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शिवाजी की वो जीत, जब सुरक्षा में लगे घड़ियाल काम ना आए

वेल्लोर क़िले की कहानी, जिसे जीतकर छत्रपति शिवाजी ने दक्षिण दिग्विजय की नींव रखी.

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शिवाजी के दरबार का दृश्य (तस्वीर: एम॰वी॰ धुरंधर)
आज है 22 जुलाई. और इस तारीख़ का संबंध है दक्षिण भारत के एक किले की कहानी से, जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने आज ही के दिन जीता था.
शुरू करते हैं 1634 से. उस दौर में बीजापुर में आदिल शाह का शासन था. आदिल शाह कमजोर पड़ चुका था और इस कारण बीजापुर में अराजकता फैल चुकी थी. उसकी कमजोरी का फ़ायदा उठाकर सामंतों ने बीजापुर के अधिकतर किलों पर अधिकार जमा लिया था. शासक को कमजोर पड़ता देख शिवाजी ने मराठाओं को संगठित किया. और बीजापुर के दुर्गों को जीतने की योजना बनाई. रोहिदेश्वर, तोरणा, राजगढ़, कोंडना और पुरंदर के क़िलों को जीतकर उन्होंने बीजापुर के ताकतवर हिस्सों पर क़ब्ज़ा जमा लिया.
इस दौरान दिल्ली में शाहजहाँ का शासन था. 1636 में शहज़ादा औरंगज़ेब सूबेदार नियुक्त हुआ. और सूबेदार बनने के बाद सबसे पहले उसने बीजापुर पर हमला किया. इस लड़ाई में जीत के बावजूद वो खीजा हुआ था. मुग़लिया सल्तनत में आपसी विद्रोह चल रहा था. जिसके चलते औरंगज़ेब ने आगरा पर चढ़ाई कर दी. और सल्तनत पर क़ब्ज़ा जमा लिया.
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बीजापुर का सुल्तान, आदिल शाह (तस्वीर: फ़ाइल)


शाहजहाँ को बेदखल कर औरंगज़ेब ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजूबत करनी शुरू की. उसका पूरा ध्यान उत्तर भारत की रियासतों पर था. इस कारण मुग़लों के हाथ से दक्षिण भारत निकलता जा रहा था. इस स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए शिवाजी ने दक्षिण कोंकण पर हमला कर उसे क़ब्ज़े में ले लिया. कोंकण, भारत के पश्चिमी तट का पर्वतीय हिस्सा है. आज के हिसाब से देखें तो कोंकण में महाराष्ट्र और गोवा के तटीय जिले आते हैं.
औरंगज़ेब जब रियासत पर अपनी पकड़ बना ली तो उसका ध्यान दक्षिण की तरफ़ गया. तब तक शिवाजी 40 दुर्गों पर अधिकार जमा चुके थे. शिवाजी की बढ़ती ताकत को देखते हुए औरंगजेब ने जय सिंह और दिलीप खान को शिवाजी को रोकने के लिए भेजा.
मुग़ल सैनिक पूरे दक्षिण भारत में फैले हुए थे. पर शिवाजी की युद्ध नीति कमाल की थी. पहाड़ी किले उनकी युद्ध रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे. हर किले के अंदर एक ही रैंक वाले तीन अधिकारी तैनात किए जाते थे. अगर कोई भी दुश्मन से मिल जाता तो भी किले पर विजय पाना आसान नहीं था. वे गुरिल्ला तकनीक से छोटे-छोटे गुटों में दुश्मन पर हमला करते. हमला करते ही शिवाजी अपनी सेना सहित जल्दी से ग़ायब हो जाते. और अपने पहाड़ी दुर्गों में शरण ले लेते. इसी कारण औरंगज़ेब उन्हें पहाड़ी चूहा कहकर बुलाता था.
इस दौर में शिवाजी और मुग़ल सेना के बीच कई युद्ध हुए, जिसमें मुग़लों को भारी नुकसान झेलना पड़ा. लेकिन फिर भी वो शक्ति में शिवाजी की सेना से ताकतवर थे. इस कारण 1668 में शिवाजी को औरंगज़ेब के साथ समझौता करना पड़ा. समझौते के अनुसार केवल 12 किलों पर उनका अधिकार बचा. 24 किले उन्हें औरंगज़ेब को देने पड़े. जिन्हें बाद में उन्होंने वापस जीत लिया.
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औरंगज़ेब के दरबार में शिवाजी (तस्वीर: एम॰वी॰ धुरंधर)


