हिटलर इतना ताकतवर कैसे बन गया?
इस सवाल के जवाब में आप ये सूत्र दोहरा सकते हैं.
हिटलर का दरिंदा दोस्त, आग को पानी बोलता था, लोग मान लेते थे
जोसेफ गोएबल्स- ये नाम था उस शख्स का जिसने हिटलर को जर्मनी का भगवान बना दिया. झूठ को सच बनाने में उसे महारत हासिल थी.

“लोगों की दिमागी हैसियत को देखते हुए, उन्हें ये विश्वास दिलाना असंभव नहीं कि कोई स्क्वायर असल में एक सर्किल है. झूठ को बड़ा बनाओ, उसे आसान बनाओ और दोहराते रहो. अंत में लोग उस पर विश्वास कर लेंगे”
इस सूत्र को देने वाले शख्स का नाम था- पॉल जोसेफ गोएबल्स (Joseph goebbels). 21 वीं सदी के हिसाब से हिटलर के IT सेल का मुखिया. वो शख्स जिसने जर्मनी के लाखों लोगों को विश्वास दिला दिया था कि यहूदी उनके सबसे बड़े दुश्मन हैं. उन्हें गैस चैंबर में झोंक डाला जाना चाहिए. लोग उसकी बात सुनकर अपने विकलांग और बीमार रिश्तेदारों को जर्मन पुलिस के हाथों मरवाने को तैयार हो जाते थे. लेकिन खुद एक पैर से लंगड़ा के चलने वाला गोएबल्स ये सब करता कैसे था? (Nazi Germany)
पादरी बनने की चाह रखने वाला एक लड़का, नाज़ी जर्मनी का सबसे ताकतवर मंत्री कैसे बन गया? चलिए जानते हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के पहले का जर्मनी देखें तो एक सवाल मन में उठ सकता है. हिटलर (Hitler) जैसे क्रूर तानशाह का समर्थन भला कोई कैसे कर सकता है. इस सवाल का जवाब सिर्फ एक शख्स के पास था- जोसेफ गोएबल्स. क्या करता था गोएबल्स. एक बानगी देखिए,
9 नवंबर, 1938. नाज़ी जर्मनी के इतिहास में ये तारीख एक खास नाम से जानी जाती है. द नाईट ऑफ़ ब्रोकन ग्लास. वो रात जब जर्मनी की सड़कें कांच के टुकड़ों से पट गई थी. इस तारीख से पहले यहूदियों का आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार होता था. लेकिन उस रोज़ सारी हदें पार कर दी गईं. यहूदियों को घरों से निकाल कर सड़कों पर घसीटा गया. दुकानें तोड़ दी गईं. यहूदी पूजाघरों को आग लगा दी गई. हजारों मारे गए. जो बचे, कंसन्ट्रेशन कैम्प्स में डाल दिए गए. रातों-रात जर्मनी के लोगों के लिए यहूदी उनके सबसे बड़े दुश्मन बन गए. लोगों को ये विश्वास दिलाया गोएबल्स ने.

दरअसल इस घटना से कुछ रोज़ पहले पेरिस में एक नाजी अधिकारी की हत्या कर दी गई थी. करने वाला एक 17 साल का यहूदी लड़का था. गोएबल्स ने इस खबर को प्रोपेगैंडा बनाकर पूरे जर्मनी में फैलाया. आम जर्मन लोगों से कहा गया, ये देखो, ऐसे होते हैं यहूदी, ये हमें मार डालना चाहते हैं. बस, फिर क्या था. जर्मनी में यहूदियों का नरसंहार शुरू हो गया. गोएबल्स यहूदियों से नफरत करता था. लेकिन यहूदियों के माध्यम से वो एक और गोटी फिट करना चाहता था. उन दिनों हिटलर गोएबल्स से नाराज चल रहा था. और गोएबल्स की कोशिश थी, किसी भी तरह दुबारा हिटलर की गुड बुक्स में आना. हिटलर गोएबल्स से नाराज क्यों था, ये जानने से पहले जानते हैं कि वो हिटलर के संपर्क में आया कैसे.
एक छोटे से शहर और मिडिल क्लास फैमिली में पैदा हुआ जोसेफ गोएबल्स पैदाइश से विकलांग था. काफी इलाज के बाद भी उसे पैर में लोहे की पट्टी लगाकर चलना पड़ता था. इसी कारण उसे फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में भी हिस्सा नहीं लेने दिया गया. गोएबल्स ने पढ़ाई में मन लगाया और साल 1921 में पीएचडी की डिग्री हासिल की. उसने किताबें लिखना शुरू किया. लेकिन इनकी भी कुछ खास बिक्री न हुई. अपने फेलियर का इल्जाम उसने जर्मनी के हालात पर मढ़ा. पहले विश्व युद्ध में हार के बाद जर्मनी की हालत ख़राब थी. नाज़ी विचारधरा तेज़ी से उभर रही थी. जिनका लीडर था, अडोल्फ हिटलर. हिटलर से प्रभावित होकर साल 1924 में गोएबल्स ने नाज़ी पार्टी जॉइन की. जल्द ही वो पार्टी में बड़ी हैसियत रखने लगा. हिटलर के सत्ता में आते ही गोएबल्स की किस्मत भी चमकी.

