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सुषमा स्वराज कैसे भारत की प्रधानमंत्री होते-होते रह गयीं?

और उनके साथ आडवाणी का भी पत्ता कट गया था.

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सुषमा स्वराज के कई फैसले हैं, जिन पर उनकी आलोचना होती रहती है
सुषमा स्वराज की गिनती भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच होती रहेगी. विदेश मंत्री के तौर पर उनका नाम बुलंद था. सीधे-सीधे समस्याओं का निबटारा कर देती थीं. लेकिन सुषमा स्वराज का जीवन उनके पूर्व-विदेश मंत्री के ओहदे और भाजपा के वरिष्ठ नेता से भी ज्यादा विराट था. इतना विराट और उस जीवन में इतना फैलाव कि उनका राजनीतिक करियर सोशलिस्ट गलियारों से होता हुआ भाजपा के धड़े में शामिल होता था.
हालांकि सुषमा स्वराज के जीवन का एक किस्सा ऐसा है, जिसको सुनें तो पता चलता है कि शायद ऐसा भी होता कि सुषमा स्वराज देश की प्रधानमंत्री हो सकती थीं. ऐसा कहना इसलिए, क्योंकि सुषमा स्वराज ने बिना साफ़तौर पर ज़ाहिर किए प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी भी पेश कर दी थी. किस्सा क्या है? साल 2014. लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां शुरू हो चुकी थीं. लोगों को लग चुका था कि कांग्रेस की सत्ता का जाना तय है. ऐसे में भाजपा प्रधानमंत्री पद के लिए अदद उम्मीदवार की तलाश कर रही थी. लालकृष्ण आडवाणी का नाम सबसे आगे चल रहा था. वो भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता थे. 2009 में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी थे.
और उनके साथ खड़ा था उनका विश्वासपात्र मंडल. इसमें आडवाणी के अलावा दो बड़े नेता थे. मुरली मनोहर और सुषमा स्वराज. लेकिन यहां वरिष्ठता ही एक पैमाना नहीं था. पैमाना था नेता प्रतिपक्ष होना.
सुषमा और आडवाणी
सुषमा और आडवाणी

2004-2009 की लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी नेता प्रतिपक्ष के पद पर काबिज़ थे. और भारत में ब्रिटिशकालीन वेस्टमिन्स्टर संसदीय परंपरा लागू होती है. इस परंपरा के तहत संसद में नेता प्रतिपक्ष का नाम अगली बार प्रधानमंत्री पद के लिए आटोमेटिक तौर पर आगे आ जाता है. इस वजह से ही 2009 में आडवाणी अगले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे.
2009 में चुनाव में भाजपा हार गयी. फिर से यूपीए की सरकार बनी. लेकिन इस बार नेता प्रतिपक्ष बनीं सुषमा स्वराज.
फिर आया साल 2014. भाजपा चुनाव जीतने के पूरे मूड में थी. कायदे से सुषमा स्वराज का नाम उम्मीदवार के तौर पर सामने आना चाहिए था. लेकिन उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं हो रही थी. मीडिया और विपक्ष को समझ नहीं आ रहा था कि भाजपा किस वजह से अपने पत्ते छिपा रही है.
नरेंद्र मोदी और सुषमा स्वराज
नरेंद्र मोदी और सुषमा स्वराज

इसी बीच पत्रकारों ने सुषमा स्वराज से बात की. पूछा कि भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री कौन होगा? सुषमा स्वराज ने कहा कि देखिए! हमारे यहां तो राजनीति में वेस्टमिन्स्टर मॉडल चलता है. और इस मॉडल में तो नेता प्रतिपक्ष ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होता है.
और सुषमा स्वराज नेता प्रतिपक्ष थीं. ऐसा कहते हुए उन्होंने खुद की उम्मीदवारी दबे पांव दे दी. इस तरीके से देखें तो सुषमा स्वराज खुद ही नेता प्रतिपक्ष के तौर पर प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार हो जातीं. सब सही रहता तो वे भारत के प्रधानमंत्री की रेस में होतीं.
लेकिन कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ये पसंद नहीं था. उसे सूझ रहा था गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम. न वरीयता के क्रम में आडवाणी का ही नाम आया और न ही वेस्टमिन्स्टर मॉडल के तौर पर सुषमा स्वराज का नाम.
हालांकि कहा तो ये भी जाता है कि सुषमा स्वराज के नेता प्रतिपक्ष के ओहदे को थोड़ा सम्मान देने के लिए नरेंद्र मोदी ने उन्हें विदेश मंत्री का पद दिया, और आडवाणी को मिला मार्गदर्शक मंडल.


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