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अगर वोडाफोन बंद हुई तो इसका आपकी जेब पर भी भारी असर पड़ेगा

हज़ारों नौकरियां जाएंगी और नेटवर्क की खटिया अलग खड़ी होगी.

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वोडाफोन ने हाथ खड़े कर लिए हैं, सरकार चुप है और सुप्रीम कोर्ट AGR पर तनी हुई है (तस्वीर ANI)

भारत दुनिया का सबसे सस्ता टेलीकॉम बाज़ार हुआ करता था. इसी सेक्टर में सबसे ज़्यादा नौकरियां हुआ करती थीं. बाहर से कंपनियां टेलीकॉम में निवेश के लिए सरपट दौड़ के आती थीं. शेयर मार्केट में भी इस सेक्टर की बमबम रहती थी. लेकिन ये सब गुज़रे ज़माने की बात लगती है.

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ऐसा क्या हो गया कि आज भारत की टेलीकॉम कंपनियां सरकार और सुप्रीम कोर्ट के सामने एड़ियां रगड़ रही है. सुप्रीम कोर्ट, सरकार और टेलीकॉम कंपनियां तीनों ही एक दूसरे पर एक दूसरे को न समझने के आरोप लगा रहे हैं. दुनिया की बड़ी टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन के CEO को इस क़ानूनी रस्साकशी से महीनों पहले ही कहना पड़ा था कि हम भारत छोड़कर चले जाएंगे. वोडाफोन अगर बंद हुई तो भारत में पहली टेलीकॉम कंपनी नहीं होगी जो बंद होगी. इससे पहले MTS, Uninor जैसी कंपनियां भी बंद हो चुकी हैं.

लेकिन वोडाफोन के बंद होने से बाज़ार का गणित गड़बड़ा जाएगा. और इतनी भयानक गड़बड़ होगी कि आपकी जेब में रखे मोबाइल से लेकर पूरे डिजिटल इंडिया की ऐसी-तैसी हो जाएगी. वजह? AGR माने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू. भारत की तक़रीबन सभी सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां इस AGR के मसले पर महीनों से दौड़-धूप में लगी हैं. पईसा बकाया है, और वो भी हज़ारों करोड़. एयरटेल. वोडाफोन, रिलायंस जैसी दिग्गज कंपनियां इसके लपेटे में हैं. AGR की रक़म जमा कराने की आख़िरी तारीख़ थी 14 फरवरी. शुक्रवार. लेकिन कोर्ट के दर्जनों बार कहने के बावजूद कंपनियों को सरकार और मंत्रालय से राहत मिल रही थी. इसी पर सुप्रीम कोर्ट भन्ना गया कि भईया सुप्रीम कोर्ट को कुछ समझते मानते हो कि बंद कर दें?

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सुप्रीम कोर्ट ने हचक के हड़काया तो इनमें से एक कंपनी भारती एयरटेल की बुद्धि खुल गई. बकाये में से 10 हज़ार करोड़ रुपया सोमवार 17 फरवरी को जमा करवा दिया. बाक़ी का बोले जल्दी करा देंगे. 2500 करोड़ लेकर वोडाफोन भी पहुंची थी लेकिन कोर्ट ने कहा सारा बकाया जमा कराओ.


# AGR है क्या चीज़

अब ये समझ लीजिए कि ये AGR आख़िर बला क्या है? जिसके चक्कर में भारत की हर बड़ी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी घनचक्कर हुए जा रही है.

देश की किसी भी दूर संचार कंपनी को सरकार को हर साल कुछ पैसे देने पड़ते हैं. जिस प्रकिया के तहत दूर संचार कंपनियां सरकार को पैसे देती हैं उसे कहते हैं AGR यानी एडजस्टेड ग्रास रेवेन्यू. दूर संचार मंत्रालय का कहना है कि एजीआर में फोन सेवाओं से की गई आमदनी के अलावा कंपनियों की ओर से जमा संपत्ति पर ब्याज और बेची गई संपत्ति से हुई आमदनी भी शामिल है. कंपनियों को अपने एजीआर का तीन फीसदी स्पेक्ट्रम फीस और आठ फीसदी लाइसेंस फीस के तौर पर देना होता है. लेकिन साल 2005 से ही टेलीकॉम सेक्टर की बड़ी कंपनियों जैसे एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया ने दूर संचार मंत्रालय के इस फैसले पर विवाद खड़ा कर दिया. इन कंपनियों का कहना था कि एजीआर में फोन सेवाओं से हुई आमदनी को तो रखना ठीक है, लेकिन जमा पैसे के ब्याज पर हुई आमदनी, संपत्तियों को बेचकर हुई आमदमी और अपनी किसी संपत्ति को किराए पर देने से हुई आमदनी को एजीआर में शामिल करना ठीक नहीं है.

