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भीम की महिमा गा रही थीं ये कलाकार, पति लड़ने आया तो तानपूरे से ही पीट दिया

छत्तीसगढ़ की शान तीजन बाई का जन्मदिन है आज.

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'मुझे पहली परफॉर्मेंस के बाद एक बोरा चावल मिला था. जिसे मैंने अपनी झोपड़ी की छत बनाने के लिए बेच दिया था.'

ये शब्द हैं तीजन बाई के. तीजन का मतलब है झुनझुनी. मतलब करंट. ये नाम भिलाई शहर को सबके सामने लेकर आया था. यहां पर पांडवानी विधा में उनका करंट दौड़ता था. पांडवानी महाभारत को गा-बजाकर, नाचकर दिखाने की विधा है. कौरवों-पाण्डवों की कहानी है पांडवानी. आज तीजन बाई का जन्मदिन है.

पर पांडवानी गाने के लिए तीजन बाई को पति को तानपुरे से पीटना पड़ा था!
तीजन को पांडवानी का शौक पहले से था. पर 12 साल की उम्र में तीजन की शादी कर दी गई. इसके बाद तीजन के पांडवानी परफॉर्म करने पर लोगों की आपत्ति बढ़ने लगी. फिर भी उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी. आस-पास के लोगों ने भी उन्हें गाने के लिए बुलाना शुरू कर दिया. तीजन अपने गाने में इतना डूब जाती थीं कि उनके गायन में महाभारत के किरदार जीवंत होने लगते. उनका तानपुरा कभी भीम की गदा बन जाता, कभी अर्जुन का धनुष तो कभी द्रौपदी के केश.
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तीजन बाई का अलहदा अंदाज

पांडवानी का मंचन रात के खाने के बाद करने का प्रचलन था. तीजन पांडवानी गाने के लिए अक्सर रात में घर से भाग जाती थीं. एक बार उनके पति रात में जग गए और तीजन को घर से गायब देख आगबबूला हो गए. उधर तीजन महाभारत के भीम की महिमा पर पांडवानी गा रही थीं. वो अपने गायन में इतना मगन हो गई थीं कि उन्हें भीम साकार लगने लगे. तब उनके पति उन्हें वहां पकड़कर मारने आ गए. तीजन पर भीम का किरदार इतना भारी हो गया था कि उनको अपना तंबूरा भीम की गदा लगने लगा. उन्होंने तंबूरे को गदे की तरह अपने पति पर दे मारा. इसके बाद वो कभी वापस अपने पति के घर नहीं गईं. दोनों का तलाक हो गया.
तीजन बाई एक फंक्शन में
तीजन बाई एक फंक्शन में

नाचकर पांडवानी गाने वाली देश की पहली फीमेल हैं तीजन
तीजन 1956 में भिलाई के घनियारी गांव में पैदा हुई थीं. उनके मां-बाप चुनुकलाल और सुकमाती परधी ट्राइब के थे. इस जनजाति का मेन काम होता था चिड़िया पकड़ना, शहद बटोरना, चटाइयां बुनना और झाड़ू बुहारना. तीजन कभी स्कूल नहीं गईं. तीजन के नाना बृजलाल परधी पांडवानी गाया करते थे. वो उन्हीं को देख-सुनकर पांडवानी सीखती रहती थीं.
https://youtu.be/Gx6VMGU4JHE
वो कापालिक पांडवानी परफॉर्म करने वाली पहली औरत थीं. उससे पहले औरतें वेदमती स्टाइल में गाती थीं. कापालिक पांडवानी में कथा को अभिनय और नृत्य के जरिए दर्शाया जाता है. जबकि वेदमती में महाभारत की कथा को सिर्फ गा कर परफॉर्म किया जाता है. उस वक्त पांडवानी आमतौर पर कमजोर वर्ग के लोग ही गाते थे जिनमें से अधिकतर एकेडमिक्स से जुड़े नहीं होते थे. इसके बावजूद महाभारत की हजारों कथाएं उनको याद रहती थीं. इससे पता चलता है कि उनकी मेधा कितनी थी.
तीजन बाई के यंग एज की फोटो
तीजन बाई के यंग एज की फोटो

शून्य से शिखर तक का सफर
बाद में तीजन बाई ने पैरिस में भी परफॉर्म किया था. तीजन की सादगी ही उनकी पहचान है. वो इतनी ऊंचाइयों पर पहुंच गई हैं, लेकिन आज भी बासी रोटी के बिना उनका पेट नहीं भरता है.
उनकी तड़तड़ाती हुई आवाज, उनके एक्सप्रेशन, उनका ठेठ अंदाज, उनकी संजीदा अदायगी उनको सबसे अलग करती है. तीजन बाई ने फ्रांस, स्विटजरलैंड, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन जैसे तमाम देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया. भारत सरकार ने उन्हें 1988 में पद्मश्री और 2003 में पद्मभूषण से नवाजा.
पांडवानी का मंचन करतीं तीजन बाई
पांडवानी का मंचन करतीं तीजन बाई

श्याम बेनेगल की टीवी सीरीज 'भारत, एक खोज' में भी तीजन बाई के पांडवानी का एपिसोड आया था.
https://youtu.be/PS8lOi_wIf0


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