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100 साल के RSS ने आज तक रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं कराया? कानून क्या कहता है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रजिस्टर्ड संगठन नहीं है. इसे लेकर कांग्रेस ने सवाल उठाया है और कहा है कि RSS को रजिस्टर्ड होना चाहिए. लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफतौर पर कहा कि इसकी जरूरत नहीं है.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रजिस्ट्रेशन को लेकर विवाद (india today)

‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व्यक्तियों का समूह है. इसे रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं है. कई ऐसी चीजें हैं जो रजिस्टर्ड नहीं है. यहां तक कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है.’ कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे के सवाल पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ये स्पष्टीकरण 9 नवंबर 2025 को दिया है. उनका कहना है कि आरएसएस को 3 बार सरकार ने बैन किया है. इस तरह से सरकार ने खुद संगठन को मान्यता दी है. अगर हम होते नहीं तो किसको बैन किया जाता? भागवत ने ये भी कहा कि संघ की स्थापना साल 1925 में हुई है. तब देश में अंग्रेजों का शासन था. तब क्या हम अंग्रेजों के पास जाकर कहते कि ऐसे संगठन का रजिस्ट्रेशन करना है, जो उस शासन के खिलाफ ही काम करेगा. 

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भागवत के बयान के बाद बहस छिड़ गई है कि इतना बड़ा संगठन जो अपने 100 साल पूरे कर चुका है, उसे देश में रजिस्टर्ड होने की जरूरत है या नहीं? क्या देश में ऐसे कानून हैं, जो कुछ संगठनों को रजिस्ट्रेशन से छूट देते हैं? 

क्या कहता है कानून?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(c) में किसी भी व्यक्ति को संघ, संस्था या सहकारी समिति बनाने का अधिकार मिला है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील मोहम्मद कुमैल हैदर बताते हैं कि अगर कोई संगठन केवल स्वैच्छिक (Voluntary) व्यक्तियों का समूह है और किसी विशेष कानून का उल्लंघन नहीं करता तो वह रजिस्ट्रेशन के बिना भी वैध रूप से काम कर सकता है. ऐसे संगठन को Unincorporated Association कहा जाता है.

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Unincorporated Association या हिंदी में जिसे अनिगमित संगठन कहते हैं, ऐसा संगठन है जो तब अस्तित्व में आता है, जब दो या दो से ज्यादा लोग किसी खास मकसद को लेकर एक साथ आते हैं लेकिन कंपनी जैसी किसी औपचारिक संरचना का उपयोग नहीं करने का फैसला लेते हैं. मोहन भागवत ने अपने बयान में आरएसएस को 'बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स' बताया है, जिसका मतलब भी यही होता है. ऐसे संगठनों में सदस्यता लेने की कोई खास प्रक्रिया नहीं होती है. संघ की वेबसाइट पर सदस्यता के सवाल पर कहा भी गया है

संघ में सदस्यता की कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं है. कोई भी व्यक्ति नजदीक की संघ शाखा में जाकर संघ में सम्मिलित हो सकता है. संघ सदस्य को स्वयंसेवक कहते है. उसके लिए कोई भी शुल्क या पंजीकरण प्रक्रिया नहीं है.

गैर-निगमित या Unincorporated Association होने का एक फायदा ये होता है कि इसमें कंपनी की तुलना में संचालन की ज्यादा आजादी होती है. 

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क्यों नहीं कराया रजिस्ट्रेशन?

भाजपा और आरएसएस से जुड़े मामलों को लंबे समय से कवर करने वाले पत्रकार नवनीत मिश्रा कहते हैं कि RSS का रजिस्ट्रेशन न किए जाने के पीछे जो कारण है और भागवत के बयान की ‘बिटवीन द लाइन्स’ भी है कि रजिस्ट्रेशन न होने से आप सरकारी नियम-कायदों से बच जाते हैं. आरएसएस को किसी तरह की सरकारी सहायता नहीं चाहिए. न ही विदेशी चंदा. ऐेसे में उसके लिए रजिस्ट्रेशन कराने की अनिवार्यता खत्म हो जाती है. 

साल 1925 में जब समय आरएसएस बना था, उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था. भागवत का कहना है कि ब्रिटिश के अंडर RSS को रजिस्ट्रेशन कराना नहीं था. इसके बाद जब देश आजाद हुआ तो रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं रही क्योंकि भारतीय संविधान आपको इसकी इजाजत देता है. भागवत भी यही बात दोहराते हैं कि आरएसएस कोई असंवैधानिक संगठन नहीं है. वह संविधान के दायरे में रहकर ही काम करता है.

नवनीत मिश्रा कहते हैं कि किसी सामाजिक संस्थान को तब तक पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है जब तक उसे किसी तरह की कर छूट या सरकारी फंडिंग की जरूरत न हो. अगर आप सराकरी स्तर से लाभ चाहते हैं तो आपको रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा. लेकिन आरएसएस स्वयंसेवा के स्तर पर काम करता है. उसे न तो किसी तरह की टैक्स छूट चाहिए और न ही वह सरकार से कोई मदद लेती है. इसलिए उसे कभी भी रजिस्ट्रेशन कराने की कोई जरूरत नहीं रही. वह आगे कहते हैं, 

अगर आरएसएस को सीधे तौर पर फंडिंग की जरूरत होती. जैसे अगर इन्हें कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के तहत फंडिंग चाहिए होती तो इन्हें रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता. अगर विदेशी चंदा चाहिए होता तो एफसीआरए का लाइसेंस लेने के लिए भी पंजीकरण जरूरी होता.

