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अटल बिहारी ने सुनाया मौलवी साब का अजीब किस्सा

पूर्व पीएम और बीजेपी लीडर अटल बिहारी वाजपेयी के जिंदादिल किस्सों से भरी है ये किताब. आज अटल के जन्मदिन पर किस्सागोई

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फोटो - thelallantop
चर्चित टीवी पत्रकार विजय त्रिवेदी ने एक किताब लिखी है. पूर्व पीएम और बीजेपी लीडर अटल बिहारी वाजपेयी के जिंदादिल किस्सों से भरी है ये किताब. इसका टाइटल है हार नहीं मानूंगा- एक अटल जीवन गाथा. जाहिर है कि ये वाजपेयी की ही एक चर्चित कविता का टुकड़ा है. इस किताब को हार्पर कॉलिन्स ने छापा है.
हां, तो हम बात कर रहे थे किताब रिलीज की. इस दौरान कई लोगों ने अटल बिहारी के नए-नवेले किस्से सुनाए. हम सुन आए. अब आपके लिए लाए.
नजमा बोलीं, मैं कलाम की तरफ से या अटल की तरफ से
पहला किस्सा पूर्व कांग्रेसी और वर्तमान भाजपाई नेता नजमा हेपतुल्ला की तरफ से. पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के परिवार से हैं. कांग्रेसी रहीं. राज्यसभा में डिप्टी चेयरमैन रहीं. फिर सोनिया से नहीं पटी, तो बीजेपी में आ गईं. उन्होंने बताया. वह कनाडा गई थीं. वाजपेयी जी पीएम थे और कलाम साहब प्रेजिडेंट. तो पीएम साब का फोन पहुंचा. उन्होंने कहा कि आपको पाकिस्तान जाना है. नजमा ने पूछा, काहे. तो अटल ने बताया कि मुशर्रफ की बीवी ने दुनिया भर की फर्स्ट लेडी का सम्मेलन किया है. तो वहां आपको जाना है. नजमा ने चुहल करते हुए पूछा, तो मैं वहां किसका प्रतिनिधित्व करूंगी. आपका या कलाम साहब का. क्योंकि दोनों ही अविवाहित हैं. अटल ने हंसते हुए कहा, आप देश भर का प्रतिनिधित्व करेंगी. इस पर नजमा बोलीं, ये तो और भी खतरनाक बात है.
दूसरा किस्सा भी नजमा ने सुनाया
इसमें भी किरदार वही दोनों. वाजपेयी और मुशर्रफ. मुशर्रफ आगरा समिट के लिए आए थे. वाजपेयी ने नजमा का परिचय कराया. नजमा ने ताना मार दिया. जिस दिन मैं दुनिया भर के स्पीकर्स\चेयरमैनों की सभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी, उसी दिन 12 अक्टूबर को आपने पाकिस्तान में लोकतंत्र मार दिया. मुझे मजबूरन पहला फैसला पाकिस्तान को इस सभा से बाहर करने का लेना पड़ा. मुशर्रफ इस तंज पर चुप्पी साध गए. अटल ने किसी तरह होंठ दबा हंसी रोकी. जब जनरल चले गए तो खिलखिला उठे और बोले, तू बहुत शरारती है.
परवेज मुशर्रफ के साथ अटल बिहारी वाजपेयी
परवेज मुशर्रफ के साथ अटल बिहारी वाजपेयी

अटल ने सुनाए मौलवी के लड़कों के किस्से
ये तीसरा किस्सा बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के सौजन्य से. तिरबेदी जी तब बालक थे. लखनऊ यूनिवर्सिटी में नेतागीरी करते थे. 2004 का चुनाव था. अटल बिहारी लखनऊ से सांसद थे. तो अपने घर पर लोकसभा क्षेत्र के सक्रिय कार्यकर्ताओं को बुलाया. सब लगे हौंकने. इस बार तीन लाख से जीतेंगे, चार लाख से जीतेंगे. वाजपेयी आंख मूंदे सुनते रहे. आखिर में किस्सा सुनाया. एक मौलवी का.
किसी ने पूछा, मौलवी साब आपके कितने बच्चे हैं. उन्होंने जवाब दिया. वैसे तो एक है. पर चार भी हैं. और कहा जाए तो 100 भी हैं. और एक तरह से बेऔलाद भी हूं.
पूछने वाले को झिला ही नहीं कि क्या बोल गए मौलाना. उसने पूछा, अब माने भी समझा दीजिए. तो मौलवी बोले.
है तो एक. मगर जब खाना खाता है, तो लगता है कि चार लड़कों के बराबर खा गया. जब बाहर जाता है और शैतानी करता है तो इतनी शिकायतें आती हैं कि लगता है कि 100 लड़के कर आए हों. मगर जब वाकई मुझे उसकी जरूरत होती है, तब सिरे से गायब रहता है. बेऔलाद लगता है तब.
कार्यकर्ता समझ गए. झोंकाझांकी से काम नहीं चलेगा. चले गए लखनऊ लदकर टिरेन पर. काम करने. वाजपेयी सांसदी जीते, मगर सत्ता हारे. और वो तो आप सबको पता ही है.
अटल बिहारी वाजपेयी पर विजय त्रिवेदी की किताब: हार नहीं मानूंगा - एक अटल गाथा
अटल बिहारी वाजपेयी पर विजय त्रिवेदी की किताब: हार नहीं मानूंगा - एक अटल गाथा