हिटलर ने उसे अपना प्रोपेगैंडा मिनिस्टर बनाया. शुरुआत से ही वो खुद को हिटलर का भक्त मानता था. भक्ति का प्रमाण दिखाने के लिए उसने प्रेस में हिटलर के खिलाफ आने वाली सारी ख़बरें बैन कर दीं. और नाजी विचारधारा का विरोध करने वाली सारे किताबें जला डालीं.
हालांकि उसकी नजर प्रेस से ज्यादा ऑडियो-वीडियो मीडियम पर थी.
हिटलर की रैलियों में दिखने वाली शान-औ-शौकत गोएबल्स के दिमाग का आईडिया था. हिटलर की छपने वाली हर तस्वीर उसकी नजर से होकर जाती थी. हिटलर की आवाज लोगों तक पहुंचाने के लिए उसने जर्मन इंजीनियरों से एक सस्ता रेडियो बनवाया. जिन्हें पूरे जर्मनी में बेचा गया. चौराहों पर स्पीकर लगाए गए. जिनसे हिटलर के भाषण सीधे लोगों तक पहुंचते थे.
प्रोपेगैंडा फ़िल्मेंगोएबल्स की अगली नज़र सिनेमा पर पड़ी. उसने अमेरिकी सिनेमा पर बैन लगाया और जर्मन फिल्म इंडस्ट्री को अपने कब्ज़े में ले लिया. और प्रोपेगैंडा फिल्म्स बनवाना शुरू किया. इन फिल्मों के जरिए नाज़ी प्रोपेगैंडा और फेक न्यूज़ फैलाए जाते थे. फिल्म की कहानी, एक्टर सब गोएबल्स के हिसाब से तय होते थे. ये प्रोपेगैंडा कैसे काम करता था. उदाहरण से समझिए.
साल 1940 के आसपास नाजी सरकार ने एक नया कार्यक्रम शुरू किया. जिसके अनुसार बीमार और विकलांग लोग जर्मनी पर बोझ थे. नाजियों के अनुसार बेहतर था कि उन्हें मौत देकर उन पर दया की जाए. ये बात लोगों को समझाना आसान नहीं था. आखिर क्यों ही कोई अपने सगे संबंधियों को मारने के लिए तैयार होता?
इसलिए कार्यक्रम के पक्ष में माहौल बनाने के लिए गोएबल्स ने प्रोपेगैंडा का सहारा लिया. उसने एक फिल्म बनवाई. नाम था “I Accuse”. फिल्म में एक ऐसे डॉक्टर की कहानी थी जो लाइलाज बीमारी से पीड़ित अपनी पत्नी को मार डालता है. इस मामले में उस पर एक केस चलता है. केस में मुख्य बहस यही थी कि डॉक्टर ने जो किया, क्या वो मर्डर था या दया.

एक दूसरा उदाहरण देखिए.
शुरुआत में हमने आपको नाईट ऑफ़ द ब्रोकन ग्लास के बारे में बताया था. इस घटना के कुछ महीने बाद गोएबल्स पोलैंड गया. उसके साथ एक फिल्म क्रू था. यहां गोएबल्स ने यहूदियों के ऊपर एक डाक्यूमेंट्री बनाई. जिसमें जर्जर हालत और गन्दगी में रह रहे यहूदियों को दिखाया गया था. यहूदी मजबूर थे. लेकिन डाक्यूमेंट्री में उन्हें ऐसे दिखाया गया था, मानो वो जानबूझकर गन्दगी में रह रहे हों. इस डॉक्यूमेंट्री को नाम दिया गया था - द इटरनल ज्यू. यानी एक यहूदी हमेशा ऐसा ही रहेगा. गोएबल्स के अनुसार, जानवरों जैसा.
हिटलर और गोएबल्स की दोस्ती की वजह थी, यहूदियों के प्रति उनकी साझा नफरत. लेकिन फिर एक बार ऐसा हुआ कि नफरत से पनपी ये दोस्ती, प्यार के चक्कर में लगभग दुश्मनी में बदल गई.
हिटलर बना कबाब में हड्डीदरअसल गोएबल्स की एक पत्नी हुआ करती थी. जो हिटलर की भी अच्छी दोस्त थी. शादी से गोएबल्स को 6 बच्चे हुए थे. लेकिन फिर कुछ साल बाद उसका मन इस शादी से ऊबने लगा. एक रोज़ उसे एक दूसरी औरत मिली. लीडा बारोवा नाम की ये महिला शादीशुदा थी. और फिल्मों में एक्टिंग करती थी. उसे खुद गोएबल्स में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन साथ ही ये भी पता था कि अगर वो गोएबल्स को इंकार करेगी तो करियर बर्बाद हो जाएगा. उसने गोएबल्स का प्रपोजल स्वीकार कर लिया.
गोएबल्स उससे शादी करने के लिए अपनी पत्नी को तलाक देने को तैयार था. लेकिन इस काम में एक अड़चन थी. नाजी जर्मनी में परिवार एक पवित्र संस्था थी. ऐसे में गोएबल्स के तलाक की खबर हंगामा मचा सकती थी. तलाक के लिए हिटलर की मंजूरी जरूरी थी.
गोएबल्स हिटलर से मिला. उससे तलाक की परमिशन मांगी. लीडा बारोवा के प्यार में वो इस कदर डूबा हुआ था कि अपना पद छोड़ने को भी तैयार था. उसने हिटलर से कहा कि वो जापान जाकर बस जाएगा. लेकिन हिटलर अपने सबसे ताकतवर हथियार को जाने देने के मूड में नहीं था. उसने लीडा बारोवा को जर्मनी से बाहर भेज दिया और गोएबल्स से अपना रिश्ता निभाने को कहा. इस वाकये से हिटलर और गोएबल्स के रिश्तों में तनाव आ गया. गोएबल्स को अब न हिटलर के घर आने का न्योता मिलता था. न ही दोनों में कोई बात होती थी. सरकार में गोएबल्स की हैसियत भी कम होने लगी थी. जिसका फायदा उठाकर उसके विरोधी हिटलर के करीबी बनने लगे थे. ऐसे में जल्द ही गोएबल्स को अहसास हुआ कि दोबारा हिटलर की कृपा पाने के लिए उसे कुछ बड़ा करना होगा.

