तारीखः 22 जनवरी, 1999. स्थानः ओडिशा का क्योंझऱ जिला. एक पिता और साथ में हैं उसके दो बेटे. एक 7 साल का दूसरा 10 साल का. बेटे ऊटी में पढ़ते हैं. विंटर वैकेशन में घर आए हैं. बेटे पिता से कहीं घुमाने की ज़िद करते हैं. पिता उन दोनों बेटों को एक कार में घुमाने ले जाता है. शहर मयूरभंज. यहां दिन में वे ईसाइयों के प्रोग्राम में हिस्सा लेते हैं. फिर शाम को घर लौटने से पहले रास्ते में पिकनिक मनाने के लिए वे तीनों मनोहरपुर नाम के एक गांव के बाहर अपना कैंप लगा लेते हैं. यहां एक चर्चे के बाहर वे खाते-पीते हैं और फिर अपनी उसी जीप जैसी कार में तीनों सो जाते हैं.
अचानक, रात कोई 12 बजे दारा सिंह की अगुवाई में 50-60 लोग उनकी गाड़ी को घेर लेते हैं. घेराबंदी करने वाले लोग हाथ में कुल्हाड़ी और फरसे लिए हैं. इससे पहले कि कार में सो रहे पिता और उसके दोनों बेटे कुछ समझ पाते, लोग उन पर हमला कर देते हैं. गाड़ी में तोड़फोड़ शुरू कर देते हैं. अचानक हुए इस हमले से पिता और उसके दोनों बेटे बुरी तरह दहशत में आ जाते हैं. वे हमलावरों के आगे हाथ जोड़ते हैं. गिड़गिड़ाते हैं. रहम की भीख मांगते हैं. मगर हमलावर उऩ पर कोई दया नहीं दिखाते. वे उनको बुरी तरह मारते-पीटते हैं. फिर पेट्रोल छिड़ककर उनकी कार को आग लगा देते हैं. कार धू-धूकर जलने लगती है. चारो ओर शोर ही शोर सुनाई देता है. और इस शोर में उन तीनों की आवाजें ग़ुम हो जाती हैं. वे हमेशा के लिए शांत हो जाते हैं. अगली सुबह वहां तीनों की राख मिलती है. भीड़ ने इन तीनों को जला डाला था.
जलाकर मारे गए ये तीन लोग थे ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस (58) और उनके बेटे फिलिप (10) और टिमोथी (7). डॉक्टर ग्राहम स्टेंस यहां कुष्ठ रोगियों की सेवा करते थे. ओडिशा के आदिवासी बहुल और पिछड़े जिले क्योंझर, मयूरभंज और बारिपदा में ग्राहम स्टेंस कुष्ठ रोगियों की सालों से सेवा कर रहे थे. वे उनका इलाज करते थे. उस रात उन पर धर्मांतरण का आरोप लगाकर उग्र हिंदूवादियों ने हमला कर दिया. और फिर वो हुआ जिसने पूरी दुनिया में भारत और इंसानियत को कलंकित किया.

ग्राहम स्टेंस और उनके बेटे जान बख्श देने की गुजारिश करते रहे. मगर भीड़ ने उनको जला डाला. फाइलफोटो. रायटर्स.
34 साल रहे भारत में ग्राहम स्टेंस ग्राहम स्टेंस साल 1941 में ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में पैदा हुए थे. उनकी ओडिशा के एक युवक सांतनु सतपथी से उनकी दोस्ती हो जाती है. सांतनु उनको भारत आने का न्योता देते हैं. दोस्त के निमंत्रण पर स्टेंस ओडिशा के बारीपदा आते हैं. साल था 1965. स्टेंस भारत आए तो फिर यहीं के होकर रह गए. फिर कभी नहीं लौटे. स्टेंस ने इवैंजेलिकल मिशनरी सोसायटी ऑफ मयूरभंज यानी ईएमएसएम के साथ मिलकर काम शुरू किया. ग्राहम स्टेंस यहां आदिवासियों के बीच कुष्ठरोगियों का इलाज करने लगे.
साल 1982 में उन्होंने मयूरभंज लेप्रसी होम नाम से एक संस्था बनाई. उन दिनों कुष्ठ रोग को भारत में बड़ा रोग माना जाता था. इसका इलाज काफी कठिन समझा जाता था. ऐसे दौर में ग्राहम स्टेंस ने गरीब आदिवासियों के इलाज का बड़ा जिम्मा उठाया. इसी दौरान उनकी मुलाकात ग्लैडिस से हुई. वे भी कुष्ठरोगियों की सेवा में लगी रहती थीं. साल 1983 में दोनों ने शादी कर ली. दोनों के तीन बच्चे हुए. एक बेटी ईस्थर और दो बेटे फिलिप और टिमोथी. ओडिशा में ज्यादा वक्त बिताने की वजह से स्टेंस अच्छी उड़िया बोल लेते थे. और अपने मरीजों के बीच जबरदस्त लोकप्रिय थे. मगर कुछ लोगों को उनके इस काम से नाइत्तेफाकी थी. उन्होंने स्टेंस को आग के हवाले कर दिया.
दुनिया भर में आलोचना इस हत्याकांड में पुलिस ने दारा सिंह समेत 13 लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. भारत समेत दुनिया भर में इसकी आलोचना हुई. अलग-अलग राजनीतिक दलों, धार्मिक नेताओं, सिविल सोसायटी और पत्रकारों आदि ने इस घटना की एक सुर में निंदा की. घटना के आरोपियों के बजरंग दल से संबंध बताए गए. हालांकि हिंदूवादी संगठन इन रिश्तों को नकारते रहे. इस घटना की वजह से तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार बुरी तरह आरोपों से घिर गई.
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने घटना की कड़ी आलोचना की. फिर इसकी जांच के लिए तीन कैबिनेट मंत्रियों की कमेटी मौके पर भेजी. जिसने अपनी रिपोर्ट में कई लोगों को आरोपी बताया. पुलिस और मजिस्ट्रियल जांच भी हुई. आरोपियों के खिलाफ अदालत में मुकदमा चला. निचली अदालत ने दारा सिंह को फांसी और एक अन्य शख्स महेंद्र हेमब्रोम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. सुप्रीम कोर्ट ने दारा सिंह की सज़ा को उम्रकैद में बदला. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामले में दोषियों ने जिस अपराध को अंजाम दिया, वो बेहद निंदनीय था.
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