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कब तक देश में 'क्षत्रिय' होने का फ्रॉड चलता रहेगा?

इंफोसिस के CEO विशाल सिक्का से इस बात की उम्मीद नहीं थी.

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फोटो - thelallantop
मैदान में एक ऐसे क्षत्रिय आए हैं, जिनसे इस बात की उम्मीद नहीं थी. इंफोसिस में लड़ाई चल रही है. फाउंडर नारायण मूर्ति अपनी ताकत छोड़ना नहीं चाहते. संन्यास ले लेते हैं, फिर कुछ दिन बाद कहते हैं कि मैंने इसमें संन्यास लिया था, उसमें नहीं. उसमें तो बोल ही सकता हूं. फिर बोल देते हैं. TCS के बाद देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी है इंफोसिस. पर फाउंडर्स और एग्जीक्यूटिव्स के बीच जंग चल रही है. शब्दों की लड़ाई तो चल ही रही है, बात पब्लिक में भी आ गई है. इसके साथ ही ट्रंप वाला मसला भी है. अमेरिकी वीजा को लेकर बदलते नियम चिंता पैदा कर रहे हैं.
पर इंफोसिस के सीईओ विशाल सिक्का के पास इन सारी बातों का एक जवाब है. विशाल ने एक इंटरव्यू में इन चिंताओं के मद्देनजर कहा- मैं एक क्षत्रिय हूं. क्षत्रिय योद्धा. मैं यहां रुकने आया हूं.
क्यों विशाल, अगर आप भारत की हजारों जातियों में से कोई और रहते तो नहीं रुकते क्या. क्या हर कंपनी में क्षत्रिय योद्धा ही रुके हुए हैं. कंपनियां जाति देख के हायर करती हैं क्या. आखिर क्यों हमारा डिस्कोर्स जाति पर आकर रुक जाता है. विशाल सिक्का जैसे इंसान जो पूरी दुनिया घूम चुके हैं, दुनिया की आधुनिक इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं, उनसे इस बात की उम्मीद नहीं थी. अगर वाकई में क्षत्रिय का जो पूरा कॉन्सेप्ट सही है, तो आखिर राजस्थान में रानियों को जौहर क्यों करना पड़ा. क्यों नहीं बचा पाये. उससे पहले देखिए. सारी कहानियों में एक बात जरूर रहती है. सारी रानियां युद्ध वाले गाने गाती थीं, थाल-आरती सजाकर सबको युद्ध के लिए प्रेरित किया जाता था. कई राजाओं की कहानियां हैं, जिनमें उनका लड़ाई में जाने का मन ही नहीं करता था. रानियां जोर-जबर कर भेजती थीं. ये लोग हार जाते थे. क्योंकि मिलिट्री स्किल कभी नई नहीं किये थे. तो रानियों को जौहर करना पड़ता था. इतने ही काबिल रहते थे तो औरतें खुद को आग क्यों लगातीं. जाति का यही उन्माद था कि किसी और को लड़ने नहीं देते थे. पब्लिक तमाशा देखती. क्योंकि वो नीची जातियां थीं. जो दिन भर खेत में काम करता है, वो नीचा है. कमजोर है. दिन भर वीणा लेकर बैठने वाले ताकतवर थे. कहानियां गढ़ दी गईं कि 200 किलो का जिरह बख्तर और 100 किलो का भाला लेकर चलते थे राजा लोग. इतना कोई ले ले तो चल नहीं पाएगा. चले तो हार ही जाएगा. पूरी दुनिया के योद्धा हल्के और तेज हथियारों की बड़ाई करते थे, पर इन लोगों को भारी हथियार चाहिए थे. इनकी लड़ाई की कहानियां पढ़ के यही लगता है कि ये लोग बस ये चाहते थे कि क्षत्रिय नाम सुन के ही लोग हथियार डाल दें. लड़ें नहीं.
क्या ये अजीब नहीं लगता कि गड़ेरियों को लेकर बनाई फौज लेकर तैमूर और नादिरशाह आये थे और सब को धो के चले गये? जाति का दंभ तब भी नहीं गया. तब भी नहीं सीखे कि सबको मिलाकर रखें, हर जाति का, पूरी जनता का सपोर्ट लें. तैमूर या नादिर की बहादुरी इसमें थी कि किसी भी तरह के लोगों को इन लोगों ने योद्धा बना दिया था.
चंगेज खान से लेकर बाबर तक, सबने योग्यताओं पर भरोसा किया. उनके खानदान का नाम भी चला तो चंगेजी और बाबरी कहने में लोग गुमान करते थे. किसी ने जाति का दंभ नहीं भरा. इसी दंभ की वजह से भारत की 90 प्रतिशत जनता हमेशा तमाशबीन बनी खड़ी रही. और जब गांधी ने एक लाठी लेकर सबको हांका तो लोगों ने देश से 200 सालों की गुलामी खत्म कर दी. कितने क्षत्रिय थे उस वक्त. अगर स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो कितने क्षत्रिय नेता थे?
कहने का मतलब ये नहीं है कि जो क्षत्रिय जाति का है, वो खराब है. मतलब ये है कि जाति का कोई मतलब नहीं है. जाति के आधार पर खुद को आंकना आपके अपने मन में सही हो सकता है, पर जब आप पब्लिक में कहते हैं, तो बाकी लोगों का अपमान करते हैं.
अगर वाकई में ऐसा है तो क्यों नहीं हम ओलंपिक में सिर्फ क्षत्रियों को भेज देते हैं, जो जाते और गर्वीली आंखों से सबको देखते, फिर सारा मैडल बटोर लाते. फिर माइकल फेल्प्स तो कभी तैरने ही नहीं आता. उसैन बोल्ट दौड़ने नहीं आता. फुटबॉल में तो क्षत्रिय गोलपोस्ट भी उखाड़ देते. आइसलैंड के लोग सबसे ज्यादा मजबूत नहीं कहे जाते. किस ताकत की बात कर रहे हैं विशाल. मानसिक या शारीरिक. अगर मानसिक मजबूती की बात करें तो अंबेडकर से ज्यादा मजबूत कौन हुआ है. सबसे लड़कर भारत को वो संविधान दिया, जो सबको लेकर चल रहा है. शारीरिक की बात करें तो फिर ओलंपिक तो क्षत्रियों के गढ़ राजस्थान में ही होना चाहिए. इससे पहले राजस्थान को तो अब तक ग्रीन हो जाना चाहिए था. आखिर क्षत्रिय संकल्प जो उठा लिया जाता वहां. क्या पुलिस और आर्मी में सिर्फ क्षत्रिय भरे जाते हैं. विशाल को शायद ये अंदाजा भी नहीं कि उनकी एक बात से कितना डैमेज हो जाएगा. भारत तो जाति को लेकर मूढ़ बना ही हुआ है. ये वो लेबल है जो सैकड़ों सालों से तमाम लोगों को जीने नहीं देता है. जाति के नाम पर लोग कचरा उठाने औऱ खाने को मजबूर हैं. जाति को आधार बनाकर लोग मार दिये जाते हैं. जाति के आधार पर लोग अपनी ही लड़कियों का गला घोंट देते हैं. ये वही जाति की इज्जत है. क्या विशाल भी हॉनर किलिंग करेंगे? जाति दंभ के लिए. वो भी शोभा देगा क्षत्रियों को. Read This Also-

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