The Lallantop

60 साल से कांच में बंद ये पौधा बिलकुल स्वस्थ है और बढ़ भी रहा है

1972 में पहली और आख़िरी बार खोला गया, तब से उस बोतल के भीतर ही ज़िंदा है.

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डेविड लिट्मर द्वारा लगाया हुआ पौधा जो 60 साल से ज्यादा समय से बोतल में बंद है
कॉलोनी में दीवार बंद गार्डन्स तो अपने बहुत देखे हैं, लेकिन क्या कभी प्लास्टिक या कांच की बोतल में बंद गार्डन देखा है? कभी सोचा है कि एक बोतल में बंद रहकर पेड़-पौधे कैसे उग जाते हैं, उगते भी हैं तो कितना चलते होंगे. अगर हम कहें कि साठ साल चल गए तो? भरोसा करना मुश्किल है. पर अनुपम अंकल कह गए हैं. कुछ भी हो सकता है. वैसा ही कुछ हुआ.
1960, ईस्टर का रविवार, डेविड लिट्मर ने अपना पहला Bottle Garden लगाया. उन्होंने 10 गैलन के कांच की बोतल में थोड़ा सा पानी और थोड़ी खाद के साथ स्पीडरवर्ट स्प्राउट नाम का एक जंगली पौधा डाल दिया. फिर बोतल को सील कर दिया. 1972 में, यानी पूरे 12 साल बाद लिट्मर ने बोतल का ढक्कन खोला, थोड़ा पानी डाला, फिर वापस सील कर दिया. वो आखिरी बार था जब वह बोतल खुली. तब से अब तक 47 साल बीत चुके हैं. 1960 से अब तक यानी लगभग 59-60 साल बोतल में बंद रहने के बाद भी उसके अंदर का पौधा सूरज की रोशनी के सहारे ज़िंदा है, और बढ़ रहा है.
सील्ड बोतल गार्डन के साथ डेविड | Photo - Boredpanda
सील्ड बोतल गार्डन के साथ डेविड | Photo - Boredpanda

इस तरह उगाए गए गार्डन को कहा जाता है - टेरेरियम गार्डन. ये इनडोर उद्यान यानी कि अंदर उगाए जाने वाले गार्डन का एक प्रकार है, ज्यादातर ग्लास के कंटेनर के अंदर उगाए जाने वाले इन पौधों को ज़िंदा रहने और बढ़ने के लिए सिर्फ रोशनी की ज़रुरत होती है.
टेरेरेरियम गार्डन | Photo - inhabitat.com
टेरेरेरियम गार्डन | Photo - inhabitat.com

 बोतल के अंदर कैसे ज़िंदा रह सकता है पौधा?

'कोई मिल गया' फिल्म के जादू को तो आप जानते ही होंगे. धूप ही उसका खाना-पीना था. उसी की तरह ये बोतलबंद पौधे सिर्फ सूरज की रोशनी से खुद को सालों तक ज़िंदा रख सकते हैं.
कैसे?
दरअसल कांच की बोतल पौधे के लिए Self Sufficient Ecosystem बन जाती है. मतलब जैसे आपके जीने के लिए इस दुनिया में ही सब चीजें मिलती रहती हैं, वैसे ही वो कांच का गोला, उस पौधे की दुनिया बन जाता है. उसके जीने लायक सब चीजें उसे उस गोले के भीतर ही मिलती रहती हैं. इसे आगे समझाएंगे.
खाद में मौजूद बैक्टीरिया मरे हुए पौधे को खाती है. जिससे जीवित पौधे के लिए ऑक्सीजन बनती है. ये ऑक्सीजन रिएक्शन करके कार्बन डाई-ऑक्साइड बनती है. ये तरीका कहलाता है सेलुलर रेस्पिरेशन.
सेलुलर रेसपिरेशन |Photo courtesy - socratic
सेलुलर रेसपिरेशन |Photo courtesy - socratic

दूसरा तरीका - रोशनी से पौधों को प्रकाश संश्लेषण में मदद मिलती है. पौधे में मौजूद क्लोरोफिल रोशनी को सोख लेती है, जिसकी कुछ मात्रा ATP के रूप जाती है. बाकी मात्रा पौधे की जड़ से खींचे गए पानी से इलेक्ट्रॉन हटाने में इस्तेमाल होती है.
अब जब ये इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाते हैं तो रासायनिक क्रिया से कार्बन डाई-ऑक्साइड को कार्बोहाइड्रेट में बदलते हैं. और इस तरह पौधे अपना खाना तैयार करते हैं और लगातार बढ़ते रहते हैं.

पृथ्वी का मिनिएचर वर्शन

बोतल के अंदर इतने सालों में पृथ्वी के जैसा ही ईकोसिस्टम बन जाती है. बोतल खुद में पौधे का पोषण करने लायक होती है, मतलब ये कि अंदर का पारितंत्र वहां के जीवित पौधों, जंतुओं के लिए खुद ही पोषक तत्व बनाने में समर्थ होता है.

ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रही गौतमी ने की है 

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