अमृतसर से दक्षिण दिशा की तरफ निकलिए. NH 354 पर 58 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा गांव मिलेगा. नाम है असल उत्तर. जिसका नाम पहले असल उताड़ हुआ करता था. लेकिन फिर 1965 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को इसी जगह पर वो जवाब दिया कि नाम पड़ गया, ‘असल उत्तर’.
कैसे ‘असल उत्तर’ में तैयार हुई पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह?
1965 की जंग के दौरान ८ से १० दिसंबर के बीच असल उत्तर की लड़ाई हुई. जो पाकिस्तान के पैटन टैंकों के लिए कब्रगाह साबित हुई. परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद ने इसी जंग के दौरान अकेले ७ टैंकों को नष्ट कर डाला था.

असल उत्तर की लड़ाई वर्ल्ड वॉर 2 के बाद टैंकों के बीच हुई सबसे बड़ी लड़ाई थी. यहीं से कुछ दूर स्मारक बना है इस लड़ाई के सबसे बड़े हीरो का, अब्दुल हमीद जिसने अकेले ही कई पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नेस्तोनाबूत कर डाला था. हमीद को मरणो प्रांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. लेकिन जिस दिन उनका नाम परमवीर चक्र की सिफारिश के लिए भेजा गया, तब तक वो जिन्दा थे. पहले समझते है कि 1965 की जंग असल उत्तर तक पहुंची कैसे?
कश्मीर में पाकिस्तान ने मुंह की खाई5 अगस्त, 1965 को क़रीब 25000 पाकिस्तानी सैनिक कश्मीरियों की आम वेशभूषा में एलओसी पार कर कश्मीर में घुस आये. जनरल याह्या खान और टिक्का खान का भी मानना था कि कश्मीरी अवाम भारत से आजाद होकर पाकिस्तान में विलय करना चाहती है. और पाकिस्तानी सैनिक जब घुसपैठ करेंगे तो कश्मीरी अवाम घुसपैठियों का साथ देगी लेकिन हुआ उलटा. पाकिस्तान के घुसपैठियों को कश्मीरियों ने पहचान लिया और उनका साथ देने की बजाय घुसपैठ की सूचना भारतीय सैनिकों को दे दी. हाजीपीर, पीओके का वो इलाका, जहां से पाकिस्तानी लगातार घुसपैठ कर रहे थे, जैसे ही भारतीय सेना के कब्जे में आया भारतीयों का पूरे युद्ध पर पलड़ा भारी हो गया था.

अब पाकिस्तानी आगे घुसपैठ नहीं कर पा रहे थे. बल्कि हिंदुस्तान अब लाहौर एयरपोर्ट पर भी हमले की स्थिति में आ गया था. पाकिस्तान हार की कगार पर था. लेकिन पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी और नेता नहीं चाहते कि उनकी अवाम की नज़र में उनकी भद्द पिटे. इसी कवायद में एक और आपरेशन शुरू किया गया.
POK में अपनी फौज को राहत देने के लिए पाकिस्तान ने एक नया मोर्चा खोलने की सोची. और इसी के साथ शुरुआत हुई ऑपेरशन ‘ग्रैंड स्लैम’ की. पंजाब के खेमकरण सेक्टर में पाकिस्तान की तरफ़ से हमला कर दिया गया. ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम का मकसद था चेनाब पर स्तिथ अखनूर ब्रिज को कब्जे में ले लेना. ऐसा करते ही पाकिस्तानी फौज जम्मू श्रीनगर हाईवे पर कब्ज़ा कर पूरे कश्मीर और लद्दाख को भारत से काट सकती थी.
जब अखनूर पर हमला हुआ, भारत के लिए ये एक चौंकाने वाली बात थी. लेकिन यहां पर पाकिस्तान ने एक बड़ी गलती की और बीच जंग में अपना कमांडर बदल दिया. अब कमान जनरल याहया ख़ान के हाथ में थी. इस अदला बदली में भारत को 24 घंटे की मोहलत मिली जो जंग के लिए निर्णायक साबित हुई.
7 सितम्बर तक खेम करण में पकिस्तानी एडवांस को रोकने के लिए आर्मी ने ‘असल उत्तर’ में डिफ़ेन्सिव पोजीशन जमा ली थी. पाकिस्तान के 100 पैटन टैंकों ने पहला धावा बोला. इन्हें रोकने के लिए सबसे आगे थे 1/9 गोरखा राइफल्स के जवान. लेकिन पैटन टैंकों को रोकने के लिए हल्की आर्टिलरी नाकाफी थी. 62 माउंटेन ब्रिगेड की बटालियन ने भी टैंकों को रोकने की कोशिश की. माउंटेन ब्रिगेड ऊंचे इलाकों में लड़ाई के लिए ट्रेंड थी, और भारी हथियार चलाने के लिए उनकी ट्रेनिंग नाकाफी थी. इसलिए बख्तर बंद टैंकों के आगे उनकी भी एक न चली.