यहां से हमें गोएबल्स का सबसे क्रूर चेहरा नज़र आता है. साल 1938 में नाईट ऑफ द ब्रोकन ग्लास के दौरान उसने खुद भीड़ को लीड किया. यहूदियों के खिलाफ जमकर भाषण दिए और एक के बाद एक कई प्रोपेगैंडा फ़िल्में बनाई. इनमें से एक फिल्म ऐसी भी थी जिसमें दिखाया गया कि यहूदियों के साथ बहुत अच्छा बर्ताव हो रहा है. हालंकि फिल्म में दिखाए गए यहूदियों को गैस चैंबर भेज दिया गया था.
रस्सी जल गई लेकिन बल न गया1941 आते-आते गोएबल्स इतना ताकतवर हो चुका था कि उसकी बात हिटलर की बात समझी जाने लगी थी. वो जो भी बोलता वो आखिरी बयान होता. यहां तक कि 1941 में सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध की घोषणा भी उसने ही की थी. हिटलर चाहता था कि उसके बाद नाज़ी जर्मनी की कमान गोएबल्स ही संभाले. लेकिन ये सिर्फ तब संभव था जब जर्मनी युद्ध में जीतता. अमेरिका के युद्ध में उतरने के बाद जर्मनी की हालत लगातार कमजोर होती गई. वो हार के मुहाने पर आकर खड़ा हो गया. गोएबल्स इसके बाद भी मुगालते में था. उसने बच्चों और बूढ़ों से हथियार उठाने की अपील की. उसकी हिटलर में इतनी आस्था थी कि कि अंत आते-आते वो अपने ही झूठों पर भरोसा करने लगा था.
एक किस्सा यूं है कि एक बार गोएबल्स के घर पर बम से हमला हुआ. उस वक्त वो मीटिंग ले रहा था. जैसे ही धमाका हुआ, उसके साथी जान बचाने के लिए झुके. लेकिन गोएबल्स यूं ही बैठा रहा. उसने अपनी मेज़ पर फैले कांच के टुकड़े हटाए. और अपने काम में लग गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो.
गोएबल्स का ये फितूर हालांकि सिर्फ तब तक बरक़रार रहा, जब तक हिटलर जिन्दा था. 30 अप्रैल 1945 के रोज़ हिटलर की मौत हुई. इसके अगले ही रोज़ गोएबल्स ने अपने बच्चों और पत्नी को ज़हर देकर उनकी जान ले ली. और खुद भी मर गया. उसने आदेश दिया कि मौत के बाद उसकी लाश को जला दिया जाए. लेकिन पेट्रोल की कमी के चलते ये भी न हो पाया. सोवियत सैनिकों को जब उसकी लाश मिली. वो आधी जली हुई थी.
गोएबल्स मर गया लेकिन उसकी ईजाद की हुई झूठ की फैक्ट्री जिन्दा रही. प्रोपेगेंडा गोएबल्स से पहले नेगेटिव नहीं समझा जाता था. इसका मतलब महज़ राजनैतिक प्रचार से था. लेकिन गोएबल्स के बाद इस शब्द का मतलब झूठा प्रचार हो गया. 21 वीं सदी में IT फेक न्यूज़ जैसी चीजों को हम गोएबल्स का अवतार मान सकते हैं.
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