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अमेरिका की जनता इज़रायल-हमास जंग पर क्यों भिड़ गई?

इज़रायल-हमास जंग पर अमेरिका में हंगामा!

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इज़रायल-हमास जंग पर अमेरिका में हंगामा!

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि अमेरिका के कॉलेजों में जो चल रहा है, वो बेहद घटिया है. इसको तत्काल रोकने की ज़रूरत है. क्या हो रहा है अमेरिका के कॉलेजों में? फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रोटेस्ट हो रहे हैं. प्रदर्शनकारी छात्र इज़रायल से रिश्ता तोड़ने और गाज़ा में संघर्षविराम जैसी मांगों पर अड़े हैं. उन्होंने कैंपस में ही तंबू लगा लिया है. और, मांगें पूरी होने तक वहीं बने रहने की बात कर रहे हैं. इस प्रोटेस्ट की शुरुआत न्यूयॉर्क में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से हुई थी. धीरे-धीरे ये पूरे अमेरिका के कॉलेजों में फैल गया. यूनिवर्सिटी प्रशासन प्रदर्शनकारी छात्रों को हटाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. पुलिस ने सैकड़ों छात्राों को अरेस्ट भी किया है. मगर वे पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं. 

24 अप्रैल को ये मामला और बढ़ गया. अमेरिकी संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ़ रेप्रजेंटेटिव्स’ के स्पीकर माइक जॉनसन कोलम्बिया यूनिवर्सिटी पहुंचे. प्रदर्शनकारी छात्रों से बात करने. वहां उनके साथ धक्का-मुक्की हुई. जब वो बोलने के लिए खड़े हुए, उनके ख़िलाफ़ नारेबाज़ी भी की गई.

आगे जॉनसन ने चेतावनी भी दी. बोले, अगर प्रोटेस्ट खत्म नहीं हुआ तो यूनिवर्सिटी की फ़ंडिंग रोकने और नेशनल गार्ड भेजने पर विचार किया जा सकता है. नेशनल गार्ड, यूएस मिलिटरी का हिस्सा हैं. वे राज्य और केंद्र, दोनों के अधीन होते हैं. उन्हें किसी प्राकृतिक आपदा या सिविल अनरेस्ट की स्थिति में बुलाया जाता है. उनको अमेरिका के बाहर भी तैनात किया जा सकता है. छात्र प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ नेशनल गार्ड्स को बुलाने का सबसे बड़ा उदाहरण 1970 का है. 1960 और 70 के दशक में अमेरिका, वियतनाम वॉर में शामिल था. इसमें जानमाल का भारी नुकसान हो रहा था. 

इसके ख़िलाफ़ देशभर में यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स ने मोर्चा खोल दिया. उनकी मांग थी कि, सरकार अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाए. और, जंग खत्म करे. इसी कड़ी में मई 1970 में ओहायो की केंट यूनिवर्सिटी में एक रैली बुलाई गई. इसको रोकने के लिए नेशनल गार्ड्स को बुलाया गया. जब भीड़ काबू में नहीं आई, उन्होंने गोलियां चला दीं. इसमें 04 छात्रों की मौत हो गई, जबकि 09 घायल हो गए थे.

आइए समझते हैं,

- अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ में प्रो-फ़िलिस्तीन प्रोटेस्ट की कहानी क्या है?
- इन प्रदर्शनों का अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर क्या असर पड़ सकता है?
- और, प्रो-फ़िलिस्तीन प्रोटेस्ट की तुलना वियतनाम वॉर के ख़िलाफ़ हुए आंदोलन से क्यों हो रही है?

अमेरिका में फिलिस्तीन के समर्थन में प्प्रोटेस्ट हो रहे हैं. दिनोंदिन लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसके साथ-साथ प्रोटेस्ट पर होने वाली राजनीति भी तेज़ हो गई है. अमेरिका से लेकर इज़रायल तक की राजनीति में इसका असर देखा जा रहा है.

कैसे शुरू हुआ प्रोटेस्ट? पहले बेसिक क्लीयर कर लेते हैं.