7 सितम्बर की शाम 4 ग्रेनेडियर को भारी RCL गन मिलीं. RCL यानी रीकोइल लेस बन्दूक. 106 mm की ये बंदूकें एंटी टैंक गन होती हैं. इनमें तेज़ी से पीछे को झटका नहीं लगता लेकिन चूंकि प्रेशर कम करने के लिए इसमें पीछे से आग जैसी निकलती है, इसलिए इन्हें दूर से ही पहचाना जा सकता है. इन बंदूकों को अक्सर जीप में तैनात कर ले जाया जाता है. उस दिन ऐसी ही एक जीप में सवार थे कंपनी क्वार्टर मास्टर अब्दुल हमीद.
आज ही के दिन यानी 1 जुलाई 1933 को हमीद की पैदाइश हुई थी, गांव धामूपुर, जिला गाज़ीपुर में. पिता दर्ज़ी हुआ करते थे. और युवा हमीद को कुश्ती का शौक था. 20 साल में उन्होंने वाराणसी में भर्ती निकाली और 1955 में 4 ग्रेनेडियर बटालियन का हिस्सा बन गए. पहले राइफल कम्पनी का हिस्सा हुआ करते थे. लेकिन फिर बाद में RCL कम्पनी से जुड़ गए. 1962 के लेने के बाद हमीद की अम्बाला में तैनाती हुई. शुरू में कागज़ी काम मिला लेकिन 106 mm RCL गन का उनका धाकड़ निशाना देखते हुए बटालियन कमाण्डर से वापिस प्लैटून में बुला लिया.
असल उत्तर की लड़ाईअसल उत्तर में भारतीय फौज डिफेंसिव पोजीशन पे तैनात थी. आसपास गन्ने और कपास के खेत थे और इनके बीच से रास्ता होकर गुजरता था. पाकिस्तानी टैंक बटालियन को अहसास था कि गन्ने के खेतों से हो रहे हमलों से बच के वो नहीं निकल सकते. इसलिए उन्होंने बीच की धुरी वाली रोड पर एक सीध में टैंक उतार दिए. ताकि जब उन पर दूर से निशाना लगे जो उन्हें भारतीय फौज की पोजीशन का पता लग जाए.
लेकिन उस दिन हुआ इसका ठीक उल्टा.

