26 अक्टूबर को रवीना टंडन का जन्मदिन होता है.
दूरदर्शन जब शुक्रवार-शनिवार को फिल्में दिखाता था. कलर टीवी नहीं थी तो टीवी पर कलर्ड झिल्ली चढ़ा लेते थे. फिल्में बैटरी लगाकर देखी जातीं. और दुआ की जाती कि रात कुसमय किसी अंधड़ में एंटीना न हिल जाए. हिलगे हुए एंटीनों की अपनी अलग तकनीक होती थी. शाम होते ही बूस्टर की जरूरत जाती रहती, चैनल बदलने वाले नॉब को अगर दो चैनलों के बीच कर दो तो पिच्चर क्लियर दिखने लगती थी. उस नॉब को भी हम तोड़ ही चुके थे तो ये पुनीत कार्य आमतौर पर पिलास से किया जाता.
उस जमाने में इंतजार रहता कि फिल्में अक्षय कुमार, अजय देवगन या गोविंदा की आ जाएं. उनमें एक्शन होता, हंसी आती और सुकून रहता कि अंत में ये सब ठीक कर देंगे. लेकिन हीरोइन भी तो जरूरी है. तब स्क्रीन पर अवतरित होतीं रवीना टंडन. गर्दन को कंधे पर फेंकती हुई. रवीना टंडन, अमीर बाप की वो बेटी होतीं जो आते ही लोगों को सड़क पर कार से ठोंक देती थी. तब ऐसा लगता कि पैसा अगर सिंघानिया की किसी बेटी के पास है तो ये बस वही है. रवीना टंडन हनुमान मंदिर वालों के लिए सेंट जेवियर्स की वो लड़की थी, जिसके पापा ने कस्बे में पहला ट्रिपल स्टोरी बनवाया था. और वो स्कूल भी अकेले रिक्शे में आती है.

रवीना को बचपन से फिल्मों से लगाव था.
बाकी सारे समय हम ये देखते रहते कि विदेश से लौटी पैसे वाली बदमिजाज लड़की कैसे उस लड़के के प्रेम में पड़ जाती है. जो बेसिकली अपने पापा को तलाश रहा होता है, किसी से बदला ले रहा होता है या लड़की के बाप से अपना होटल बचा रहा होता है. रवीना टंडन वो लड़की थी जिसके पीछे अजय देवगन का पागल हो जाना जायज लगता था. और फिर वो गाना निकलता जिसने सालों से तमाम रेडियो स्टेशंस और ऑटो वालों को एकता के सूत्र में बांध रखा है.