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अगर इस लड़ाई में कोई जिएगा तो वो है Jio. क्योंकि जहां एक तरफ़ सारी कंपनियां AGR से दबी हैं वहीं दूसरी तरफ़ Jio को बस नाम का बकाया अदा करना है (तस्वीर ANI)
अगर इस लड़ाई में कोई जिएगा तो वो है Jio. क्योंकि जहां एक तरफ़ सारी कंपनियां AGR से दबी हैं वहीं दूसरी तरफ़ Jio को बस नाम का बकाया अदा करना है (तस्वीर ANI)

# इन सबके बीच वोडाफोन

वोडाफोन के साथ सबसे ज़्यादा दिक्कत है. वोडाफोन ने AGR के मसले पर तक़रीबन हाथ खड़े कर लिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पूरा बकाया जमा करने का आदेश दे दिया है. Airtel तो फिर भी पईसा जुगाड़ने में लगा है, लेकिन वोडाफोन का कहना है कि 52 हज़ार करोड़ का AGR देने में तो कंपनी बंद करनी पड़ जाएगी. पिछले दो साल से वोडाफोन वैसे ही घाटे में चल रहा है. शेयर बाज़ार में लगातार वोडाफोन दगा हुआ गड्डा बना है. छुरछुराता है, फटता नहीं.


# वोडाफोन के पास अब क्या रास्ता है?

ज़्यादा रास्ते हैं नहीं. अगर वोडाफोन डूब गया तो पईसे किसी को कुछ मिलने नहीं हैं. वोडाफोन कोर्ट में ख़ुद को दिवालिया घोषित कर देगा. लेकिन सवाल ये है कि वोडाफोन के 50 हज़ार कर्मचारियों का क्या होगा? वोडाफोन के ग्राहक कहां जाएंगे? वोडाफोन बंद होने के बाद भारत में बचेंगी दो कंपनियां. एक तो एयरटेल और दूसरी जियो. तो वोडाफोन के कस्टमर जाएंगे लगभग Jio के पास. क्यों? क्योंकि वोडाफोन से बाहर निकलकर ग्राहक करेंगे Jio और Airtel की तुलना. और इसमें सस्ती कॉल और सस्ते डेटा में बाज़ी मारता है Jio. लेकिन सवाल ये भी है कि वोडाफोन के इतने सारे ग्राहकों को खपाने भर की ताक़त इन दोनों ही कंपनियों में नहीं हैं.


धाकड़ तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने दाब लिया है वोडाफोन को और अब कंपनी की बत्ती गुल होती दिख रही है (तस्वीर ANI)
धाकड़ तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने दाब लिया है वोडाफोन को और अब कंपनी की बत्ती गुल होती दिख रही है (तस्वीर ANI)

एक्सपर्ट बता रहे हैं कि अब 'सस्ती कॉल' का ज़माना जाने वाला है. जब मार्केट में दो खिलाड़ी ही होंगे और एक के पास सबसे अधिक ग्राहक होंगे तो ज़ाहिर तौर पर खेल के नियम एक खिलाड़ी ही तय करेगा. और इस खेल में नियम तय करेगा Jio.

वोडाफोन के पचास हज़ार कर्मचारियों के सामने रोज़गार का संकट खड़ा होगा. क्योंकि टेलीकॉम सेक्टर में जब दो ही कंपनियां बची हों और उनमें से भी एक किसी तरह से सर्वाइव कर रही हो तो और लोग भर्ती करना बहुत मुश्किल होगा किसी भी कंपनी के लिए.


# AGR के नियम क़ायदे कन्फ्यूज्ड हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार का काम क़ानून बनाना है. कोर्ट क़ानून को लागू कराता है. अब अगर सुप्रीम कोर्ट किसी भी कीमत पर AGR लागू कराएगा ही, तो दिक्कतें और भी होंगी. इसमें सिर्फ़ वोडाफोन, एयरटेल जैसी टेलीकॉम कंपनियां ही नहीं डूबेंगी बल्कि ऐसी कंपनियों को भी झटके लगेंगे जो टेलीकॉम कंपनियां ही नहीं हैं.

AGR लागू हुआ तो गैस अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (GAIL) पर भी तगड़ा बकाया लगेगा. GAIL पर AGR का 1 लाख 72 हज़ार करोड़ का बकाया है. जबकि GAIL सरकारी कंपनी है. अब सवाल उठता है कि इत्ता बकाया GAIL पर कैसे लगा. तो समझ लीजिए कि एक समय GAIL ने सोचा था कि तेल पाइप लाइनों के साथ अगर वो टेलीकॉम केबल भी बिछा दें तो GAIL टेलीकॉम सर्विस भी दे सकती है. कमाई की संभावना थी. लेकिन GAIL ने ऐसा कुछ किया नहीं.