- 07 अक्टूबर 2023 को हमास और दूसरे फ़िलिस्तीनी गुटों ने इज़रायल पर हमला किया. 11 सौ से अधिक इज़रायली नागरिकों की हत्या कर दी. 250 से अधिक को बंधक बना लिया. हमले के बाद इज़रायल ने जंग का ऐलान कर दिया. दुनिया के अधिकतर देशों ने हमास के हमले की निंदा की. कुछ देशों ने फ़ुल सपोर्ट का वादा किया. फ़ुल सपोर्ट देने वालों में अमेरिका सबसे आगे था. अमेरिका पिछले कई दशकों से इज़रायल का सबसे बड़ा सहयोगी रहा है. उसने को दी जाने वाली मदद बढ़ा दी. अपना जंगी बेड़ा इज़रायल की सीमा के पास तैनात कर दिया. बोला, अगर किसी ने इज़रायल-हमास जंग का फ़ायदा उठाने की कोशिश की, उसको हमसे निपटना होगा.फिर 18 अक्टूबर को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इज़रायल का दौरा किया. उन्होंने भी अनकंडीशनल सपोर्ट का भरोसा दिया.

- इस शह के आधार पर इज़रायल ने गाज़ा में अपना मिलिटरी कैंपेन तेज़ कर दिया. बाइडन के लौटने के कुछ दिन बाद इज़रायल ने गाज़ा में ज़मीनी हमले को मंज़ूरी दे दी. तब से इज़रायल एक अंतहीन युद्ध में उलझा हुआ है. गाज़ा की हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक़, इज़रायल के हमले में 34 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी नागरिकों की मौत हो चुकी है. इनमें से 70 फ़ीसदी महिलाएं और बच्चे हैं.

- इसके अलावा, 20 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं. 06 लाख से अधिक लोग भुखमरी की कगार पर हैं. 06 लाख से अधिक बच्चे पिछले छह महीनों से स्कूल नहीं गए हैं. अस्पतालों, स्कूलों और धार्मिक स्थलों पर इज़रायल का क़हर टूटा है. इन वजहों से इज़रायल पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं. अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश पब्लिकली इज़रायल को संयम बरतने की सलाह दे चुके हैं. हालांकि, उसका कोई असर हुआ नहीं है. इज़रायल अधिकतर आरोपों को नज़रअंदाज कर देता है. हालांकि, 01 अप्रैल को वर्ल्ड सेंट्रल किचन (WCK) के क़ाफ़िले पर हमला हुआ, तब उसको माफ़ी मांगनी पड़ी. दो अफ़सरों को बर्खास्त भी करना पड़ा. उस बार हुआ बस ये था कि मरनेवालों में अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों के नागरिक शामिल थे.

अब सवाल ये उठता है कि, जंग तो इज़रायल और हमास के बीच हो रही है. इसमें अमेरिका कहां से आया?

- जैसा कि हमने पहले भी बताया, अमेरिका, इज़रायल का सबसे बड़ा सहयोगी है. वो हर साल इज़रायल को लगभग 30 हज़ार करोड़ रुपये की सैन्य मदद देता है. जंग शुरू होने के बाद उसने मदद बढ़ाई है. 24 अप्रैल को राष्ट्रपति बाइडन ने 01 लाख 25 हज़ार करोड़ रुपये की एक्स्ट्रा सैन्य मदद को मंज़ूरी दी है. इसका इस्तेमाल गाज़ा में चल रही जंग में होगा.

- अमेरिका ने डिप्लोमेटिक मंचों पर भी इज़रायल का भरपूर साथ दिया है. यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (UNSC) में संघर्षविराम के लगभग सभी प्रस्तावों पर उसने वीटो किया. सिर्फ़ एक दफ़ा उसने वीटो नहीं किया. मगर तब प्रस्ताव की भाषा बहुत कमज़ोर थी. और तो और, अमेरिका ने कहा कि, इज़रायल प्रस्ताव को मानने के लिए बाध्य नहीं है.

इज़रायल, गाज़ा में अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और मानवाधिकार का जितना भी उल्लंघन कर पा रहा है, उसमें अमेरिका की मदद सबसे अहम है. चाहे वो डिप्लोमेटिक सपोर्ट हो, इंटेलीजेंस सपोर्ट हो या मिलिटरी सपोर्ट. इसलिए, जंग की शुरुआत से ही अमेरिका की डॉमेस्टिक पॉलिटिक्स में इज़रायल-हमास जंग का मुद्दा छाया हुआ है. लोग दो धड़ों में बंट गए हैं. एक धड़ा कहता है, इज़रायल को दशकों से भेदभाव और आतंकवाद का शिकार रहा है. इसलिए, अमेरिका को उसकी हरसंभव मदद करनी चाहिए. दूसरा धड़ा कहता है, अमेरिका गाज़ा की जंग में ईंधन भर रहा है. इसलिए, वहां होने वाले अपराधों में उसकी ज़िम्मेदारी भी तय होनी चाहिए. चूंकि अमेरिका में दोनों धड़ों का अपना-अपना सपोर्ट बेस है. उनका प्रतिनिधित्व सड़क से लेकर संसद तक है. इसलिए, इज़रायल-हमास जंग का मुद्दा टकराव की वजह बन गया.