4 ग्रेनेडियर तब तक रुकी रही जब तक पाकिस्तानी टैंक एकदम नजदीक नहीं आ गए. हमीद एक जीप में RCL गन के साथ तैनात थे. असल उत्तर की धूल भरी जमीन में लड़ाई छिड़ी तो हवा में भी धूल भर गई. गोलाबारी का धुंआ अलग से था. ऐसे में दूर से निशाना चूक भी सकता था. इसलिए हमीद तब तक रुके रहे जब तक पाकिस्तानी टैंक एकदम नजदीक नहीं आ गए. हमीद ने 180 मीटर की दूरी से पहले टैंक को निशाना लगाया, उसके परखच्चे उड़ गए. इसके बाद हमीद ने अपने ड्राइवर से तेज़ी से पोजीशन चेंज करने को कहा, ताकि वापसी गोलाबारी का निशाना न बन जाएं. दिन के ख़त्म होने तक हमीद ने दो टैंकों को तबाह कर दिया था, जबकि चार टैंक ऐसे थे जिन्हें पाकिस्तानी फौजी वहीं छोड़कर भाग खड़े हुए.
अगले दिन और जोरदार हमला होना था. इसलिए आर्मी इंजीनयर कोर ने रातों रात पूरे इलाके में एंटी टैंक माइन बिछा दीं. अगली सुबह असल उत्तर के असमान में पाकिस्तान के सेबर जेट मंडरा रहे थे. 10 सितम्बर सुबह 8 बजे पाकिस्तान टैंकों ने 4 ग्रेनेडियर की पोजिशन पर जोरदार हमला किया. पाकिस्तानी टैंकों के सामने भारत के हथियार कमजोर पड़ रहे थे. अगले 1 घंटे में ही पाकिस्तानी टैंक काफी आगे तक बढ़ आए. हमीद ने जैसे ही देखा कि 6 पाकिस्तानी टैंक उनके साथियों की तरफ बढ़ रहे हैं, वो तुरंत जीप में चढ़े और उन्होंने दाएं फ्लेंक से अपनी RCL गन से टैंकों पर निशाना लगाया.
कपास के खेतों में छुपने का उन्हें खूब फायदा मिल रहा था. यहां से उन्होंने सबसे पहले आगे के टैंक को उड़ाया, और उसके बाद पीछे से निशाना लगाकर 2 और टैंक उड़ा डाले. लेकिन इसी एक बीच पाकिस्तानी की नजर उन पर पड़ गई. उनकी उंगली ट्रिगर पर ही थी जब पाकिस्तानी टैंक का एक गोला सीधे आकर उन्हें लगा और उनके शरीर के परखच्चे उड़ गए. उनके शरीर के हिस्सों को इकठ्ठा कर उन्हें वहीं दफना दिया गया. अब्दुल हमीद ने गज़ब साहस का परिचय दिखाते हुए पाकिस्तानी सेना के 7 टैंकों को अकेले की नष्ट कर डाला था. लेकिन लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई थी.
बड़े इमाम साहिब आप कहां हैं?10 तारीख को दोपहर करीब 3 बजे, कुछ पाकिस्तानी जवान पैटन टैंको के साथ पहुंचे. लेकिन अबकि वो किसी को ढूंढने आए थे.
“बड़े इमाम साहिब आप कहां हैं? हम आपको लेने आए है”, पाकिस्तानी फौजियों ने आवाज दी. लेकिन इमाम साहिब, यानी मेजर जनरल नसीर अहमद खान पहले ही मारे जा चुके थे. पैटन टैंक कुछ काम आते, इससे पहले ही भारतीय सैनिकों ने गज़ब की सूझबूझ दिखाई. और पास से बह रही मधुपुर नहर का एक किनारा काट डाला. बस फिर क्या था, पूरे इलाके में पानी भर गया. कीचड़ से भरा इलाका पैटन टैंकों का कब्रिस्तान बन चुका था.

11 तारीख को असल उत्तर की जंग ख़त्म हुई. अब तक वहां इतने पाकिस्तानी टैंक इकठ्ठा हो चुके थे कि उन्हें भिकीविंड ले जाया गया, और उस जगह का नाम पड़ गया ‘पैटन नगर’. दूसरे विश्व युद्ध में कमांडर रहे, अमेरिकी जनरल जॉर्ज पैटन, जिनके नाम पर इन टैंकों का नाम पड़ा था, उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि ऐसी जगह उनके नाम पर बनेगी जिसके बारे में उन्होंने जिंदगी में कभी नहीं सुना था.
10 सितम्बर की तारीख, जिस दिन अब्दुल हमीद वीरगति को प्राप्त हुए, उसी दिन उन्हें परमवीर चक्र मिलने की घोषणा हुई, हालांकि उनके परमवीर चक्र के साइटेशन में लिखा है कि उन्होंने 4 पाकिस्तानी टैंकों को तबाह किया. इसका कारण ये था कि 9 तारीख को उनके नाम की सिफारिश परमवीर चक्र के लिए कर दी गई थी. बाकी बचे 3 टैंक उन्होंने 10 तारीख की सुबह नष्ट किए.