आओ मदीने चलें. इसी महीने चलें. मयकशों आओ आओ मदीने चलें.जब कोई हज के लिए जाता है तो अपने सभी रिश्तेदारों से मिलता है. अपनी गलतियों की माफ़ी मांगता है. हज पर जाना हर मुसलमान पर वाजिब है. मतलब ज़रूरी है. क्योंकि ये इस्लाम के फाइव पिलर (1. कलमा पढ़ना 2. नमाज़ पढ़ना 3. रोज़ा रखना 4. ज़कात देना 5. हज पर जाना) में से एक है. कलमा, नमाज़ और रोज़ा तो सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य हैं. कोई छूट नहीं है. लेकिन ज़कात और हज में ये छूट दी गई है कि जो लोग सक्षम हैं, यानी जिनके पास इतना पैसा है कि वो ज़कात (दान) दे सकते हैं और हज पर जा सकते हैं, उनके लिए ये दोनों काम करना ज़रूरी है. हज सऊदी अरब के मक्का शहर में होता है, क्योंकि काबा मक्का में है. काबा वो इमारत है, जिसकी तरफ मुंह करके दुनियाभर के मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं. काबा वो मंजिल है, जिसे अल्लाह का घर कहा जाता है. इस वजह से वो मुसलमानों का तीर्थस्थल है. जहां जिंदगी में एक बार जाना इस्लाम में ज़रूरी बताया गया है.

क्या होता है हज में?
हज इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने जिल हिज्जाह की 8वीं तारीख से 12वीं तारीख तक होता है. 12 तारीख को जिस दिन हज पूरा होता है वो दिन ईद-उल-अज़हा का होता है यानी बकरीद. हज के अलावा एक और यात्रा होती है जिसे उमराह कहा जाता है. दोनों की रस्में एक जैसी होती हैं. बस फर्क ये होता है कि हज सिर्फ बकरीद के मौके पर होता है और उमराह सालभर में कभी भी किया जा सकता है.
7वीं शताब्दी से हज इस्लामी पैगंबर मुहम्मद की जिंदगी के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन मुसलमान मानते हैं कि मक्का की तीर्थयात्रा की यह रस्म हजारों सालों से यानि कि अल्लाह के नबी इब्राहीम के ज़माने से चली आ रही है. हर साल दुनियाभर के मुसलमान यहां हज करने के लिए पहुंचते हैं. हज के दौरान निभाई जाने वाली रस्में.
1. इहराम बांधना
ये हज या उमराह करने का पहला चरण होता है. इसके तहत एक खास तरह की पोशाक पहनी जाती है. इस पोशाक में दो चादरें होती हैं जो जिस्म से लपेट ली जाती हैं. और फिर इबादत करने की नीयत कर ली जाती है. ऐसा करने के बाद बहुत सी चीज़ों से परहेज़ करना होता है. जैसे शरीर के किसी भाग से बाल उखेड़ना या कटवाना, सुगंध लगाना…! इसलिए इहराम बांधने से पहले ही अपने जिस्म की पूरी सफाई कर लेनी होती है. इहराम बांधने के बाद कुरआन की आयतें पढ़ते रहना होता है.

इबादत करने ले लिए बच्चे को इहराम बांधकर तैयारी करते हुए. (Photo : Reuters)
2. काबा का तवाफ़
इहराम के बाद काबा पहुंचना होता है. यहां नमाज़ पढ़नी होती है. और फिर काबा का तवाफ़ (परिक्रमा) करना होता है. काबा सारे मुसलमानों की एकता का प्रतीक है. भले है दुनियाभर में शिया-सुन्नी और बरेलवी-देवबंदी के झगड़े हो, लेकिन जब बात काबा की हो तो सब एक हैं. काबा ही वो इमारत है, जिसकी तरफ रुख करके दुनियाभर के मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं.
हर साल इंडिया से एक लाख मुसलमान हज करने मक्का जाते हैं. और काबा का तवाफ़ करते हैं.