चौथा किस्सा सुनाया जया जेटली ने
कभी एक पार्टी हुआ करती थी. एनडीए के साथ थी. समता पार्टी नाम था. उसकी ये मोहतरमा कार्यवाहक अध्यक्ष भी थीं. जॉर्ज फर्नांडिस उसके सर्वेसर्वा थे. और हां, जया जी अपने क्रिकेटर अजय जडेजा की सास भी हैं. एक परिचय ये भी है कि तहलका के स्टिंग में मैडम का भी नाम आया था. खैर, उन्होंने अटल और जॉर्ज के किस्से सुनाए. जॉर्ज इमरजेंसी के बाद के दौर में अटल के करीब आए. वह वाजपेयी को कहते. आप बढ़िया इंसान हैं. जनसंघ की सांप्रदायिक राजनीति में क्यों फंसे हैं. आइए साथ मिलकर एक मानवतावादी दल बनाते हैं. वाजपेयी विचारते. फिर कहते, नहीं, ये जीवन तो संघ के लिए है.
एनडीए की सत्ता के दिनों में जॉर्ज क्रिसमस का केक अटल के घर पैदल लेकर जाते. काहे कि उसी दिन हैप्पी बड्डे जो होता था. जॉर्ज ये भी कहते कि एनडीए कनवीनर बड़ी मुसीबत है. ईसाइयों पर कहीं भी कुछ हो, वाजपेयी जी झप्प से हमको तैनात कर देते हैं. जबकि हम तो नाम भऱ के ईसाई हैं, चर्च भी नहीं जाते. जॉर्ज ये भी कहते थे कि अगर मेरा नाम जॉर्ज फर्नांडिस की जगह जनार्दन फड़निस होता, तो पक्का पीएम बन जाता.
आखिरी किस्सा सुनाया टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने
बात तब की है, जब वाजपेयी अमेरिका के दौरे पर गए. उस दौरान अमेरिका में बीजेपी के एक नेता भी मौजूद थे. किसी ने वाजपेयी को बताया कि आपकी पार्टी के ये नेता जी इन दिनों अमेरिका में रह रहे हैं. नेता जी कम्युनिकेशन का एक कोर्स कर रहे थे. वो क्या था कि नेता जी को संगठन ने एक किसिम का देशनिकाला दे दिया था. सबको लगता कि ये जहां भी जाते हैं, या तो सत्ता चली जाती है, या फिर संगठन में फूट हो जाती थी.
नेताजी की बुलाहट हुई. आते ही उन्होंने वाजपेयी जी के पैर छुए. वो बोले, अरे आप यहां कैसे. नेता जी ने बताया. अभी यही हूं. कुछ नया सीख-पढ़ रहा हूं. वाजपेयी बोले, अरे नहीं. चलिए-चलिए वापस चलिए. आपकी वहां जरूरत है अभी.
नेता लौटे. फिर एक दिन एक टीवी पत्रकार की अंत्येष्टि में गए थे. पत्रकार की मौत कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया के साथ हेलिकॉप्टर क्रैश में हो गई थी. तभी वाजपेयी का फोन आया. कहां हैं. जवाब आया. श्मशान गृह में. वाजपेयी का कौतुक और चुहल बढ़ गई. वहां क्या कर रहे हैं. यहां आइए. राजनीति का नया जीवन इंतजार कर रहा है.
अटल बिहारी वाजपेयी के साथ नरेंद्र मोदी
अटल बिहारी वाजपेयी के साथ नरेंद्र मोदी

ये नेता जी थे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. जिन्हें वाजपेयी ने फोन कर गुजरात जाने को कहा था. मुख्यमंत्री का पद संभालने को कहा था.
सरदेसाई ने हमेशा की तरह चुहल भरे अंदाज में टीप जोड़ी. कि कहा जा सकता है कि अगर वाजपेयी वहां अमरीका में नेता जी को वापस न बुलाते, तो आज शायद वह पीएम न होते. न्यूयॉर्क के मेयर भले ही बन जाते.
ये थे अटल बिहारी के चंद किस्से. विजय त्रिवेदी की किताब के बहाने. जल्द ही आपको किताब के कुछ हिस्से भी पढ़वाएंगे. तब तक के लिए राम राम.


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