प्रोटेस्ट यूनिवर्सिटीज़ तक कैसे पहुंचा?

अमेरिका में फ़्री स्पीच का अधिकार संविधान में निहित है. यूनिवर्सिटीज़ इस अधिकार की पहली प्रयोगशाला माने जाते हैं. इसलिए, अमेरिका में स्टूडेंट प्रोटेस्ट का लंबा इतिहास मिलता है. 1960 और 1970 के दशक में वियतनाम वॉर के ख़िलाफ़ हुआ आंदोलन इसका बड़ा उदाहरण है. इज़रायल-हमास जंग के दौरान भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. लगातार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. कई मौकों पर प्रोटेस्ट की भाषा हिंसक भी हुई है. आरोप हैं कि यहूदियों और इज़रायल के ख़िलाफ़ विवादित नारे लगाए जा रहे हैं. इससे यहूदी छात्रों और अध्यापकों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ गई है. इसी वजह से दिसंबर 2023 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिलवेनिया और मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) के प्रेसिडेंट्स को समन भेजा गया. संसद की कमिटी ने लाइव हियरिंग में पांच घंटों तक पूछताछ की. उनसे यहूदी-विरोधी प्रदर्शनों पर सवाल पूछे गए. मगर उन्होंने नारेबाज़ी को फ़्री स्पीच के ख़िलाफ़ में मानने से इनकार कर दिया. इसका भारी विरोध हुआ. बाद में हार्वर्ड और पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट्स को इस्तीफ़ा देना पड़ा. उन्होंने इस्तीफ़े की अलग वजह बताई. मगर इसका सिरा सीधे तौर पर इज़रायल-हमास जंग से जुड़ा था.

अब हालिया मामला जान लेते हैं.

अप्रैल 2024 में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी पर आरोप लगे कि, प्रशासन ने यहूदी-विरोधी प्रदर्शनों को रोकने और यहूदी छात्रों की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया. 17 अप्रैल को कोलम्बिया यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट नेमत शफ़ीक़ को संसदीय कमिटी ने सुनवाई में बुलाया. कहा गया कि, शफ़ीक़ का फ़ोकस फ़्री स्पीच की सुरक्षा से ज़्यादा यहूदी-विरोधी प्रोटेस्ट को रोकने पर थी. कोलम्बिया में छिटपुट प्रोटेस्ट पहले से चल रहा था. मगर शफ़ीक़ की सुनवाई के बाद छात्र संगठनों ने कैंपस में टेंट लगा लिया. उनका इरादा लंबे समय तक प्रोटेस्ट जारी रखना है. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पहले उन्हें टेंट हटाने के लिए कहा. जब वे नहीं माने तो पुलिस बुलाई गई. 18 अप्रैल को पुलिस ने 108 छात्रों को अरेस्ट किया. हालांकि, इसके बावजूद धरना खत्म नहीं हुआ. अभी भी बड़ी संख्या में लोग जमा कैम्पस में जमा हैं. इनमें छात्र और आम नागरिक, दोनों हैं.

कोलम्बिया में अरेस्ट की ख़बर के बाद कुछ और यूनिवर्सिटीज़ ने सपोर्ट में प्रोटेस्ट शुरू किया. इस समय अमेरिका के लगभग 20 दिग्गज कॉलेजों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में रैलियां हो रहीं है. इन रैलियों में छात्रों के साथ-साथ फ़ैकल्टीज़ भी शामिल हुई हैं. अमेरिका के अलावा, प्रोटेस्ट की आग फ़्रांस, ऑस्ट्रेलिया और ईजिप्ट के कॉलेजों तक भी पहुंच गई है. वहां भी स्टूडेंट कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के छात्रों को सपोर्ट में इकट्टठा हो रहे हैं.

प्रदर्शनकारी छात्रों की मांगें क्या हैं?

- इज़रायल-हमास जंग में तत्काल संघर्षविराम हो.
- अमेरिकीकॉलेज, इज़रायली यूनिवर्सिटीज़ के सहयोग से चलने वाले एकेडमिक प्रोग्राम्स खत्म करें.
- अमेरिकी कॉलेज ऐसी कंपनियों के साथ नाता तोड़ें, जो इज़रायल का समर्थन कर रहे हैं.
- अमेरिकी कॉलेज ऐसे रिसर्च प्रोग्राम्स पर ताला लगाएं, जिसका फ़ायदा इज़रायल की मिलिटरी को मिल रहा है.