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पृथ्वी पर इतना सारा पानी आया कहां से?

4.6 अरब साल पहले जब पृथ्वी बनी थी तो सूखी और गर्म थी.

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ज़्यादातर पानी खारा है. पीने लायक पानी बहुत कम है. (सोर्स- रायटर्स)
जल-प्रलय. माने एक भयंकर बाढ़, जिसका ज़िक्र हमें हिन्दू धार्मिक कथाओं में मिलता है. मत्स्य पुराण में द्रविड़ साम्राज्य के राजा मनु की कहानी है. मनु ने जल-प्रलय से बचने के लिए एक नाव बनाई. और सुरक्षित आशियाने की तलाश में निकल गए.
नाव में सप्तऋषि बैठाए, अपना परिवार बैठाया और बिठाई जीवन के लिए ज़रूरी तत्व. (सोर्स - विकीपीडिया)
नाव में सप्तऋषि बैठाए, अपना परिवार बैठाया और बिठाई जीवन के लिए ज़रूरी तत्व. (सोर्स - विकीपीडिया)

मिलती-जुलती एक कहानी क्रिश्चियानिटी, इस्लाम और यहूदी धर्म में भी है. इस कहानी में नोआ और उसकी नाव का ज़िक्र है.
नोआ और मनु की कहानी इतनी मिलती-जुलती है कि कुछ लोग इस बाढ़ को इतिहास का हिस्सा बताते हैं. (सोर्स - विकीपीडिया)
नोआ और मनु की कहानी इतनी मिलती-जुलती है कि कुछ लोग इस बाढ़ को इतिहास का हिस्सा बताते हैं. (सोर्स - विकीपीडिया)

इन कहानियों से हमें ये पता चलता है कि हम बाढ़ से हमेशा से जूझते आए हैं. बाढ़ आती है तो पानी जान के लिए खतरा बन जाता है. लेकिन वो पानी ही है जो हमें ज़िंदा रखता है. जब हम किसी दूसरे ग्रह पर जीवन की संभावना देख रहे होते हैं तो हमारी नज़र सबसे पहले पानी ही तलाशती है.
हमारे शरीर का लगभग 60% हिस्सा पानी है. और धरती की सतह का 71 % हिस्सा पानी से भरा है. यही वजह है कि हम अपने ग्रह को 'ब्लू प्लानेट' यानी नीला ग्रह कह कर बुलाते हैं. हमारे सौरमंडल के दूसरे किसी ग्रह पर इतनी मात्रा में पानी नहीं है.
अपना सवाल ये है कि इतना सारा पानी धरती पर आया कहां से? और आया, तो धरती पर ही क्यों आया?
लेकिन इन सबसे पहले हमें पानी के बारे में पता होना चाहिए. अपना वाला पानी नहीं, केमिस्ट्री वाला पानी.

मानो तो मैं H2O हूं, न मानो तो बहता पानी

हमें कल-कल बहता पानी दिखता है, फ्रीज़र में जमी बर्फ दिखती है और चाय के पतीले से निकलती भाप दिखती है. केमिस्ट्री को H2O नाम का एक केमिकल सब्सटेंस दिखता है. और H2O के मॉलीक्यूल्स दिखते हैं.
मॉलीक्यूल मतलब केमिकल सब्सटेंस की इकाई. जैसे कोई देश अपने नागरिकों से मिलकर बनता है वैसे ही केमिकल सब्सटेंस अपने मॉलीक्यूल्स से मिलकर बनता है.
इस फोटो में हमें पानी की दो स्टेट दिख रही हैं. लिक्विड और सॉलिड. (सोर्स - रॉयटर्स)
इस फोटो में हमें पानी की दो अवस्थाएं दिख रही हैं. लिक्विड और सॉलिड. (सोर्स - रॉयटर्स)

मेरे तीन नाम हैं. स्कूल का नाम. घर का नाम और ननिहाल का नाम. H2O के भी तीन नाम हैं. उसके तीन स्टेट्स (अवस्था) के हिसाब से H2O को तीन अलग-अलग नामों से बुलाते हैं.
लिक्विड है तो पानी सॉलिड है तो बर्फ गैस है तो भाप
H2O यानी पानी तीन एटम्स से मिलकर बनता है. दो हाइड्रोजन के एटम और एक ऑक्सीजन का एटम. इसीलिए इसका नाम H2O रखा है.
इमेज में पानी के मॉलीक्यूल का स्ट्रकचर दिख रहा है, बकायदा नाप के साथ. (सोर्स - विकीपीडिया)
इमेज में पानी के मॉलीक्यूल का स्ट्रक्चर दिख रहा है, बकायदा नाप के साथ. (सोर्स - विकीपीडिया)

