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सुनिए सर, सरकार ही तय करेगी कि आप क्या खाएंगे और क्या नहीं

मांसभक्षियों के कुतर्क: पार्ट 1

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फोटो - thelallantop

Sushobhit-Saktawatसुशोभित सक्तावत इंदौर में रहते हैं. जिस सिवनी के जंगलों का जिक्र मोगली के किस्सों में होता है, वहां लगभग साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर. लिखते हैं. जिस पर दिल करता है, उसे शब्दों से पाग देते हैं. इस बार सुशोभित ने मांसाहारियों पर लिखा है. उनके तर्कों की धज्जियां उड़ाई हैं. यही हम आपको पढ़ाने के लिए लाए हैं.

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मांसभक्षियों का तर्क:

"सरकार यह कैसे तय करेगी कि हम क्या खाएं और क्या नहीं."

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अत्यंत वीभत्स, धूर्ततापूर्ण तर्क!

यह ठीक वैसे ही है, जैसे हत्यारों द्वारा यह कहना कि सरकार कैसे तय करेगी कि हम किसको मारें और किसको नहीं. या बलात्कारियों द्वारा यह कहना कि यह सरकार कैसे तय करेगी कि हम किसके साथ बलात् यौनाचार करें और किसके साथ नहीं!

सर, बहुत पुराना समाचार यह है कि यह सरकार ही तय करेगी!

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यह सरकार का ही काम है कि नियम-क़ानून बनाए. और यह आपका काम है कि नियम का पालन करें.

"सरकार यह कैसे तय करेगी कि हम क्या खाएं और क्या नहीं", महोदय, इस कथन में कितने पक्ष हैं?

सरकार और अवाम!

और, जिन्हें मारकर खाया जाना है, वे? नहीं, उनका क्या पक्ष हो सकता है?

लोकतंत्र लोक के लिए है.

लंपट लोक की लालसा और लोभ की पूर्ति के लिए लोक के ही द्वारा रचा गया छल छद्म! नदी, पहाड़, जंगल, पशु, पक्षी इस अधिकार-चेतना से विलग हैं. उनका कैसा अधिकार!

मनुष्य को लगता है कि वह इस संसार का ईश्वर है, इसका अधिष्ठाता! धूर्त, निर्लज्ज मनुष्य!

यह आप तय करेंगे कि किसको खाएं. किंतु किसे जीवित रहना है, किसे नहीं, यह तय करने का अधिकार कहां से पाया, प्रिय मनुष्य? संविधान से? और संविधान किसने रचा?

सुना है, चोरों ने मिलकर कुछ क़ानून बनाए हैं! हास्यास्पद!

पशुवध पर पूर्ण और प्रभावी प्रतिबंध. इससे कम कुछ नहीं. क्या गाय, क्या सुअर, क्या धर्म, क्या अधर्म! सभी पशुओं को मनुष्यों के अनैतिक, जघन्य अत्याचारों से मुक्ति मिले!

और जो राक्षस नहीं जी सकते मांसभक्षण के बिना, वे पशुओं की स्वाभाविक मृत्यु की प्रतीक्षा करें. गिद्धों की तरह! मनुष्यों के बीच निकृष्ट तो वो ख़ैर तब भी कहलाएंगे!


ये सुशोभित के विचार हैं. मांसाहार के विरोध में. हम इनसे सहमत हों या न हों, लेकिन इस पर बात की जानी चाहिए. यह सबसे जरूरी है. अगर आपको लगता है कि आप मांसाहार के पक्ष में इतने ही स्पष्ट विचार लिख सकते हैं, तो lallantopmail@gmail.com पर हमें भेजिए. हम उन्हें पब्लिश करेंगे.


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