तारीख़- 07 जनवरी.
ये तारीख़ एक अजूबी इमारत से जुड़ी है. मध्यकाल के सात आश्चर्यों में से एक. आज के दिन इसपर ताला लगा दिया गया था. 800 सालों के इतिहास में पहली बार. लाखों पर्यटकों को लुभाने वाली इमारत एक दिन ‘खतरनाक’ घोषित कर दी गई. ये नौबत आई क्यों? ऐलान के बाद क्या हुआ? और, इस इमारत का तिया-पांचा क्या है? विस्तार से बताते हैं.अगर आपने बचपन में जनरल नॉलेज पढ़ा होगा, तो सात अजूबों का ज्ञान ज़रूर हासिल किया होगा. इसमें एक नाम आता है, पीसा की झुकी हुई मीनार का. ये मीनार झुकी क्यों है और इसे अजूबा क्यों कहा जाता है? ये जानने से पहले बुनियाद की बात. 12वीं सदी का पीसा शहर. वर्तमान में पीसा इटली के उत्तर में है. जिस समय की बात हो रही है, उस वक़्त इटली अलग-अलग नगर-राज्यों में बंटा हुआ था. उनकी अपनी आइडेंडिटी थी.
पीसा रईसों का नगर था. यहां अच्छे नाविकों की बहुतायत थी. यहां के लोग यूरोप और अफ़्रीका के कई देशों के साथ व्यापार करते थे. अच्छा मुनाफ़ा कमाते थे. लेकिन पीसा इस रेस में अकेला नहीं था. एक पड़ोसी नगर था, फ्लोरेंस. वहां भी अमीरों की कोई कमी नहीं थी. दोनों शहर अपने आपको श्रेष्ठ मानते थे.

इस मीनार का निर्माण 1173 के साल में शुरू हुआ था. पूरा होने में 199 साल लग गए.
ऐसे में शुरू हुई ख़ुद को श्रेष्ठ साबित करने का संघर्ष. दोनों नगरों के बीच युद्ध भी चला. उस दौर में एक और तरीका था, जिससे नगर अपनी ताक़त का प्रदर्शन करते थे. टॉवर के निर्माण से. जिसका टॉवर जितना विशाल और भव्य होता, उस नगर को उतना ही साधन-संपन्न और ताक़तवर माना जाता था. इसी परंपरा का पालन पीसा के लोगों ने भी किया. सन 1173 में पीसा के कैथेड्रल के बेल टॉवर की बुनियाद रखी गई. ‘स्क्वायर ऑफ़ मिरैकल्स’ की ज़मीन पर. बतौर ब्लप्रिंट, टॉवर गोल बनना था. मंजिलों की तय संख्या सात थी. और, सबसे ऊपरी मंज़िम पर सात विशाल घंटियां.
इसके अलावा, दीवार की सतहों पर चुनिंदा कलाकृतियां भी बननी थीं. इस मीनार का डिज़ाइन तैयार किया था मशहूर वास्तुकार बोनानो पिसानो ने. हालांकि, इस पर संदेह है. कुछ विद्वानों का दावा है कि इसका खाका दियोतीसाल्वी नामक आर्किटेक्ट ने खींचा था. मीनार का काम जोरों से शुरू हुआ. सन 1178 तक तीन मंजिल बनकर तैयार हो चुकीं थी. लेकिन ये दिखने में सीधी नहीं लग रही थी. दिनोंदिन ये एक तरफ़ झुकती जा रही थी. ये अनचाही समस्या थी. इसकी तरफ लोगों का ध्यान नहीं गया था. आगे जांच-पड़ताल की गई. पता चला कि मीनार के नीचे की ज़मीन दलदली है. नींव भी 3 मीटर ही खोदी गई थी.
तय था कि मीनार और भार झेल नहीं पाएगी. इसलिए, निर्माण-कार्य को कुछ समय के लिए रोक दिया गया. इस उम्मीद में कि नीचे की ज़मीन ख़ुद-ब-ख़ुद सेटल हो जाएगी. और, मीनार की पकड़ ठोस हो जाएगी. उसी समय पीसा का पड़ोसी नगरों से युद्ध शुरू हो गया. इस आपाधापी में मीनार बनाने का काम पीछे छूट गया.