GAIL ने तो वो बकाया उठा रखा है उस सर्विस का जो उसने कभी दी ही नहीं. लेकिन AGR का बकाया इन पर भी बैठा है (तस्वीर ANI)
GAIL ने तो वो बकाया उठा रखा है उस सर्विस का जो उसने कभी दी ही नहीं. लेकिन AGR का बकाया इन पर भी बैठा है (तस्वीर ANI)

Oil India पर भी AGR का 48 हज़ार करोड़ रुपए का बकाया है. जबकि ये बकाया उस सर्विस का है जो Oil India ने कभी ली ही नहीं. स्पेक्ट्रम और लाइसेंसिंग का ख़र्च. ये रक़म लगभग उतनी ही है जितनी न दे पाने की वजह से वोडाफोन डूबने की कगार पर है. ऐसे ही Power Grid Corporation को AGR का बकाया 22 हज़ार करोड़ रुपया देना पड़ेगा अगर सुप्रीम कोर्ट अड़ी रही तो. इन तीनों कंपनियों का बकाया मिला लें तो दो लाख करोड़ से भी ऊपर की रक़म है ये. ये तीनों सरकारी कंपनियां हैं, ऐसे में अगर इन पर दो लाख करोड़ का बोझ पड़ा तो उसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ सकता है.


# फ़ैसले को कैसे देख रहे हैं बाज़ार के दिग्गज?

एक्सपर्ट इस फ़ैसले को 2 G काण्ड से जोड़कर समझा रहे हैं. 2 G घपला क्यों? क्योंकि पौने दो लाख करोड़ के इस कथित स्कैम पर जब सुप्रीम कोर्ट ने 122 कंपनियों के लाइसेंस कैंसल कर दिए थे. बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत छोड़कर चली गईं. बाद में फ़ैसला आया कि 2 G में कोई स्कैम हुआ ही नहीं लेकिन तब तक कंपनियां भारत छोड़कर जा चुकी थीं.

अब कहने वाले यही कह रहे हैं कि अगर सरकार ने बीच-बचाव नहीं किया तो इस तरह भारत में मोबाइल फोन क्रांति का अंत हो जाएगा.


सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों से साफ़ कर दिया है कि पईसा तो पूरा भरना पड़ेगा चाहे दुकान को लगाना पड़े ताला (तस्वीर ANI)
सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों से साफ़ कर दिया है कि पईसा तो पूरा भरना पड़ेगा चाहे दुकान को लगाना पड़े ताला (तस्वीर ANI)

# तो करना क्या चाहिए?

कम से कम तीन खिलाड़ी इस सेक्टर में होने ही चाहिए. जो कि सुप्रीम कोर्ट के तेवर देखकर संभव नहीं लगता. सरकार ने अगर बीच बचाव नहीं किया तो पूरे टेलीकॉम सेक्टर पर ही ख़तरा मंडरा रहा है. वजह है आने वाला 5 G स्पेक्ट्रम. आप ख़ुद सोचिए कि जो Airtel अभी हाल ही में बड़ी मुश्किल से बंद होने से बाल-बाल बचा हो वो 5 G कैसे ख़रीदेगा? पिछले कई महीनों से भारत में टेलीकॉम इंडस्ट्री की हालत वैसे ही बेहद ख़राब है. मोबाइल नेटवर्क और डाटा स्पीड नाम भर को रह गई है. कॉल ड्रॉप बेहद आम समस्या बन गई है. 4G में भी नेटवर्क घिसट-घिसट के आता है.

एक्सपर्ट बता रहे हैं कि अगर भारत में टेलीकॉम सेक्टर बर्बाद हुआ तो बहुत सारे सेक्टर और भी ध्वस्त होंगे. सूचना क्रांति, डिजिटल इंडिया बस नाम के रह जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट AGR लागू कराने की ज़िद पर अड़ा है. सरकार चुप है. इस चुप्पी की कीमत आख़िरकार मंदी के दौर से गुज़र रहे भारत को चुकानी होगी. सरकार की चुप्पी से अनगिनत लोगों के रोज़गार चले जाएंगे. ऐसे में बाज़ार उम्मीद कर रहा है कि सरकार सही समय पर डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलीकम्युनिकेशन (DOT) और सुप्रीम कोर्ट के बीच चल रही तनातनी को ख़त्म करे.




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