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माघ मेले में ऐसा क्या है कि करीब 5 करोड़ लोग आते हैं

पौष पूर्णिमा के साथ शुरू हो गया है 45 दिन का माघ मेला

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माघ मेले में इलाहाबाद में श्रद्दा का सैलाब
ये संगम की नगरी है इलाहाबाद. संगम यानी मिलन. यहां तीन नदियां मिलकर एक होती हैं. पहली है गंगा, दूसरी यमुना और तीसरी सरस्वती जो दिखती नहीं है. यहां नया साल जैसे ही शुरू हुआ रौनक आ गई. रौनक है माघ मेले की. संगम पर लोगों का संगम लगा हुआ है.
श्रद्धा का संगम है माघ मेला
श्रद्धा का संगम है माघ मेला

अब ये जान लीजिए कि माघ मेला होता क्या है

दरअसल 2 जनवरी को पौष पूर्णिमा थी. इस दिन से लेकर महाशिवरात्रि तक एक मेला चलता है. 45 दिन तक इलाहाबाद, हरिद्वार और उत्तरकाशी में लगने वाले मेले को माघ मेला कहा जाता है. इलाहाबाद तीर्थराज है इसीलिए यहां लगने वाले मेले का महत्व और ज्यादा हो जाता है. हर बार की तरह इस बार भी इलाहाबाद के मेले वाले इलाके में एक नया शहर बस गया है. पूरे देश से साधु महात्मा और श्रद्धालु जुट गए हैं.
लाखों लोग माघ मेले पर संगम आते हैं
लाखों लोग माघ मेले पर संगम आते हैं

कल्पवास करते हैं लोग

पूरे माघ मेले के दौरान लाखों लोग इलाहाबाद में आकर बस जाते हैं और यहां कल्पवास करते हैं. कल्पवास करने वाले भक्त इस दौरान घर-परिवार से बिल्कुल कट जाते हैं. मोह-माया से दूर होते हैं. जमीन पर सोते हैं. दो वक्त गंगा में नहाते हैं और सिर्फ एक बार खाना खाते हैं. रामायण काल में तीर्थराज प्रयाग में महर्षि भारद्वाज का आश्रम था. कहते हैं कि उस दौर में पूरे भारत देश के वो लोग जो धार्मिक गतिविधियों से जुड़े रहते थे यानी जो साधक थे वो माघ महीने में इलाहाबाद में जुटते थे. ये लोग करीब 45 दिन तक कल्पवास करते थे.
45 दिन तक चलता है कल्पवास
45 दिन तक चलता है कल्पवास

क्या है पौराणिक मान्यता

ब्रह्मा जी ने सृष्टि यानी इस संसार को बनाने के लिए सबसे पहले यज्ञ किया. इस पहले यज्ञ की शुरुआत माघ महीने में ही हुई थी. इसीलिए इस महीने गंगा किनारे के इन तीन शहरों उत्तरकाशी, हरिद्वार और इलाहाबाद में डुबकी लगाने का खास महत्व है.तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखी. तुलसीदास माघ महीने के बारे में लिखते हैं-
माघ मकर गत रवि जब होई, तीरथ-पतिहि आव सब कोई. इसका मतलब है- माघ महीने में भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. तब सभी तीर्थों के राजा इलाहाबाद में आकर रहने लगते हैं.
वो आगे लिखते हैं
ऐहि प्रकार भरि माघ नहाही, पुनि सब निज-निज आश्रम जाहीं.
यानी माघ महीने में सभी साधक और तपस्वी प्रयाग यानी इलाहाबाद में आकर अपनी साधना पूरी करते थे और फिर लौट जाते थे. ये प्राचीन प्रथा आज भी देखी जा सकती है.
हर उम्र, हर वर्ग के लोग पहुंचते हैं संगम
हर उम्र, हर वर्ग के लोग पहुंचते हैं संगम

कौन-कौन से बड़े स्नान होने हैं

माघ मेले के दौरान 6 बड़े स्नान होते हैं. स्नान यानी इन 6 दिनों में संगम तट पर डुबकी लगाने देश दुनिया से बड़ी संख्या में लोग आते हैं. #पहला 2 जनवरी मंगलवार को. पौष पूर्णिमा. #दूसरा 14 और 15 जनवरी को. इसे मकर संक्रांति कहते हैं . #तीसरा बड़ा स्नान 16 जनवरी को है. इस दिन मौनी अमावस्या है. ये माघ मेले के दौरान सबसे बड़ा दिन होता है. इस दिन संगमनगरी में इतनी भीड़ होती है कि तिल रखने की जगह भी नहीं बचती. #22 जनवरी को बसंत पंचमी और 31 जनवरी को माघ पूर्णिमा है. #13 फरवरी को महाशिवरात्रि के साथ ही माघ मेला खत्म हो जाएगा.
कड़ाके की ठंड के बीच पहुंचते हैं श्रद्दालु
कड़ाके की ठंड के बीच पहुंचते हैं श्रद्दालु

ये मेला अनंत श्रद्धा का है. कुछ वक्त तक मेले के बारे में देखा-पढ़ा जाता था तो लाखों श्रद्धालुओं के आने की बात होती थी. अब यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है. इस सास़ल करीब पांच करोड़ से श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है.
हर बारह साल बाद महाकुंभ लगता है. और हर 6 महीने में अर्धकुंभ होता है. लेकिन इस अर्धकुंभ शब्द पर हिंदू संतों को एतराज है. अब वो कह रहे हैं कि यहां अर्ध यानी आधा जैसा कुछ नहीं होता है. 6 साल में जो होता है वो कुंभ है और 12 साल में जो होता है वो महाकुंभ है. अगले साल इसी संगम नगरी पर 6 साल के बाद आने वाला कुंभ मेला लगेगा. ये रिहर्सल जैसा है उस तंत्र के लिए जिसको इससे भी बड़े मेले का इंतजाम करना है.

ये स्टोरी द लल्लनटॉप के लिए नीरज ने लिखी है.

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