अफगानिस्तान की सीमा पर हिंदुकुश पर्वत है. इसी हिंदुकुश के एक तरफ सिंधु नदी बहती है. सिंधु के पूर्व वाले हिस्से को हिंदुस्तान कहा गया. इसी हिंदुकुश के दूसरी तरफ का हिस्सा खोरासान कहलाया. खोरासान में गजनी, समरकंद, ईरान और निशापुर (ये संस्कृत के निशा से नहीं फारसी के नि-शाह से बना है जिसका अर्थ नए शाह का शहर होता है) जैसी कई रियासतें शामिल थीं. इसी खोरासान में तमाम आक्रमणकारी हुए. तुर्क, मंगोल और पठान जैसी लड़ाकू जातियां हुईं. इसी खोरासान की चर्चा आजकल खबरों में है और इसी खोरासान में शायर फिरदौसी भी हुआ था.
गजनी ने वादा करके किताब लिखवा ली पर पूरा पेमेंट नहीं किया
फिरदौसी ने शाहनामा लिखा. शाहनामा में 990 चैप्टर हैं. 60 हजार शेर में कही गईं 62 कहानियां हैं. ईरान के महान योद्धाओं पर आधारित इस किताब को लिखने में फिरदौसी को कुल 30 साल लगे. महमूद गजनी ने फिरदौसी से वादा किया था कि किताब पूरा होने पर फिरदौसी को हर शेर के बदले 1 दीनार (सोने का सिक्का) मिलेगा.किताब लिखते-लिखते बुढ़ा गए फिरदौसी जब गजनी के पास अपना पैसा मांगने गए तो सोच रहे थे कि पैसा मिल जाए तो अपने पैतृक शहर तुस चले जाएंगे और ऐश से रहेंगे. मगर जब पैसा देने का नंबर आया तो गजनी ने फिरदौसी को 60,000 दिरहम (चांदी के सिक्के) ही दिए.
फिर शायर ने लिया बदला
जब फिरदौसी के पास पैसे पहुंचे तो वो हमाम में नहाने गए थे. फिरदौसी ने वो सारे चांदी के सिक्के हमाम वाले को दे दिए और शहर छोड़कर चले गए. मगर जाने से पहले फिरदौसी ने गजनी का मज़ाक उड़ाते हुए एक कविता लिखी. कहा जाता है कि ये कविता पूरे राज्य में बहुत प्रसिद्ध हो गई. हर कोई महमूद गजनी के ऊपर लिखे इस व्यंग्य की बात करने लगा.फिरदौसी की इस कविता का एक अंश है-
वो बेशर्म सुल्तान जो तुम्हारी तरह गरीबों को पीसता है, उसे हमेशा के लिए बदनाम होना पड़ेगा,
फिरदौसी के दर्द में डूबे उन शब्दों को रट लो जो उसने शाहनामा में लिखे. जिस-जिसने इन्हें पढ़ा है. जो कोई भी इसे पढ़कर और अकलमंद हुआ है...
...जान ले कि फिरदौसी ने तीस सालों तक शाही वादे की कद्र की, उसका ख्याल रखा. उसे बदले में बुढ़ापे में बस धोखा मिला.
आखिरकार बादशाह ने शायर से माफी मांगी
कहानियां बताती हैं कि पहले गजनी ने फिरदौसी को धमकाने की कोशिश की. मगर शायर के लिखे हुए शब्द तो वापस नहीं आ सकते. कुछ सालों तक इन सबके चलते नाराज़ और परेशान रहने के बाद आखिरकार गजनी को लगा कि फिरदौसी को पूरे पैसे देकर ही इस बदनामी से छुटकारा पाया जा सकता है. 60,000 सोने के सिक्कों से भरी गाड़ी तूस में जब फिरदौसी के गांव पहुंची तो पता चला कि उससे एक दिन पहले ही फिरदौसी की मौत हो चुकी थी.
फिरदौसी की कब्र, फोटो- निमाजवोदानी
फिरदौसी ने शाहनामा के आखिर में लिखा है.
मैं इस महान इतिहास के अंत में पहुंच गया हूं, और सारी ज़मीं मुझसे बात करेगी. मैं मरूंगा नहीं, मैंने जो शब्दों के बीज बोए हैं वो मेरा नाम और मेरी इज़्ज़त को कब्र में भी बनाए रखेंगे. और मेरे जाने के बाद सारे समझदार लोग मेरी शोहरत को बनाए रखेंगे.
ये भी पढ़ें :