" आज मेरा नवरात्रि का व्रत है. इसलिए आज कुछ भी नहीं खा सकूंगा."आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने का मौका मिल गया. युवक से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा गया तो पता लगा कि वो फिलहाल वकालत का छात्र है. एबीएसएस के कार्यकर्ताओं ने लगभग लताड़ने के अंदाज में युवक को व्रत-उपवास, पूजा-पाठ की निरर्थकता को समझाना शुरू किया. इस भाषण के बाद युवक ने लड्डू खा कर अपना व्रत तोड़ा. गांव का नाम था छुटमलपुर और युवक का नाम था चंद्रशेखर आजाद. यह उसके अम्बेडकरी आंदोलन में आने की शुरुवात थी.

छुटमलपुर की हरिजन कॉलोनी की गली नंबर दो में मास्टर गोवर्धनदास का घर है. उन्होंने अपने दो बेटों का नाम क्रांतिकारी आंदोलन के दो नायकों पर रखा. चंद्रशेखर और भगत सिंह. चंद्रशेखर ने गांव के ही एएचसी इंटरकॉलेज से अपनी पढ़ाई की. यहां पर ठाकुरों का दबदबा था. हालात यह थे कि एक हैंडपंप को छोड़ कर दलित छात्र दूसरे हैंडपंप पर पानी नहीं पी सकते थे. वक्त गुजरा. चंद्रशेखर बड़ा हो गया था और चीजें जानने-बोलने लगा था. पर कॉलेज के हालात में तब्दीली नहीं आई.
2015 में जूनियर छात्र परेशान हो कर चंद्रशेखर के पास पहुंचे.
यह तय हुआ कि अब दबा नहीं जाएगा. एकजुट होकर प्रतिरोध करना ही एक मात्र विकल्प है. आज एएचसी कॉलेज में दलित छात्र आत्मसम्मान के साथ शिक्षा ले रहे हैं. इस सफलता ने नए संगठन को जन्म दिया. नाम था भीम आर्मी. चलचित्र अभियान को दिए इंटरव्यू में चंद्रशेखर बताते हैं-
"भीम आर्मी जब बनी तो वो मुद्दा एक स्कूल से शुरू हुआ था. एएचसी इंटर कॉलेज में अगर दलित बच्चे पानी पहले पी लेते थे तो उन्हें पीटा जाता था. अगर सीट पर आकर बैठ जाते थे, तो उन्हें पीटा जाता था. अगर जनरल कास्ट के बच्चों की सीट साफ़ नहीं करते थे, तो उन्हें पीटा जाता था. अगर वो पढ़ते थे तो उन्हें पीटा जाता था कि वो पढ़ते क्यों है? जब ये मुद्दे हमारे सामने आए तो हमें लगा कि एक संगठन होना चाहिए."वैसे सहारनपुर दलित आंदोलन के लिए मजबूत जमीन रही है. यहां पर बामसेफ के दौर से सक्रिय कार्यकर्ता आज भी मिल जाएंगे. यूपी में बसपा सत्ता में आई. पर सत्ता में आने के बाद बसपा के तेवर धीरे-धीरे कुंद होने लगे. इस बीच जातिगत शोषण बदस्तूर जारी रहा. इस शोषण के खिलाफ प्रतिरोध की आवाज निर्वात में कहीं खो गई. भीम आर्मी ने इस निर्वात को भरने का काम किया है. महज दो सालों में यह संगठन मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड,राजस्थान,बिहार जैसे कई राज्यों में पहुंच बनाने में कामयाब रहा. हालांकि जमीन पर अभी इसकी पकड़ बहुत मजबूत नहीं है.