जब कहीं पे कुछ नहीं था - बिग बैंग

विज्ञान के अनुसार सृष्टि की शुरुआत एक धमाके से हुई. करीब 13.8 अरब साल पहले. इस धमाके का नाम है बिग बैंग. और सृष्टि के जन्म के 3 मिनट बाद जन्मा सबसे पहला और सबसे सिंपल एटम - हाइड्रोजन. भारी तापमान में हाइड्रोजन के टकराने (फ्यूज़न) से हीलियम बना. फिर हाइड्रोजन्स और हीलियम के फ्यूज़न से बाकी के एलिमेंट्स बने. उनमें से एक था ऑक्सीजन.
बिग बैंग के बाद की टाइमलाइन. बिग बैंग थ्योरी नाम की एक टीवी सीरीज़ भी है. लेकिन वो कोई साइंस सीरीज़ नहीं. (सोर्स - विकीपीडिया)
बिग बैंग के बाद की टाइमलाइन. बिग बैंग थ्योरी नाम की एक टीवी सीरीज़ भी है. लेकिन वो कोई साइंस सीरीज़ नहीं. (सोर्स - विकिपीडिया)

बाद में जब माहौल थोड़ा ठंडा हुआ तो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ने साथ रहना चुना. इसको केमिस्ट्री में बॉन्ड बनाना कहते हैं. ऑक्सीजन ने अपने दो हाथों से दो छुटकू हाइड्रोजन्स की उंगली थामी. मॉलीक्यूल बना और नाम पड़ा H2O.
ये तो हुई ब्रह्माण्ड में H2O के आने की कहानी. लेकिन H2O पृथवी पर कैसे आया?
इस सवाल का कोई पक्का सा जवाब नहीं है. कुछेक थ्योरीज़ हैं जो धरती तक पानी के पहुंचने का रास्ता पता करने की कोशिश करती हैं. हम दो पॉप्यूलर और रोचक थ्योरीज़ पर एक नज़र मार लेते हैं.

पहली थ्योरी - भीतर का पानी

13.8 अरब साल पहले बिग बैंग हुआ. पृथ्वी और सूरज 4.6 अरब साल पहले बने. जब पृथ्वी बन रही थी, तभी पानी के मॉलीक्यूल्स उन चट्टानों पर जमा हो गए, जिनसे पृथ्वी बन रही थी. पृथ्वी बहुत गर्म थी. सतह सूख गई. जो भी पानी बचा वो पृथ्वी के भीतर बचा रहा.
भाप ज्वालामुखी और दरारों से निकली. (सोर्स - रायटर्स)
भाप ज्वालामुखी और दरारों से निकली. (सोर्स - रायटर्स)

बाद में ये पानी अंदर की गर्मी से भाप बनकर ऊपर को निकला. तब तक पृथ्वी का वायुमंडल तैयार हो चुका था. इस वायुमंडल में बादल बने. और -
घनन घनन घिर-घिर आये बदरा. घने घन घोर कारे छाये बदरा. धमक-धमक गूंजे बदरा के डंके. चमक-चमक देखो बिजुरिया चमके. मन धड़काए बदरवा.
मतलब कि बादलों से पानी बरसा और वो धरती पर आ गया.

दूसरी थ्योरी - बाहर का पानी

दूसरी थ्योरी कहती है कि धरती पर पानी बाहर से आया. गर्मी केवल सूरज के पास वाले प्लैनेट्स में थी. सूरज से दूर वाली चट्टानें (एस्टेरॉइड्स और कॉमेट्स) ठंडी थीं. यहां पानी इकट्ठा बचा रहा. बाद में एस्टेरॉइड्स और कॉमेट्स आकर धरती से टकराए. और साथ में पानी लेकर आए.
एक थ्योरी कहती है कि धरती से डायनासॉर खत्म होने का कारण भी एक एस्टेरॉयड का टकराना ही है. (सोर्स - रॉयटर्स)
एक थ्योरी कहती है कि धरती से डायनासॉर खत्म होने का कारण भी एक एस्टेरॉयड का टकराना ही है. (सोर्स - रॉयटर्स)

साइंस के सर्किल में दूसरी थ्योरी ज़्यादा स्वीकार की जाती है. ज़्यादातर साइंटिस्ट्स ये मानते हैं कि दोनों तरीके से पानी धरती पर आया, लेकिन ज़्यादा पानी बाहर से ही आया है.
सिर्फ धरती पर पानी क्यों है?
धरती पर लिक्विड वॉटर बहुत सारा है. क्योंकि धरती का तापमान पानी के बने रहने के लिहाज़ से बहुत सही है. बुध और शुक्र सूरज के बहुत पास हैं. बहुत गरम रहते हैं. मंगल सूरज से दूर है. ठंडा रहता है. पृथ्वी परफेक्ट दूरी पर है. इसलिए यहां का तापमान बहुत सही है और यहां पानी बहुत सही है.


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