नाम की वेबसाइट पर छपा है. हम उसमें से कुछ किस्से हिंदी में आपके साथ साझा करते हैं. कौन हैं भगत सिंह झुग्गियां भगत सिंह झुग्गियां 1928 में पंजाब में पैदा हुए. उनसे जुड़ा पहला बड़ा किस्सा आता है 1939 का, जब वे 11 साल के थे. झुग्गियां तीसरी कक्षा में पढ़ते थे और पढ़ाई से जुड़ा एक पुरस्कार लेने के लिए स्कूल के मंच पर खड़े थे. पुरस्कार देने के बाद उनसे एक नारा लगाने के लिए कहा गया. नारा था –
“ब्रिटेन ज़िंदाबाद, हिटलर मुर्दाबाद.”झुग्गियां ने नारा लगाया, लेकिन क्या नारा लगाया –
“ब्रिटेन मुर्दाबाद, हिंदुस्तान ज़िंदाबाद.”उन्हें टीचर ने जमकर पीटा और गवर्नमेंट एलीमेंट्री स्कूल से तुरंत निकाल दिया गया. साथ ही होशियारपुर में उन्हें ख़तरनाक विचारों वाला करार दे दिया गया. इसके बाद उन्हें कभी किसी स्कूल में दाखिला नहीं मिला. झुग्गियां की पढ़ाई अधूरी रह गई. इस समय उनकी उम्र 93 साल है और वे पंजाब के होशियारपुर जिले के रामगढ़ में रहते हैं. भगत सिंह झुग्गियां को भारत का चंद जीवित स्वतंत्रता सेनानियों में गिना जाता है. भगत सिंह से वास्ता जब पढ़ाई अधूरी ही रह गई तो झुग्गियां ने पूरी तरह अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ मोर्चा खोल दिया. उस समय के एक क्रांतिकारी दल ‘कीर्ति पार्टी’ ने उनसे संपर्क साधा. वो साथ हो लिए. घर में खेती-बाड़ी थी, जिसे झुग्गियां ही संभालते थे. इसके अलावा उन्हें क्रांतिकारियों की तरफ से जो भी काम दिया जाता, वे करते. 20 किमी पैदल चलकर प्रिंटिंग प्रेस के लिए बोरियों में भरकर पुर्जे लाते थे. वो आजादी की लड़ाई में शामिल हो चुके थे.
भगत सिंह झुग्गियां का क्रांतिकारी भगत सिंह से कुछ ख़ास वास्ता नहीं रहा. नाम एक होने के संयोग पर वे कहते थे –
“मैंने बड़े होते हुए उनके (क्रांतिकारी भगत सिंह) बारे में काफी कुछ सुना था. लोग उनके गीत गाते थे. जब मैं 3 साल का था, तभी उन्हें फांसी दे दी गई.”विभाजन का दर्द विभाजन का दर्द सरदार झुग्गियां ने भी झेला था. इस पर उन्होंने पी साईंनाथ को बताया –
“सरहद पार जाने की कोशिश में लगे सैकड़ों-हज़ारों लोगों के कारवां पर लगातार हमले किए गए, लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. यहां हर तरफ़ जैसे क़त्लेआम मच गया था. मेरे खेत के पास किसी जवान लड़के की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हमने उसके भाई को अंतिम संस्कार में मदद की पेशकश की, लेकिन वह बेहद डरा हुआ था और कारवां के साथ आगे बढ़ गया. फिर हमने ही लाश को अपनी ज़मीन में दफ़नाया. वह अगस्त महीने की भयावह 15वीं तारीख थी.”

किसानों और समाज के लिए काम आजादी के बाद भी वे किसानों के लिए, समाज के लिए काम करते रहे. 1959 में प्रदेश सरकार ने किसानों पर अनुचित टैक्स लगा दिए तो झुग्गियां ने इसका जमकर विरोध किया. सरकार ने इसके बदले में उनकी भैंस जब्त कर ली और इसकी नीलामी कर दी. झुग्गियां के कामों से प्रभावित एक व्यक्ति ने उस वक्त इस भैंस को 11 रुपये में खरीदकर वापस झुग्गियां को सौंप दी.
80 के दशक में वे खालिस्तानी आतंकियों के भी टारगेट पर रहे. एक बार तो एक खालिस्तानी आतंकी ने उन पर महज 400 मीटर की दूरी से निशाना साध लिया था. लेकिन तभी उसने झुग्गियां को पहचान लिया और भला आदमी मानकर छोड़ दिया.
उस 15 अगस्त की तारीख़ को 74 बरस बीत चुके हैं. सरदार भगत सिंह झुग्गियां आज 74 बरस बाद आज़ादी को लेकर चिंतित हैं. उनका कहना है कि आज जो लोग ताकत में हैं, वे कभी आज़ादी की उस लड़ाई में शामिल नहीं रहे इसलिए इन्हें अहमियत नहीं पता.