एक घड़ी थी, जो कि दाईं तरफ टिक गई थी
कहानी के सिरे को दुबारा से पकड़ते हैं. देहरादून रोड पर पर आप जैसे ही मुख्य शहर से थोड़ा सा आगे बढ़ते हैं आपको एक सफेद रंग का बोर्ड दिखेगा. इसका रंग काफी हद तक फीका पड़ चुका है. इस बोर्ड पर एक इबारत दर्ज है, जो कि बहुत प्रयास कर पढ़ने में आती है , 'संत गुरु रविदास हॉस्टल'. इस बोर्ड के ठीक बगल में यातायात पुलिस का भी बोर्ड लगा हुआ है. इस बोर्ड पर लिखा गया है, 'सावधान, दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र.' हालांकि इन दोनों बोर्ड में आपस में कोई सीधा संबंध नहीं है. लेकिन बगल में खड़ी पीएसी की गाड़ी इस दोनों इबारतों को जोड़ कर पढ़ने पर मजबूर कर देती है. होस्टल के भीतर घुसते ही आपको पीएसी के कुछ जवान 'ड्यूटी' करते देखे जा सकते हैं.
रविदास हॉस्टल
वार्डन रूम में अंबेडकर की चार अलग-अलग तस्वीरें लगी हुई हैं. इसके अलावा महात्मा फुले और भगत सिंह की एक-एक तस्वीर दीवार पर सजी हुई है. कमरे में बाईं तरफ हाथ से लिखा हुआ एक नोटिस चस्पां है. इसे अखबारों को केवल पढ़ने के लिए काम लिया जाए. कमरे में दरवाजे के ठीक सामने वाली दीवार पर एक पीले रंग की गोल घड़ी है. कायदे से सेंटर एलाइन्ड होना चाहिए था लेकिन अजीब तरीके से यह दाईं तरफ टिक गई है. इस समय घड़ी में 9 बज कर 13 मिनट हुए हैं.
9 मई को ठीक यही वक़्त था जब मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बिजनौर और आस-पास के गांवों से आए दलित प्रदर्शन के लिए इस हॉस्टल में इकठ्ठा हो रहे थे. यहां लोग एक रात पहले से ही जुटने लगे थे. कुछ लोग सीधे ही गांधी पार्क में इकठ्ठा होने लगे थे. करीब दस बजे भीम आर्मी के बैनर तले धरना शुरू हुआ. इस प्रदर्शन की मुख्य मांग थी शब्बीरपुर के पीड़ितों को उचित मुआवजा मिले. दूसरा, इस मामले की सीबीआई जांच करवाई जाए. प्रदर्शन शुरू होने के साथ मौके पर मौजूद पुलिस के साथ कहासुनी शुरू हो गई. पुलिस को बिना इजाजत हो रहे धरने से आपत्ति थी. जल्द ही इस धरने को दंगे का रुख अख्तियार कर लेना था.
उसने 'जय भीम' बोल कर अपनी जान बचाई
पुलिस से झड़प के बाद प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए. 11 बज कर 15 मिनट पर घंटाघर, गोविंद नगर और चिलकाना रोड पर पथराव शुरू हो गया. सबसे पहली आगजनी की घटना बेहट रोड पर हुई. यहां पौने बारह बजे दो बाइक आग के हवाले कर दी गईं. 12 बजे मल्हीपुर रोड पर भी पथराव के साथ आगजनी शुरू हो गई. यहां भी दो बाइक फूंक दी गईं. इसी जगह एसडीएम एसके दुबे और नकुड़ थाने के सीओ वीसी गौतम को प्रदर्शनकारियों ने घेर कर पीटना शुरू कर दिया. चश्मदीद बताते हैं कि इन अधिकारियों ने 'जय भीम' कह कर अपनी जान बचाई. एसडीएम के गनर संजीव ने जब खुद के दलित होने का हवाला दिया तब जा कर उपद्रवी शांत हुए.