अपने अभियान के दौरान उन्होंने बीजापुर और मध्य भारत के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया था. पर आधिकारिक तौर पर अभी भी वह राजा नहीं बने थे. 6 जून 1674 को रायगढ़ किले में उनका राज्याभिषेक हुआ. उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई. दक्षिण दिग्विजय मध्य भारत में शिवाजी का राज्य सशक्त लेकिन छोटा था. छत्रपति को लगा कि इस तरह मुग़लों का सामना करना कठिन होगा. इसलिए उन्होंने अपने साम्राज्य को विस्तार देने की सोची. उनकी योजना थी कि वो अपने अभियान को दक्षिण की तरफ़ ले जाएं. इस तरह वो दक्षिण और उत्तर के बीच की सीमा को रक्षा कवच की तरह उपयोग कर सकते थे. योजना थी कि मुग़लों पर छोटे-छोटे आक्रमण किए जाएं. मुग़ल सेना आक्रमण करे तो वो दक्षिण की तरफ़ पीछे हट सकते थे. मुग़लों की विशाल सेना अपने संसाधन बहुत आगे नहीं ले जा सकती थी. इस तरह लड़ाई को लम्बा खींचते हुए सैनिक थक जाते. और ऐसे में उन पर हमला कर विजय पाई जा सकती थी.
इसी योजना के तहत अपने राज्याभिषेक के बाद छत्रपति दक्षिण की ओर बढ़ गए. इस अभियान को नाम दिया गया ‘दक्षिण दिग्विजय’. इस अभियान में 50,000 सैनिक भी उनके साथ थे. जिनमें 30,000 घुड़सवार और 20,000 पैदल शामिल थे. दक्षिण में आगे बढ़ना आसान हो इसलिए उन्होंने औरंगाबाद के सूबेदार और गोलकोंडा के क़ुतुबशाह के साथ संधि कर ली.
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जिंजी का किला (तस्वीर: getty)


दक्षिण दिग्विजय की सफलता के लिए दो किलों को जीता जाना बहुत ज़रूरी था. वेल्लोर और जिंजी का क़िला. शिवाजी अपने सेना लेकर जिंजी किले पर पहुंचे. किला मोहम्मद नासिरखान के क़ब्ज़े में था. जिंजी उस समय के सबसे अभेद्य किलों में से एक माना जाता था. उन्होंने चकरावती नदी के किनारे अपना कैम्प बनाया. और किले पर हमला कर दिया. जिंजी को जीतने के बाद अब बारी वेल्लोर किले की थी. आज के हिसाब से वेल्लोर चेन्नई के दक्षिण–पश्चिम में पलार नदी के किनारे पर स्थित है. इस जगह का नाम तमिल शब्द ‘वेल’ यानी भाले से आया है. वेल्लोर यानी भाला रखने का स्थान. वेल्लोर विजय शिवाजी वेल्लोर पहुंचे. किले पर अब्दुल्लाह खान का क़ब्ज़ा था. छत्रपति ने देखा कि वेल्लोर किले की शुरुआत में शहर के दोनों तरफ़ पहाड़ थे. जो उस किले की रक्षा करते थे. किले के चारों तरफ गहरी खाई खुदी हुई थी. खाई में पानी भरकर उसमें घड़ियाल छोड़े हुए थे. ताकि कोई किले पर हमला ना कर सके.
किले पर चढ़ाई करना कठिन था. और शिवाजी अपने साम्राज्य से दूर थे. बड़ी क्षति होने पर भरपाई होना कठिन था. तब छत्रपति शिवाजी ने सेनापति हंसाजी मोहिते के साथ मिलकर एक योजना बनाई. उन्होंने चारों तरफ़ से किले को घेर लिया. घेराबंदी इस तरह की गई थी कि ना कोई अंदर आ सकता था और ना कोई बाहर जा सकता था. किले में राशन और बाक़ी ज़रूरी सामान जाने का भी कोई रास्ता ना था.
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वेल्लोर का किला (तस्वीर: getty)


14 महीने तक सेना किले के बाहर डेरा जमाए रही. किले के दोनों तरफ़ पहाड़ों पर दो फ़ोर्ट बनाए गए. सजरा और गोजरा. जैसे ही कोई किले से बाहर निकलता ऊपर से उस पर निशाना बनाना आसान था. किले की रक्षा में तैनात 500 में से 400 सैनिक मार दिए गए. जब भूखों मरने की नौबत आ गई तो अब्दुल्ला खान किले से बाहर आया और उसने सरेंडर कर दिया. 22 जुलाई 1678 को वेल्लोर का क़िला मराठा साम्राज्य के अधीन हो गया.
1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद ये क़िला एक बार फिर मुग़लों ने जीत लिया. 1806 में इसी किले में मशहूर वेल्लोर म्यूटिनी हुई थी, जिसे 1857 की क्रांति की पहली चिंगारी भी माना जाता है.

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