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रवीना टंडन, जो 90 के दशक में फंतासियों का दूसरा नाम थीं

आज रवीना टंडन का जन्मदिन है. जिसने सिखाया दूसरे के लेटर्स पढ़ना बैड मैनर होता है.

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बचपन से फिल्मों के लगाव के कारण रवीना ने कॉलेज छोड़ दिया था.

26 अक्टूबर को रवीना टंडन का जन्मदिन होता है.




दूरदर्शन जब शुक्रवार-शनिवार को फिल्में दिखाता था. कलर टीवी नहीं थी तो टीवी पर कलर्ड झिल्ली चढ़ा लेते थे. फिल्में बैटरी लगाकर देखी जातीं. और दुआ की जाती कि रात कुसमय किसी अंधड़ में एंटीना न हिल जाए. हिलगे हुए एंटीनों की अपनी अलग तकनीक होती थी. शाम होते ही बूस्टर की जरूरत जाती रहती, चैनल बदलने वाले नॉब को अगर दो चैनलों के बीच कर दो तो पिच्चर क्लियर दिखने लगती थी. उस नॉब को भी हम तोड़ ही चुके थे तो ये पुनीत कार्य आमतौर पर पिलास से किया जाता.
उस जमाने में इंतजार रहता कि फिल्में अक्षय कुमार, अजय देवगन या गोविंदा की आ जाएं. उनमें एक्शन होता, हंसी आती और सुकून रहता कि अंत में ये सब ठीक कर देंगे. लेकिन हीरोइन भी तो जरूरी है. तब स्क्रीन पर अवतरित होतीं रवीना टंडन. गर्दन को कंधे पर फेंकती हुई. रवीना टंडन, अमीर बाप की वो बेटी होतीं जो आते ही लोगों को सड़क पर कार से ठोंक देती थी. तब ऐसा लगता कि पैसा अगर सिंघानिया की किसी बेटी के पास है तो ये बस वही है. रवीना टंडन हनुमान मंदिर वालों के लिए सेंट जेवियर्स की वो लड़की थी, जिसके पापा ने कस्बे में पहला ट्रिपल स्टोरी बनवाया था. और वो स्कूल भी अकेले रिक्शे में आती है.
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रवीना को बचपन से फिल्मों से लगाव था.

बाकी सारे समय हम ये देखते रहते कि विदेश से लौटी पैसे वाली बदमिजाज लड़की कैसे उस लड़के के प्रेम में पड़ जाती है. जो बेसिकली अपने पापा को तलाश रहा होता है, किसी से बदला ले रहा होता है या लड़की के बाप से अपना होटल बचा रहा होता है. रवीना टंडन वो लड़की थी जिसके पीछे अजय देवगन का पागल हो जाना जायज लगता था. और फिर वो गाना निकलता जिसने सालों से तमाम रेडियो स्टेशंस और ऑटो वालों को एकता के सूत्र में बांध रखा है.

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रवीना टंडन वो एक्ट्रेस थीं जिनने अंखियों से गोली मारना सिखाया. भारत की जनता को उनने सिखाया कि दूसरों के खत पढ़ना बैड मैनर्स होते हैं. रवीना टंडन ने अपने लेवल पर क्रांति की. बताया कि मोहब्बत एक चुटकी भर सिंदूर की मोहताज़ नहीं होती. पदार्थ की अवस्थाओं के बारे में आप कितना जानते हैं? रवीना ने बताया जो तलवारों से बच जाते हैं, वो अक्सर फूलों से कट जाते हैं.
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रवीना टंडन ने कस्बाई लड़कियों को होंठ मिसलकर 'व्हाट नॉनसेंस' और 'शट अप' कहना सिखाया. 26 अक्टूबर को जन्मदिन होता है. जब आप उन पर लिखना बंद करने को हो तो अपराधबोध होता है. तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त का जिक्र न हुआ हो तो. इस गाने की पॉलिटिक्स से मुझे हजार दिक्कतें हैं. ये पहला गाना था, जिसे गाने पर मुझे घर पर टोका गया था.
 
फिर टिप-टिप बरसा पानी रह ही जाता है. जिस रोज़ ये गाना परदे पर आया उस रोज़ दो लोग नहीं पूरी जनरेशन भीग गई थी. ये एक गाने की बात नहीं है. ये एक जनरेशन की बात नहीं है. पीली साड़ी में भीगती रवीना को देख 2 मिनट पैंतालीसवें सेकंड पर अक्षय कुमार की शक्ल पर जो शर्म और मुस्कान थी. उससे साथ दो जनरेशन गीली होती रहीं. बरसात कभी इतनी सेंसुअस नहीं रही. फिर भले वो प्रयास कैटरीना कैफ ने 'गले लग जा' में किया हो और पीली साड़ी उतनी मोहक नहीं लगी भले वो कोशिश आलिया भट्ट ने की हो.


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