सहारनपुर में भीम आर्मी का प्रदर्शन
इधर चिलकाना रोड पर भी प्रदर्शनकारियों ने जाम लगा रखा था. यहां कूड़े के ढेर को आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस यहां जाम हटवा ही रही थी कि 50 के करीब युवक बेहट रोड पर नजीरपुरा के पास पहुंच गए. यह दोपहर के 12 बजे के आस-पास की बात है. यहां उन्होंने रोड जाम कर दी. इस समय बेहट के पुलिस कप्तान भी यहीं मौजूद थे. वो प्रदर्शनकारियों को जाम खोलने के लिए समझा रहे थे. इस बीच शाकुम्भरी माता के मंदिर से सहारनपुर जा रही एक निजी बस आती दिखाई पड़ी. इधर ड्राइवर मोहम्मद इसरार भी स्थिति को भांप चुके थे. उन्होंने जाम से थोड़ी दूर पहले ही अपनी बस को रोक गया. इस सवारी बस में करीब 45 लोग सवार थे. जैसे ही बस रुकी, उपद्रवकारी इस बस की तरफ दौड़ पड़े. 12-15 युवक बस में चढ़ गए. उन्होंने सबसे पहले ड्राइवर और बाद में सवारी को पीटना शुरू कर दिया. इधर बाहर खड़े युवकों ने पेट्रोल छिड़क कर बस में आग लगा दी. मुसाफिरों को कूद कर अपनी जान बचानी पड़ी.
जब बच्चे स्कूल से घर नहीं लौटना चाह रहे थे
जल्द ही यह बवाल ने सहारनपुर के आस-पास के हिस्सों को अपनी चपेट में लिया. 1 बजे के करीब खबर आई कि रामपुर मनिहारण में सीओ यतींद्र सिंह घिर गए हैं. उपद्रवियों ने उन्हें रेलवे ट्रेक के पास घेर कर पीटना शुरू कर दिया. सहारनपुर से सटी इस तहसील में भी दंगों जैसे हालात बन गए. बवाल की खबरें सुन कर आस-पास के दलित समुदाय के लोग लामबंद होना शुरू हो गए. जगह-जगह हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए. शब्बीरपुर से करीब चार किलोमीटर दूर एक गांव है, अंबहेटा चांद. यहां भी करीब 12 बजे से प्रदर्शन की शुरुआत हो गयी. दोपहर करीब ढाई बजे एक ट्रैक्टर और ट्रॉली में आग लगा दी गई.
आगजनी का शिकार कार
इधर शहर के भीतर भी स्थिति बेकाबू हो गई थी. मल्हीपुर रोड पर बनी रामपुर पुलिस चौकी प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आ गई. यह दोपहर 1.40 की बात है. इस चौकी को फूंक डाला गया. इसके अलावा पास ही बने महाराणा प्रताप भवन की दीवार भी तोड़ डाली गई. यह बवाल शाम पांच बजे तक बदस्तूर जारी रहा. शहर के सभी बाजार बंद हो गए. बच्चों को स्कूल में ही रोक लिया गया. सड़कों पर पुलिस और उपद्रवियों के सिवाए कोई नहीं था. इस दौरान भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर एसएसपी के साथ देखे गए. वो पुलिस के साथ मिल कर जगह-जगह पर शांति कायम करवा रहे थे.
शाम होते-होते 30 से ज्यादा वाहन फूंके जा चुके थे. 24 लोग घायल थे, जिसमें पुलिस वाले भी शामिल थे. आठ अलग-अलग मुकदमों में दो दर्जन से ज्यादा लोग गिरफ्तार कर लिए गए. सड़कों पर ईंट और पत्थर बिखरे पड़े थे. सड़क के किनारे आगजनी का शिकार हुए वाहन खड़े थे. तीन अधिकारियों और पांच पत्रकारों को पीटा जा चुका था. घटनास्थल से कारतूस के खाली खोखे बरामद किए गए. प्रशासन और पुलिस आमने-सामने थे. डीएम एनपी सिंह का कहना था कि उन्होंने हालात से निपटने के लिए पुलिस को फायरिंग के आदेश दे दिए थे. पुलिस वाले पूरे दिन इसलिए पिटते रहे क्योंकि फायरिंग के आदेश नहीं थे. इस बीच एसएसपी सुभाष दुबे का बयान था. "डीएम साहब पूरे दिन मेरे साथ ही थे."
