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हरिवंश राय बच्चन की वो कविताएं, जो उन्होंने कभी लिखी ही नहीं

बच्चन वो कवि हैं, जो इंटरनेट पर कविता के फर्जी प्रेमियों के सबसे ज्यादा शिकार बने हैं.

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फोटो - thelallantop
हरिवंश राय बच्चन को हमने स्कूल के टाइम में ऐसे पढ़ा था कि वो 'हालावाद' के प्रवर्तक हैं. उनकी सबसे फेमस कृति 'मधुशाला' है. जिसने कुछ न भी पढ़ा हो तो उसके अंश, देखे, पढ़े, सुने ही होंगे. जाने कितने तो उसकी पैरोडी बना-बना तर गए. वो अमिताभ बच्चन के पापा भी हैं. राज्यसभा के सदस्य भी रहे थे. 18 जनवरी 2003 को हरिवंशराय बच्चन ने ये दुनिया छोड़ी. उसके पहले उन्होंने बहुत कुछ किया, जो उन्हें बहुत, बहुत बड़ा कवि बना दे. लेकिन आज हम बात उसकी नहीं करेंगे जो उन्होंने किया. बात उसकी जो उन्होंने नहीं किया. ऐसी बहुत सी कविताएं और टू लाइनर्स हैं जो हरिवंश राय बच्चन के नाम पर कोई भी छाप देता है. व्हाट्सएप पर हर दूसरे दिन एक लाइन दिखती है. कवि हरिवंश राय बच्चन ने क्या खूब लिखा है. या हरिवंश राय बच्चन की दोस्ती पर एक मर्मस्पर्शी कविता  जबकि उन्होंने वो कभी लिखा ही नहीं होता. आपको लगता है कि उनके पास इतना वक़्त रहा होगा कि वो दोस्ती पर ऐसी कविताएं लिखेंगे? एक नमूना देखिए. harivansh rai bachchan 1 एक ये देखिए.  harivansh rai bachchan 2 इसी में नीचे एक चीज लिखी है. सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब, बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता. मतलब ये अद्भुत है. हरिवंश राय बच्चन की कविता(?) के बीच ग़ालिब का शेर. और शेर भी वो वाला जो जीते जी कभी ग़ालिब ने खुद नहीं लिखा था.     फ्रेंडशिप दिवस सालाना त्यौहार है. हर साल आता है. आता है और हरिवंश जी के नाम पर मुसीबत आ जाती है. उनके नाम से दोस्ती वाली ये कविता (?) चेंप दी जाती है. हालावाद का प्रवर्तक क्या ये लिखेगा?harivansh rai bachchan 3   अब दोस्ती की एक और कविता (?) , जो हरिवंश राय बच्चन ने कभी नहीं लिखी. वो इतना बुरा नहीं लिख सकते, क्योंकि मैं बुरा लिखता हूं और मैं इतना बुरा नहीं लिख सकता.   harivansh rai bachchan 4 मानो लोगों ने तय कर रखा है कि हर दोस्त वाली ऐरी-गैरी कविता उन्हें हरिवंश जी के नाम से ही टिकानी है. एक ये खुंदक भी हो सकती है कि लोगों की घटिया कविताएं कोई पढ़ता तो है नहीं, हरिवंश राय जी का नाम लगा दो तो लोग पटापट शेयर करने लगते हैं, कविता वायरल हो जाती है. harivansh rai bachchan 5 अब ये वाली झेलिए. और खोजकर बताइए किस कविता में हरिवंश राय बच्चन ने ये लाइनें लिखीं. और ये भी खोजिए कि अंत में स्माइली भी उन्होंने ही लगाईं थी क्या? 13241164_1044574432275121_1251684656714330051_n ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ छोटे लेवल पर हुई गफलत हो. एक कविता तो ऐसी है, जो बड़े लेवल पर उनकी समझ ली गई. लेकिन उनकी थी नहीं. बाद में खुद अमिताभ बच्चन को अपडेट कर ये लिखना पड़ गया कि ये हरिवंश जी की कविता नहीं है. कविता बड़ी फेमस है, 'लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.' दरअसल ये कविता कवि सोहनलाल द्विवेदी जी की है. जो गलती से हरिवंश राय बच्चन की रचना मान ली जाती है. तो ये तो हाल है. हम कविता के रसिकों से बस एक बात कहेंगे. पढ़ने का कोई विकल्प नहीं होता. खूब पढ़िए, इंटरनेट के भरोसे क्यों रहते हैं, किताबें मंगाकर पढ़िए. किताबों में ये भसड़ नहीं होती. उन्होंने जो लिखा वही पढ़ने को मिलेगा, तब आपको पता लगेगा उनकी क्लास क्या थी . वो कैसी कविताएं लिखते थे और क्यों लीजेंड माने जाते हैं. कवियों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके नाम के आगे हर औनी-पौनी कविता लगानी बंद कर दें.
ग़ालिब हम शर्मिंदा हैं, ग़ज़ल के क़ातिल ज़िंदा हैं

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