3. सफा और मरवा
ये दो पहाड़ियों के नाम हैं, जिनके बीच चक्कर लगाने होते हैं. और दुआएं पढ़नी होती हैं. इन दोनों पहाड़ियों के बीच सात चक्कर लगाने होते हैं. ये वो जगह है जहां हज़रत इब्राहीम की बीवी अपने बेटे इस्माइल के लिए पानी की तलाश में गई थीं. मक्का से करीब 5 किलोमीटर दूरी पर मीना नाम की जगह है. जहां सारे हाजी जमा होते हैं. और शाम तक नमाज़ें पढ़ते हैं. अगले दिन अराफात नाम की जगह पर पहुंचते हैं और एक बहुत बड़े मैदान में खड़े होकर अल्लाह से दुआ मांगते हैं.
ऐसी ही पहाड़ी होती है. (photo: AP)
5. शैतान को पत्थर मारना
सारे हाजी मीना में लौटते हैं और वहां शैतान को पत्थर मारते हैं. शैतान को दर्शाने के लिए यहां तीन खंभे बने हैं. जिन पर हाजी सात कंकड़ मारते हैं. अरबी में इसे रमीजमारात भी कहा जाता है. कहा जाता है कि यह वह जगह है, जहां शैतान ने हजरत इब्राहीम को बहकाने की कोशिश की. उसने कहा कि हजरत इब्राहीमअल्लाह का आदेश न मानें. बाद में इन पत्थरों या कंकड़ों को फिर से जमा करके रीसाइकल किया जाता है.
मीना शहर में वो जगह जहां हज करने के बाद कंकड़ मारे जाते हैं. source Reuters
6. जानवर की कुर्बानी
शैतान को पत्थर मारने के बाद नंबर आता है जानवर की कुर्बानी करने का. जो आमतौर पर भेड़ या बकरा होता है. ऊंट की भी कुर्बानी की जाती है. कहा जाता है कि ऐसा अल्लाह की राह में अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने की हजरत इब्राहीम की कुर्बानी की याद में किया जाता है. पहले हाजी खुद ही पशु खरीदकर कुर्बानी कराया करते थे.
अब हाजियों को बैंक का एक टोकन खरीदना होता है, जिसका मतलब है कि उतने पैसे से जानवर खरीद कर उनकी ओर से कुर्बानी दी जाएगी और मीट गरीबों में बांट दिया जाएगा.
7. सिर के बाल मुंडवाना या कतरवाना
सफा और मरवा के बाद सिर का बालों का कटवाना होता है. मर्दों को पूरे सर के बाल छोटे कराने होते हैं. जबकि औरतें थोड़े से बाल कटवाती हैं. और ऐसा करना ज़रूरी होता है, नहीं तो हज या उमराह कम्पलीट नहीं होता. इसके बाद एक बार और काबा का तवाफ (परिक्रमा) करके हज पूरा हो जाता है.
सिर मुंडवाकर यात्रा पूरी करते लोग. (Photo: Reuters)
क्यों दी जाती है जानवरों की कुर्बानी?
इस्लामिक मान्यताओं की माने तो दुनिया में 1 लाख 24 हजार पैगंबर (खुदा के संदेशवाहक) आए. इन्हीं में से एक थे पैगंबर हज़रत इब्राहीम. ये मुसलमानों के नबी हैं, जिनको अल्लाह ने अपना दूत बनाकर दुनिया की रहनुमाई के लिए भेजा. इनके बारे में एक किस्सा है. बेटे की क़ुर्बानी का किस्सा.इस्लाम के जानकारों का कहना है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहीम को ख़्वाब में अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया. उस वक़्त हजरत इब्राहीम को 80 साल की उम्र में औलाद पैदा हुई थी. ऐसे में उनके लिए सबसे प्यारे उनके बेटे हजरत ईस्माइल ही थे. इस कुर्बानी का ज़िक्र कुरान में भी है.
इब्राहीम ने अपने बेटे ईस्माइल को ख़्वाब के बारे में बताया, कहा, 'ऐ मेरे बेटे मैं ख्वाब में तुम्हे कुर्बान करते हुए देखता हूं तो तुम बताओ कि इस बारे में तुम्हारी क्या मर्ज़ी है?' ईस्माइल ने जवाब दिया, 'अब्बू जान आप को जो हुक्म दिया जा रहा है. उसे ज़रूर पूरा करिए. अगर अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वालों में पाएंगे.' ये बातचीत कुरान में सूरेह साफ्फात में है.कहा जाता है कि इस कुर्बानी के ज़रिए अल्लाह हज़रत इब्राहीम के सब्र, वफादारी और त्याग को आज़माना चाहता था. क्योंकि एक बाप के लिए अपने बच्चे की गर्दन पर छूरी चलाना खुद को मार डालने से कहीं ज़्यादा मुश्किल काम है.
