के लिए हमने बात की राजेश मित्तल से, जो खुद भी विपश्यना कर चुके हैं. बड़े पत्रकार हैं. उन्होंने विपश्यना का पूरा रुटीन बताया –
“तड़के 4 बजे उठो. फ्रेश होने के बाद 4:30 बजे ध्यान कक्ष पहुंच जाओ. वहां 6:30 तक ध्यान करो. 6:30 से 7:15 के बीच नाश्ता, फिर 8 बजे तक का वक्त नहाने-धोने के लिए दिया जाता है. 8 से 9 और 9 से 11 ध्यान के दो सेशन. 11 बजे लंच. उसके बाद 1 बजे तक का वक्त आराम का. 1 से 2:30, 2:30 से 3:30 और 3:30 से 5 - ध्यान के तीन सेशन. 5 से 5:30 स्नैक्स. 6 बजे तक आराम. 6 से 7 ध्यान, 7 से 8:30 गोयनका जी का वीडियो पर प्रवचन, 8:30 से 9 बजे तक ध्यान. ध्यान के हर घंटे, दो घंटे बाद 5-10 मिनट का बायो ब्रेक दिया जाता है.”विपश्यना के मेन सेंटर का पूरा पता है: विपश्यना इंटरनैशनल अकैडमी, धम्मगिरि, इगतपुरी, जिला नासिक, महाराष्ट्र. सीखने के लिए इगतपुरी जाना जरूरी नहीं. देश में इसके करीब 70 सेंटर हैं और पूरी दुनिया में कुल 161 सेंटर. www.vridhamma.org विपश्यना के इगतपुरी सेंटर की वेबसाइट है. www.dhamma.org पर ऑनलाइन बुकिंग भी है. कितनी कठिन है विपश्यना? राजेश मित्तल ने बताया –
“10 दिन तक एक कमरे में कैद रहने जैसा होता है. पढ़ना, लिखना, टीवी, इंटरनेट, ईमेल सब बंद. ध्यान के सेशंस शुरुआत में काटे नहीं कटते थे. ब्रेक का इंतज़ार करता था. टांगें, गर्दन बुरी तरह दर्द होने लगते थे. शुरू के 3 दिन तो ऐसा लग रहा था कि कहां आकर फंस गया हूं. लेकिन फिर धीरे-धीरे चीजें अभ्यास में आने लगीं. लगा कि शरीर और मन की सीमाओं के पार जाने को मिल रहा है. ये अनुभव कितना काम आता है, ये इस पर निर्भर करता है कि आप विपश्यना से वापस आकर ध्यान लगाना जारी रखते हैं या नहीं. लेकिन ये 10 दिन का अनुभव अद्भुत था.”चलते-चलते बता दें कि विपश्यना के कोर्स पूरी तरह फ्री होते हैं. रहने, खाने का भी पैसा नहीं लिया जाता. शिविर का सारा खर्च पुराने साधकों के दिए दान से चलता है. शिविर खत्म होने पर कोई चाहे तो भविष्य के शिविरों के लिए दान दे सकता है.