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क्या कैदियों की जरूरत का सामान जेल के बाहर से भिजवाया जा सकता है?

क्या कहते हैं नियम, जान लीजिए

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ह्यूमन राइट ऐक्टिविस्ट गौतम नवलखा को पहले जेल में नया चश्मा देने से इनकार कर दिया गया था, अब परिवार की ओर से उनके लिए भेजी गई किताबें लौटा दी गई हैं. (तस्वीर: एएफपी)
ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट गौतम नवलखा भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में अप्रैल 2020 से मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं. उनकी पार्टनर सबा हुसैन ने कहा था कि जेल में 27 नवंबर को गौतम नवलखा का चश्मा चोरी हो गया था. उन्होंने नया चश्मा भेजा, लेकिन जेल प्रशासन ने उसे लौटा दिया. इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने जेल अथॉरिटीज़ की क्लास लगाई और उनकी वर्कशॉप कराने तक की बात कह दी. ताज़ा मामले में गौतम नवलखा और सुधा भारद्वाज के वकील ने मुंबई में कोर्ट को बताया कि जेल में उन्हें किताबें तक देने से मना किया जा रहा है. इन्हीं मामलों की रोशनी में आइए जानने की कोशिश करते हैं कि जेल में कैदियों से मिलने आने वालों के लिए नियम क्या हैं, उनके लिए घर से सामान लाने के नियम क्या कहते हैं? सबसे पहले जान लेते हैं कि कैदियों के लिए कौन सी चीज़ें प्रतिबंधित हैं? दिल्ली सरकार की आधिकारिक वेबसाइट के जेल मैनुअल के मुताबिक़, उन चीज़ों की लिस्ट देखिए जो कैदियों के लिए प्रतिबंधित हैं. किसी भी किस्म की नशीली चीज़. विस्फोटक और जहरीली चीज़ें. चाकू समेत कोई भी हथियार. सिक्का, ज्वेलरी आदि. रस्सी या जंजीर जैसा कुछ भी. ईंट, पत्थर, बांस के सामान, छड़ी आदि. जुआ खेलने के लिए ताश या कुछ भी. टेप रिकॉर्डर, टाइपराइटर, मोबाइल या कोई ऐसा इक्विपमेंट जिसका दुरुपयोग किया जा सकता हो. किताबों को लेकर क्या नियम हैं? किताबों की बात करें तो सभी किताबें, प्रिंटेड या लिखित कागज़ और ऐसी कोई भी चीज़ जिससे प्रिंट किया जा सके,  लिखा जा सके, निषेध है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि कैदियों को ये चीजें मिल ही नहीं सकतीं. जेल सुपरिटेंडेंट चाहे तो किताब, कागज़, पेन, पेन्सिल आदि की इज़ाज़त दे सकता है. इसके अलावा जेलों में कैदियों के लिए पुस्तकालय होते हैं. पढ़े-लिखे कैदी, जो अच्छा व्यवहार करते हों, उन्हें रविवार या अन्य किसी दिन आराम के घंटों के दौरान किताबें, मैगजीन आदि दी जा सकती हैं. सुपरिटेंडेंट अगर इज़ाज़त दे तो जेल से बाहर का भी कोई व्यक्ति किताब डिलीवर कर सकता है. कैदी सुपरिटेंडेंट की मंजूरी से कोई धार्मिक किताब अपने पास भी रख सकता है. जेल अधिकारी कैदी को दी गई ऐसी छूट वापस भी ले सकता है, बशर्ते कोई कारण हो. कैदियों के पास कोई प्रतिबंधित सामान तो नहीं है, इसके लिए समय समय पर उनकी बैरकों की तलाशी ली जाती है. नियम कहते हैं कि डिप्टी सुपरिटेंडेंट को सप्ताह में एक बार हर कैदी की जांच करनी होती है. जांच में कैदी के पास अगर कुछ भी प्रतिबंधित चीज़ मिलती है तो वह ज़ब्त कर ली जाती है. जेल