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सीताहरण की ये कहानी तुलसी और वाल्मीकि की रामायण से एकदम अलग है

क्या है तमिल में लिखी गई 'कंब रामायण' की कहानी?

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'रामायण' सीरियल में सीताहरण का दृश्य कुछ इस तरह दिखाया गया है (फोटो: यूट्यूब स्क्रीनग्रैब)
ऐसा नहीं है कि कोरोना की वजह से इस लॉकडाउन में सबकुछ गड़बड़ ही हो रहा है. कुछ चीजें अच्छी भी हो रही हैं. कई लोग 'वर्क फ्रॉम होम' कर रहे हैं. बच्चे घरों में क्रिएटिविटी दिखा रहे हैं. सोशल डिस्टेंसिंग के बीच तीन पीढ़ियां एक बार फिर से साथ बैठकर 'रामायण' सीरियल देख रही हैं. जो पीढ़ी अब तक इस सुख से वंचित रह गई थी, अब वो भी रामकथा के आनंद-सागर में डुबकी लगा रही है. राम की गाथाएं कई हैं. कथाकार भी कई हैं. कई जगह इन कहानियों में बड़ा अंतर देखा जाता है. ऐसा ही एक प्रसंग देखते हैं.
वो गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है न-
हरि अनंत हरि कथा अनंता । कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता ॥
मतलब, हरि अनंत हैं. उनकी कथाएं भी अनंत हैं. इन कथाओं को संत लोग बहुत तरह से कहते-सुनते हैं. ऐसा ही एक प्रसंग है सीता हरण का. रावण किस तरह उन्हें हरकर ले गया? मूल कहानी तो हर जगह एक ही है. सीता वन में पर्ण कुटीर में अकेली हैं. रावण भेष बदलकर भिक्षा मांगने आता है. सीता को तरह-तरह के प्रलोभन देता है. डर भी दिखलाता है. जब सीता नहीं डिगती हैं, तो उन्हें जबरन ले जाता है.
वनवास के दौरान पर्णकुटी में राम-जानकी और लक्ष्मण की एक झलक (फोटो क्रेडिट: दी लल्लनटॉप)
वनवास के दौरान पर्णकुटी में राम-जानकी और लक्ष्मण की एक झलक (फोटो क्रेडिट: दी लल्लनटॉप)

अब देखिए, जबरन ले जाने की इस कहानी में भी फर्क है. महर्षि वाल्मीकि एक बात लिखते हैं. तुलसीदास इसे दूसरे तरीके से कहते हैं. इसी जगह महाकवि कंबन कुछ और कहानी बताते हैं.

वाल्मीकि 'रामायण' में क्या है?

सबसे पहले बात वाल्मीकि 'रामायण' की. सीता ने जब रावण की बात मानने से इनकार कर दिया, तो वो सीता को बलपूर्वक ले जाता है. ये रचना संस्कृत में है. वाल्मीकि लिखते हैं-
अभिगम्य सुदुष्टात्मा राक्षसः काममोहितः । जग्राह रावणः सीतां बुधः खे रोहिणीमिव ॥ वामेन सीतां पद्माक्षीं मूर्धजेषु करेण सः । ऊर्वोस्तु दक्षिणेनैव परिजग्राह पाणिना ॥ (सर्ग 49, छन्द 16, 17)
काम से मोहित अत्यंत दुष्टात्मा राक्षस रावण ने सीता के पास जाकर उन्हें वैसे पकड़ लिया, जैसे कि आकाश में बुध ने रोहिणी को पकड़ने का दुस्साहस किया हो. ये है पहले श्लोक का मतलब.

'रामचरितमानस' में क्या लिखा है?

अब देखते हैं कि तुलसी के 'मानस' में क्या है. वही अरण्यकांड का प्रसंग. सीता जब रावण की बातें नहीं मानती हैं, तो उसे क्रोध आ गया. लेकिन रावण ने मन ही मन सीता के चरणों की वंदना की. ऐसा करते हुए उसने सुख माना. बाबा दोहा लिखते हैं-
क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ । चला गगनपथ आतुर भयं रथ हांकि न जाइ ॥
इसका अर्थ एकदम स्पष्ट है.
रावण ने क्रोध के साथ सीता को रथ पर बैठा लिया और बड़ी आतुरता के साथ आकाश मार्ग से चला. लेकिन डर के मारे उससे रथ हांका नहीं जा रहा था.
लेकिन इसी कहानी में कवि कंबन एक और बात जोड़ देते हैं.

'कंब रामायण' में क्या है?

वही अरण्यकांड का 'सीताहरण पटल'. 'कंब रामायण' का रावण इस बात का पूरा ध्यान रखता है कि कहीं उसके हाथों से सीता का स्पर्श न हो जाए. ये रचना तमिल भाषा में है. उसका हिंदी मतलब इस तरह है-
रावण जैसे ही सीता के चरणों को प्रणाम करने के लिए झुका, वैसे ही क्षमा की मूर्ति और अनुपम सुंदरी वह देवी (सीता) हे प्रभु, हे अनुज, कहकर पुकार उठी.
उस समय उस क्रूर रावण को अपने इस शाप का स्मरण हो गया कि परनारी का स्पर्श नहीं करना चाहिए. इसलिए उसने अपनी स्तंभ जैसी ऊंची भुजाओं से उस आश्रम के स्थान को ही नीचे से एक योजन तक खोदकर उठा लिया. इस तरह सीता को उनके आश्रम समेत उठाकर रथ पर रख लिया.
अब देखिए, बात सीता हरण की ही है, लेकिन तरीके में फर्क साफ दिखता है. इस अंतर के पीछे कई वजह हैं. सबसे बड़ी वजह तो ये कि तीनों ही रचनाएं अलग-अलग कालखंड की हैं. अलग-अलग भाषा की हैं. तीनों कवियों ने राम-जानकी के प्रति अपने-अपने दृष्टिकोण और मान्यताओं के अनुसार महाकाव्य रचा है. इन बातों के बावजूद तीनों ही रचनाएं बेजोड़ हैं और समाज में भरपूर आदर पाती रही हैं.

कंबन की रचना की कुछ खास बातें

दक्षिण भारत की चार प्रमुख भाषाएं हैं- तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम. इन चारों ही भाषाओं में रामायण की रचना हुई है. इनमें सबसे प्राचीन है तमिल भाषा और इसमें लिखी गई रामायण है. तुलसीदास की कालजयी रचना से करीब 400 साल पहले. महाकवि कंबन ने लिखा  है, इस वजह से इसे 'कंब रामायण' कहते हैं. इसे तमिल भाषा का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य माना गया है. आधुनिक इतिहासकार मानते हैं कि कंबन का जन्म 12वीं शताब्दी में हुआ था. ये दक्षिण के सम्राट कुलोत्तुंग प्रथम के समकालीन थे.
'कंब रामायण' में 10 हजार से ज्यादा श्लोक हैं. ये छह कांड में बंटा हुआ है. सबसे बड़ी बात ये कि इसका मूल आधार वाल्मीकि 'रामायण' ही है, इसके बावजूद इसमें कई प्रसंग एकदम अलग हैं. मतलब रचते समय इसकी मौलिकता का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है.


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