इब्राहीम घर से इस्माइल को साथ लेकर चले. एक रस्सी, आंखों पर बांधने के लिए पट्टी ली. और एक छुरी ली. एक मैदान में पहुंचे. अपनी आंखों पर पट्टी बांधी. बेटे की गर्दन पर छुरी चलाना चाहते थे. तभी अल्लाह का हुक्म एक फ़रिश्ते (एंजल) को हुआ कि जाओ और जाकर ईस्माइल की जगह दुंबा (भेड़ की एक नस्ल का) पेश कर दो. इब्राहीम ने छुरी चलाई. ईस्माइल बच गए और दुंबा ज़िबहा हो गया. तब से ही ये बकरे की कुर्बानी की रस्म मुसलमानों में चली आ रही है. हालांकि ये कुर्बानी की रस्म बहुत पहले से बताई जाती है लेकिन मुसलमानों में बकरीद पर जो कुर्बानी की रस्म शुरू मानी जाती है उसके पीछे इब्राहीम की कुर्बानी का ही किस्सा है.

कुर्बानी के लिए लाया गया ऊंट. (Photo : Reuters)
कुछ लोग बकरीद पर कटने वाले बकरों को गलत बताते हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि अल्लाह को खुश करने के लिए बकरे क्यों काटे जाएं और अल्ल्लाह कब से बकरे कटने से खुश होने लगा. ऐसा मानने वाले मुसलमानों की तादाद न के बराबर है. जबकि ज्यादतर मुसलमान इसको अल्लाह की रजामंदी के लिए किया गया काम समझते हैं.
ऐसा क्या हुआ था जो हज में 'शैतान' को पत्थर मारे जाते हैं?
बात उसी दौरान की है जब हज़रत इब्रहीम अपने बेटे ईस्माइल को कुर्बान करने के लिए लेकर जा रहे थे. तो रास्ते में उन्हें एक शख्स मिला जिसे इस्लाम में शैतान कहा जाता है. ये शैतान जहां मिला था वो जगह वही बताई जाती है जहां हज के दौरान तीन खंभों को पत्थर मारे जाते हैं. शैतान ने हज़रत इब्राहीम से कहा कि वह इस उम्र में क्यों अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं. बुढ़ापे में वो तुम्हारा सहारा होगा और उसे ही मारे दे रहे हैं. इसके मरने के बाद कौन उनकी देखभाल करेगा.
शैतान को पत्थर मारते लोग. (Photo : Reuters)
हज़रत इब्राहीम ये बात सुनकर सोच में पड़ गए. इससे पहले उनके मन में कुर्बानी न करने का ख्याल आता उन्होंने कहा कि दूर हो जा मेरी नज़रों से तू शैतान है. जो अल्लाह के काम में रुकावट बन रहा है. बताया जाता है कि शैतान ने उनके बेटे ईस्माइल को भी बहकाने की कोशिश की. लेकिन उन्होंने भी उसे झिड़क दिया. इसी बहकाने की वजह से मुसलमान आज भी हज के दौरान शैतान को पत्थर मारते हैं. मुसलामानों का मानना है कि उसने नबी को अल्लाह की मर्ज़ी के काम में रुकावट पैदा की थी.
लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि जब इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है. तो फिर तीन खंभे शैतान कैसे हो सकते हैं. माना किसी ने बहकाया होगा. लेकिन ये खंभे तो शैतान नहीं है फिर क्यों पत्थर मारे जाते हैं. और जब पत्थर भगवान नहीं हो सकता तो फिर पत्थर शैतान कैसे हो सकता है? इस पर एक लंबी बहस है. जिसे यहां क्लिक करके पढ़ा जा सकता है. ( 'जब पत्थर पूजना गलत है, तो शैतान को पत्थर मारना कौन सी समझदारी है'
)
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