अधिकारियों ने क्या बताया? हमने उत्तर प्रदेश और दिल्ली के एक-एक जेल सुपरिटेंडेंट से बात की. दोनों ने नाम न छापने की शर्त पर कई जानकारियां दीं. दिल्ली की एक जेल के सुपरिटेंडेंट ने हमें बताया कि गिने-चुने लोगों को ही कैदी से मिलने की छूट दी जाती है. कोई किसी केस में आरोपी हो या दोषी, जेल में आने के बाद अधिकतम 10 ऐसे लोगों के बारे में जानकारी दे सकता है, जो उससे मिलने आ सकते हैं. आमतौर पर ये उसके रिश्तेदार, दोस्त या फिर जानने वाले होते हैं. अधिकतर कैदी 3-4 लोगों के नाम साझा करते हैं. कैदी को एक सप्ताह में किसी से अधिकतम दो बार आधे-आधे घंटे के लिए मिलने की छूट दी जा सकती है. जेल सुपरिटेंडेंट का कहना था कि कई बार कैदी के दुश्मन भी उससे मिलने की कोशिश करते हैं, ऐसे में हम कैदी की इज़ाज़त के बाद ही किसी को उससे मिलने देते हैं. जेल सुपरिटेंडेंट ने बताया कि कैदी से मिलने आने वाले लोग उसे खाने-पीने का सामान नहीं दे सकते. हालांकि कपड़े, चप्पल, जूते आदि देने की छूट होती है. खाने-पीने का सामान तभी घर से लाकर दिया जा सकता है, जब अदालत ऐसा आदेश दे. घर से किताबें लाकर देने के सवाल पर जेल सुपरिटेंडेंट ने कहा कि कैदी को किसी भी तरह की किताबें दी जा सकती हैं, सिवाए अश्लील, कट्टरपंथी साहित्य और प्रतिबंधित किताबों के. जेल परिसर में सभी धार्मिक किताबें उपलब्ध रहती हैं. कोई कैदी चाहे तो धार्मिक, एकेडमिक, रिसर्च जर्नल्स आदि की किताबें पढ़ सकता है. जेल अधिकारी उचित समझें तो उसे इस तरह की किताबें डिलीवर करने की छूट भी दे सकते है. इसी मामले पर हमने उत्तर प्रदेश के भी एक जेल सुपरिटेंडेंट से बात की. उन्होंने बताया कि हर प्रदेश के नियम में थोड़े-बहुत अंतर होते हैं. खाने-पीने की चीजों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में कैदी को घर का बना खाना देने की इज़ाज़त नहीं होती. कोई चाहे तो कैदी को उसकी इज़ाज़त से ड्राई फ्रूट्स और फल दे सकता है. ब्रश, मंजन, कपड़े, चप्पल, जूते आदि डिलीवर कर सकता है. कैदियों से मिलने जो लोग आते हैं, उन्हें कड़ी तलाशी के बाद ही मुलाकात करने दी जाती है. जेल अधिकारियों के मुताबिक, मोबाइल, सिम, बैटरी, चाकू, नशे का सामान आदि उन चीजों में से हैं, जो मुलाकातियों की तलाशी में सबसे ज्यादा पकड़े जाते हैं. इनको लेकर सख्त नियम हैं. कैदियों को जेल में बनी कैंटीन से पसंद का खाना और सामान खरीदने की छूट होती है. लेकिन इसके लिए पैसे चुकाने होते हैं. दिल्ली के तिहाड़ जेल की बात करें तो यहां जेल की कैंटीन से कैदी हफ्ते में अधिकतम दो हज़ार रुपये का खाना खरीद सकते हैं. खाने-पीने की चीजों के अलावा शैंपू, साबुन, बाल्टी, मग आदि भी खरीद सकते हैं. कैदी चाहें तो अपने कपड़े जेल में प्रेस करवा सकते हैं. अंडरट्रायल कैदी घर से लाए कपड़े पहनते हैं, लेकिन तौलिया, गमछा आदि नहीं ले जा सकते. आखिर में बता दें कि ये बातें तो वो हैं, जो कानून में लिखी हैं और जो जेल अधिकारियों ने बताई हैं. लेकिन कई बार जेल के सुरक्षाकर्मियों पर नियमों को ताक पर रखने के भी आरोप लगते रहे हैं.  

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