इस मीनार ने इटली का कल और आज देखा है.
जब दोबारा लोगों का ध्यान गया, सौ बरस बीतने वाले थे. 1272 के साल में दूसरी बार मीनार पर काम शुरू हुआ. जियोमानी डि सिमोने के नेतृत्व में. उन्होंने झुकाव को ठीक करने की तरक़ीब निकाली. ऊपर के निर्माण के लिए एक्सपेरिमेंट किया गया. ऊपर की मंजिलों में एक तरफ़ की दीवार को दूसरी तरफ से छोटा रखा गया. ताकि भार बराबर और मीनार सीधी हो जाए.
लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. इस बार मीनार दूसरी दिशा में झुक गई. एक बार फिर काम रुका. लड़ाईयां हुई. नए एक्सपेरिमेंट हुए. इन अड़चनों के साथ सन 1372 में पीसा की मीनार बनकर तैयार हो गई. 03 डिग्री के झुकाव के साथ. और, इसका नाम पड़ गया, ‘पीसा की झुकी हुई मीनार’.
मीनार का झुकना आने वाले समय में भी जारी रहा. हमेशा इसके गिरने का डर बना रहा. जिस जगह पर मीनार बनी है, वहां तेज़ तीव्रता वाले भूकंपों का खतरा बना रहता है. लेकिन, सब आशंकाएं धूमिल होती रहीं. मीनार अपनी जगह पर कायम रही. साथ में ये पहेली भी.
समय-समय पर इसको सुलझाने की कोशिश होती रही. कुछ तो वैज्ञानिकता से सोच रहे थे. जबकि कुछ की आंखों पर अंध-राष्ट्रवाद की पट्टी बंधी थी. 1920 के दशक में इटली में बेनिटो मुसोलिनी के फासीवाद का जोर चला. उसे लगा, झुकी हुई मीनार इटली की छवि खराब करती है. मुसोलिनी ने मीनार को सीधा करने का आदेश दिया. उसने 200 टन कंक्रीट मीनार की नींव में डलवा दी. इसका नतीजा उल्टा निकला. मीनार और झुक गई. झुकाव की रफ़्तार भी अचानक तेज़ हो गई.
1989 आते-आते मीनार 5.5 डिग्री तक झुक चुकी थी. बुनियाद और टॉप में 5.5 मीटर का अंतर हो गया था. तब तक मीनार को यूनेस्को ने ‘वर्ल्ड हेरिटेज साइट’ घोषित कर दिया था. मीनार की पूरी बनावट आश्चर्य का केंद्र थी. पूरी दुनिया से लोग इसके दीदार को पहुंचते थे. ऐसे में किसी बड़ी दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता था.

रेनोवेशन के दौरान इसे मज़बूत चेन से बांधकर गिरने से रोका गया था.
आखिरकार, इटली सरकार ने तय किया कि इसे कायम रखने के लिए बंद किया जाना ज़रूरी है. फिर आई तारीख़ 7 जनवरी, 1990 की. 800 सालों के इतिहास में पहली बार मीनार को बंद कर दिया गया. लोगों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई. फिर शुरू हुआ इसको सुरक्षित बनाने का मैराथन प्रयास. जाने-माने इंजीनियर राॅबर्टो सेला के नेतृत्व में एक्सपर्ट्स की टीम जुटी. उन्हें मीनार को सीधा करना था. लेकिन पूरा नहीं. क्योंकि यही झुकाव इसे बाकियों से अलग बनाता है.
इस मिशन में जो सबसे काम की बात पता चली, वो थी मीनार के आस-पास की मुलायम मिट्टी. एक्सपर्ट्स के मुताबिक,
मीनार की उंचाई, इसकी सख्त बनावट और सतह की मुलायम मिट्टी. इन तीनों के मेल के कारण ही मीनार भूकंप के झटके को आसानी से सह लेती है और इसे कोई नुकसान नहीं होता.तीन सालों तक रिसर्च चली. 1993 में रिसर्च से उपजे निष्कर्षों के आधार पर काम शुरू हुआ. सबसे पहले मीनार के नीचे से मिट्टी निकाली गई. लगभग 70 टन. फिर मीनार का भार कम किया गया. ऊपरी मंजिल पर लगे वजनी घंटे हटाए गए. 2001 तक ये मीनार मुसोलिनी से पहले वाली स्थिति में पहुंच गई. 15 दिसंबर, 2001 को इसे वापस पर्यटकों के लिए खोल दिया गया.