“सच्चा लोकतंत्र केंद्र में बैठकर राज्य चलाने वाला नहीं होता, बल्कि यह तो गांव के प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग से चलता है.”इस भावना को समझते हुए देश को कई इकाइयों में बांटा गया. सबसे पहले प्रदेश, उसके अंदर जिले, जिले में ब्लॉक, ब्लॉक के भीतर ग्राम पंचायतें और ग्राम पंचायतों में गांव या ग्राम सभा.
मतलब यह कि प्रशासनिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए जिलों को खंडों में बांटा गया. यह खंड ही ब्लॉक कहलाए. एक ब्लॉक कई गांवों से मिलकर बना होता है. इनकी संख्या जिले के साइज के हिसाब से घटती बढ़ती रहती है. मिसाल के तौर पर लखनऊ को ले लेते हैं. इस जिले में 8 ब्लॉक हैं- माल, महिलाबाद, चिनहट, बख्शी का तालाब, काकोरी, गोसाईंगंज, सरोजनीनगर और मोहनलाल गंज. अमूमन हर ब्लॉक में 50 से 70 गांव आते हैं. ब्लॉक पर एक ऑफिस होता है जहां पर बैठक आदि का आयोजन किया जाता है.
ब्लॉक लेवल पर सबसे बड़ा सरकारी अधिकारी ब्लॉक डिवेलपमेंट ऑफिसर या BDO होता है. वह राज्य प्रशासनिक सेवा का अफसर होता है. वहीं, ब्लॉक लेवल पर चुने हुए प्रतिनिधि के तौर पर सबसे बड़ा पद होता है ब्लॉक प्रमुख का. इलेक्शन कैसे होता है? ब्लॉक प्रमुख को आम जनता डायरेक्ट नहीं चुनती. उसे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि चुनते हैं. ये प्रतिनिधि होते हैं क्षेत्र पंचायत सदस्य. यूपी में फिलहाल पंचायती चुनाव प्रक्रिया कुछ ऐसे संपन्न हो रही है,
# 2 मई, 2021 को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणाम की घोषणा के बाद पहले पंचायतों के गठन का काम किया गया. गांव के स्तर पर प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य चुने गए. # उसके बाद जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई. इसमें जिला पंचायत सदस्य वोट डालते हैं. 3 जुलाई 2021 को जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया भी पूरी हो गई.उत्तर प्रदेश में क्षेत्र पंचायत सदस्यों यानी बीडीसी के 75,255 पद हैं. यही बीडीसी यूपी के 826 ब्लॉक प्रमुख पदों के लिए वोट डालते हैं. ब्लॉक प्रमुख करते क्या हैं? ब्लॉक प्रमुख का मुख्य काम पंचायत समिति की बैठक का आयोजन, अध्यक्षता तथा संचालन करना होता है. केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से पंचायती राज्य व्यवस्था के बजट में पैसा आता है. एक अनुमान के मुताबिक, ब्लॉक प्रमुख और क्षेत्र पंचायत मिलकर हर साल 5 करोड़ रुपये की धनराशि बजट के रूप में खर्च करते हैं. यह खर्चा किस तरह किया जाएगा, इसका एजेंडा ब्लॉक प्रमुख, क्षेत्र पंचायत के सदस्य और ग्राम प्रधान मिलकर तैयार करते हैं. ब्लॉक प्रमुख रहे रवि दीक्षित ने लल्लनटॉप को बताया,
# अब ब्लॉक प्रमुख के पदों पर चुनाव कराने की तारीख आ गई है. 11 जुलाई तक यह प्रक्रिया भी पूरी कर ली जाएगी. # ब्लॉक प्रमुख का इलेक्शन लड़ने की पहली शर्त यह होती है कि उसे क्षेत्र पंचायत का सदस्य या बीडीसी होना जरूरी है. # ब्लॉक प्रमुख के इलेक्शन में क्षेत्र पंचायत सदस्य ही वोट डालते हैं. # इसमें राजनीतिक दल भले ही सीधे प्रत्याशी को टिकट नहीं देते, लेकिन समर्थन से प्रत्याशी खड़े करते हैं. # ब्लॉक प्रमुख का कार्यकाल 5 साल का होता है.
"हमारा काम मूल रूप से सरकारी योजनाओं के तहत आए विकास के कार्यक्रमों को अपने क्षेत्र में लागू कराने का है. ब्लॉक प्रमुख का काम गांवों के अंदर और बाहर के विकास का होता है. चाहे फिर सड़क हो या पानी की समस्या का निराकरण. हम क्षेत्र पंचायत के सदस्यों और ग्राम प्रधानों के साथ बैठ कर योजनाओं पर चर्चा करते हैं. जिस योजना पर सहमति बनती है उसे आगे प्रशासन तक पहुंचाया जाता है. हम अपनी पास की हुई योजनाएं बीडीओ के सामने रखते हैं. वह बजट के हिसाब से धन उपलब्ध कराते हैं."हालांकि रवि दीक्षित का कहना है कि पंचायत राज में ब्लॉक प्रमुख का पद सीधे चुनाव से भरा जाना चाहिए. उनका दावा है कि सीधे जनता से चुन कर ना आने की वजह से इलेक्शन में काफी भ्रष्टाचार होता है. लोग अपने खिलाफ प्रत्याशी ही नहीं खड़े होने देते. इसके अलावा क्षेत्र पंचायत के सदस्यों का वोट भी खरीद लिया जाता है.

विकास जुड़े काम की प्लानिंग में ब्लॉक प्रमुख की काफी भागीदारी होती है. (फाइल फोटो-PTI)
क्या ब्लॉक प्रमुख को कुछ मानदेय भी मिलता है? ब्लॉक प्रमुख को हर महीने 7 हजार रुपये मानदेय के तौर पर मिलता है. इसके अलावा कुछ भत्ते भी मिलते हैं. क्या ब्लॉक प्रमुख वक्त से पहले हटाया जा सकता है? ब्लॉक प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर ऐसा किया जा सकता है. चुनाव में चुने जाने के ढाई साल बाद ब्लॉक प्रमुख को साधारण बहुमत से हटाया जा सकता है. मतलब अगर 50 सदस्यों की क्षेत्र पंचायत में 26 सदस्य ब्लॉक प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर देते हैं तो अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार माना जाएगा. इसके बाद ब्लॉक प्रमुख का चुनाव फिर से कराया जाएगा.