ये नए तेवर की दलित राजनीति है
इस घटना के 12 दिन बाद दिल्ली के जंतर-मंतर पर भीम आर्मी का प्रदर्शन हुआ. इस प्रदर्शन की मुख्य मांग थी शब्बीरपुर के पीड़ितों को न्याय मिले. लगभग 10 से 12 हजार लोग इस प्रदर्शन में शामिल थे. जहां ये प्रदर्शन चल रहा था उसके ठीक बगल में एक तम्बू लगा हुआ था. भगाणा में दलितों के खिलाफ हुई हिंसा को लेकर 2015 से मैराथन धरना चल रहा है. मंच पर अचानक से चंद्रशेखर का आना सरप्राइज था. वो सहारनपुर पुलिस के लिए कई मामलों में वांछित थे. उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा-मैं जानना चाहता हूं, अगर संवैधानिक दायरे में बड़ा आंदोलन करना पड़ा तो कितने लोग अपना काम छोड़ कर इसमें शामिल होंगे? जो एक महीने के लिए आ सकते हैं, वो हाथ खड़ा करें. जो दो महीने के लिए आ सकते हैं, हाथ खड़ा करें. जो साल भर के लिए और पूरी जिंदगी के लिए आना चाहते हैं, हाथ खड़ा करें."सभा में चंद्रशेखर के किसी भी सवाल पर एक भी हाथ नीचे नहीं दिखाई देता. इसके बाद वो 'सरफरोशी की तमन्ना' की चार लाइन बड़े तेवर के साथ बोलते हैं. पूरी सभा उनके साथ बोलने लग जाती है. यह दलित राजनीति का बदला हुआ तेवर है. इसकी भाषा फिलहाल की दलित राजनीति के व्याकरण से अलग है.

जंतर मंतर पर भीम आर्मी का प्रदर्शन
जब हम सहारनपुर पहुंचे तो यह प्रदर्शन किंवदंती बन चुका था. एक से ज्यादा दलित कार्यकर्ता इस प्रदर्शन में एक लाख से ज्यादा लोगों के जुटने की बात कर रहे थे. ठीक वैसे ही जैसे 5 मई को शब्बीरपुर की घटना के दौरान मरे युवक सुमित की मौत के बारे में किंवदंतियां चल पड़ी हैं.
कॉलेज में दूसरे साल की पढ़ाई कर रहे रजत के पास इस घटना का अलग ही ब्यौरा मौजूद है. वो बताते हैं कि सुमित ने शब्बीरपुर के रविदास मंदिर में घुसी उपद्रवियों की भीड़ में शामिल था. उसने मंदिर में घुस कर मूर्ति को जमीन पर पटक दिया. रविदास मंदिर में फर्श की टूटी हुई टाइल रजत के अब तक के बयान की तस्दीक करती है. वो आगे बताते है कि इसके बाद सुमित ने मूर्ति को 'अपवित्र' कर दिया. जैसे ही वो मंदिर से बाहर निकला, वैसे ही इस उसे चक्कर आने शुरू हुए और वो वहीं गिर गया. इसके बाद उसे हॉस्पिटल ले जाया गया. जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.
रजत की कहानी सच्चाई के आस-पास भी नहीं है. सुमित के साथ क्या हुआ, यह जांच का विषय है. हालांकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह बात साफ़ हो चुकी है कि उनकी मौत दम घुटने की वजह से हुई है. उधर ठाकुरों का यह मानना है कि सुमित को गोली लगी है और पुलिस यह बात छुपा रही है. यहां यह समझने की जरूरत है कि तनाव की स्थितियां अफवाहों को जन्म देती हैं और अफवाहें तनाव में इजाफा करने का काम करती हैं.
अगली कड़ी में आप पढ़ेंगे मायावती के शब्बीरपुर दौरे और उसके बाद हुई हिंसा की वारदातों के बारे में...
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