नवनीत मिश्रा के मुताबिक, रजिस्ट्रेशन कराना तब अनिवार्य है जब आपको एक सोसाइटी के नॉर्म्स के तहत काम करना होता है. आपको चंदा भी लेना है तो वह आयकर अधिनियम के तहत लेंगे. इसके लिए आपके पास अपना खाता होना चाहिए. लेकिन आरएसएस इन दबावों से मुक्त है. उसके पास अपना कोई बैंक खाता भी नहीं है.

नवनीत कहते हैं कि रजिस्ट्रेशन न कराने का लाभ आरएसएस को ये हुआ कि आज चाहे इनके विरोधियों की सरकार हो. तब भी न तो इन्हें लाइसेंस निलंबन की धमकी मिलती है और न उनके काम करने के तरीके को सरकार प्रभावित कर सकती है. यानी सरकार का कोई दबाव RSS पर लागू नहीं होता. लेकिन जैसे ही आप रजिस्ट्रेशन कराते हैं. आप सरकार के ‘नियम-कानून के अधीन’ आ जाते हैं. 

रजिस्ट्रेशन न कराने पर क्या?

हालांकि, रजिस्ट्रेशन न कराने पर कई तरह की कानूनी सीमाएं संगठनों के रास्ते में खड़ी होती हैं. कुमैर हैदर बताते हैं कि जो रजिस्ट्रेशन नहीं कराते,

ऐसे संगठन की कोई कानूनी पहचान नहीं होती.
– वह अपने नाम से संपत्ति नहीं खरीद सकता.
– वह किसी पर मुकदमा नहीं कर सकता. न ही उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है.
– बैंक खाता खोलना, विदेशी फंड लेना (FCRA के तहत) या सरकारी लाभ लेना कठिन होता है.

ऐसे संगठनों के लिए कुमैल हैदर एक बात और साफतौर पर कहते हैं कि जब तक वह किसी कानून का उल्लंघन नहीं करते. तब तक उनका अस्तित्व कानूनी रूप से वैध होता है. 

नवनीत मिश्रा भी कहते हैं कि व्यक्तिगत स्तर पर अनैतिक कार्य कोई भी करेगा तो उस पर कानूनी कार्रवाई होगी ही. ऐसा नहीं है कि अगर रजिस्ट्रेशन नहीं है तो RSS को किसी अनैतिक काम पर कार्रवाई से छूट मिल जाएगी. यही वजह है कि संगठन न होते हुए भी आरएसएस पर तीन बार प्रतिबंध लगाए गए. 

  • पहला प्रतिबंध महात्मा गांधी की हत्या के बाद 1948 में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने के आरोप में लगाया गया था. जांच के बाद कोई ठोस सबूत न मिलने पर प्रतिबंध हटा लिया गया.
  • दूसरा प्रतिबंध साल 1975 में आपातकाल के दौरान लगाया गया था. आपातकाल की समाप्ति के बाद बैन हटा लिया गया.
  • तीसरा प्रतिबंध पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने लगाया, जब संघ पर अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ाने का आरोप लगा था. 

मोहन भागवत कहते हैं कि सरकार की ओर से लगाए गए इन प्रतिबंधों ने ही संघ को मान्यता दे दी है. 

फंडिंग पर सवाल

फंडिंग को लेकर कांग्रेस नेता हरिप्रसाद का आरोप है कि रजिस्ट्रेशन न होने की वजह से RSS के फंडिंग की जांच नहीं हो पाती है. 100 सालों में आरएसएस ने एकत्र किए गए धन का कोई हिसाब नहीं दिया है. उन्होंने ‘आरएसएस पर अवैध तरीके से धन जुटाकर 700 करोड़ की बिल्डिंग बनाने का भी आरोप लगाया.’ 

आरएसएस की फंडिंग पर नवनीत मिश्रा बताते हैं कि आरएसएस में ‘गुरु दक्षिणा’ होती है. साल भर में एक बार गुरु पूर्णिमा के दिन ये कार्यक्रम होता है. आरएसएस का इस पर कहना है कि हम किसी बाहर के व्यक्ति से पैसा नहीं लेते. हमारे जो स्वयंसेवक होते हैं, साल भर में एक बार जो 'गुरु दक्षिणा' देते हैं, उसी से साल भर का इनका कार्यक्रम होता है. इसके अलावा वह स्थानीय पूर्णकालिक स्वयंसेवकों आदि की मदद भी लेकर अपने कार्यक्रम संचालित करते हैं.

नवनीत बताते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भले ही रजिस्टर्ड संगठन नहीं है लेकिन इससे जुड़े विद्या भारती, सेवा भारती जैसी संस्थाएं हैं, जो बाकायदा रजिस्टर्ड हैं. वो सरकार से वित्तीय सहायता भी लेती हैं. 

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